फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी कहानी से करता हूँ जिसे आपने निश्चित तौर पर सुन रखा होगा। लेकिन कहते हैं ना अच्छी बातों को बार-बार दोहराना पहले हमारे विचार, फिर व्यवहार और अंत में संस्कार को प्रभावित कर हमारे चरित्र को बनाता है। तो चलिए शुरू करते हैं- एक सज्जन चौबीसों घंटे प्रभु का स्मरण किया करते थे। एक दिन जंगल से गुजरते समय उन्होंने अनुभव किया कि उनके चलने के साथ साथ जंगल में दो जोड़ी पैरों के निशान और बन रहे हैं। वे आश्चर्यचकित थे, उन्होंने अपने चारों और देखा, पर वहाँ कोई नहीं था। उन्हें लगा शायद यह कोई संयोग होगा और वे पहले से बने किसी के पैरों के निशान के साथ-साथ चल रहे होंगे। उन्होंने वापस अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी, लेकिन यह क्या एक जोड़ पैरों के निशान वहाँ अभी भी बन रहे थे, वे घबरा गए और जोर से बोले, ‘कौन है जो अदृश्य रूप से मेरे साथ चल रहा है?’ बहुत ही मीठी, सुरीली और दिल को छू लेने वाली आवाज़ में जवाब आया, ‘मैं ईश्वर हूँ, वही जिसे तुम हर पल अपने साथ रहने के लिए चौबीसों घंटे प्रार्थना करते हो।’ आवाज़ सुन वह प्रफुल्लित हो उठा और असीम आनंद के साथ बोला, ‘वाह! प्रभु मेरे साथ यात्रा कर रहे हैं।’ अब उस व्यक्ति ने भगवान के पैरों के निशान की विशेष देखभाल करना प्रारम्भ कर दिया।

उस व्यक्ति का जीवन अब बहुत अच्छी तरह चल रहा था इसलिए वह काफ़ी प्रसन्नचित्त रहने लगा था। जीवन सामान्य गति से आगे बढ़ता चला जा रहा था। ज़िम्मेदारियों और सपनों को पूरा करने की होड़ में अब वह व्यक्ति पैरों के निशान की देखभाल करना भूल गया। कुछ समय पश्चात उसके खुशहाल जीवन में छोटी-मोटी समस्याएँ आने लगी, जिसे उस व्यक्ति ने अपने पूरे सामर्थ्य से साधने का प्रयास करा लेकिन समय के साथ उसकी समस्याएँ और दुःख कम होने के स्थान पर बढ़ता ही चला जा रहा था।

दुःख और समस्याएँ बढ़ते-बढ़ते एक दिन ऐसे स्तर पर पहुँच गई जहाँ उसे लगा अब इनका सामना करना असंभव हो गया है। उसे अचानक ईश्वर और उनके पैरों के निशान याद आए। उसने तुरंत अपने आस-पास देखा, लेकिन यह क्या, वहाँ तो बस एक जोड़ी पैरों के निशान थे। भगवान के पैरों के निशान नदारद देख वह थोड़ा पीछे गया तो उसे एहसास हुआ जब से उसका विपरीत समय शुरू हुआ है तभी से वहाँ सिर्फ़ एक जोड़ी पैरों के निशान हैं। यह देख उसकी आँखों से आंसू बहने लगे उसने एक बार फिर परमात्मा को पुकारते हुए कहा, ‘प्रभु आप भी मेरे साथ तभी तक थे जब तक मेरा अच्छा और आनंद का समय चल रहा था। जैसे ही संकट आया आप भी मुझे छोड़कर चले गए।’

उसके इतना कहते ही एक आकाशवाणी हुई, ‘बेटा, मैंने तुम्हें नहीं छोड़ा बल्कि तुम ही कुछ दिनों के लिए मुझसे कट से गए थे और रही पैरों के निशान की बात तो तुम्हारे दुःख के समय में जो पदचिन्ह दिख रहे हैं वह तुम्हारे नहीं मेरे हैं। विपत्ति के समय में  तुम खुद चलकर यहाँ तक नहीं पहुँचे हो बल्कि मैंने तुम्हें गोदी में उठाकर एक लम्बी यात्रा तय करी है। इसीलिए तुम्हें अपने पैरों के निशान नहीं दिख रहे हैं।’ भगवान के वचन सुन वह व्यक्ति हैरान था और उसकी आँखों से कृतज्ञता के आँसू बह रहे थे।

ठीक इसी तरह दोस्तों हममें से ज़्यादातर लोग अपना जीवन इस व्यक्ति की तरह जीते हैं। जीवन में जब भी अच्छा होता है तो हमें लगता है यह तो हमारे कर्मों का नतीजा है। लेकिन जैसे ही विपत्ति या परीक्षा का समय आता है हमें लगने लगता है कि सारा दुःख ईश्वर ने हमारी क़िस्मत में ही लिख दिया है क्या?

लेकिन दोस्तों, हक़ीक़त इसके बिलकुल विपरीत होती है। एक माँ अपने बच्चे को कड़वी, बेस्वाद दवा इसलिए खिलाती है क्यूँकि वह उसे बीमारी से ठीक करना चाहती है। कई बार ग़ुस्सा करती है, मारती है, सजा देती है लेकिन इन सब के पीछे वजह एक ही होती है वह बच्चे का भला चाहती है। लेकिन जब वह बच्चे के साथ उक्त व्यवहार करती है तो कई बार वह बच्चा भूल जाता है कि कड़वी दवा पीते वक्त वह माँ की गोदी में ही लेटा था।

दोस्तों, जीवन में जब भी कठिन परिस्थितियाँ, विपत्तियाँ हमारे ऊपर आयी होंगी, ईश्वर ने हमारा साथ निभाते हुए उन्हें टाला होगा। याद रखिएगा, विपरीत परिस्थितियों में तो उसने हमें सिर्फ़ निखारने के लिए रखा है ठीक उसी तरह जैसे तप कर सोना और निखर जाता है। जी हाँ साथियों, परमेश्वर हमेशा वहाँ रहता है जहाँ हमें उसकी ज़रूरत होती है बस इसका एहसास हम सिर्फ़ तब कर सकते हैं जब हमारा  समर्पण, आस्था और विश्वास उनके प्रति सौ प्रतिशत हो। इसलिए आज से कठिन समय में भगवान को दोष देने के स्थान पर उनसे सहनशक्ति बढ़ाने और कुछ नया सीखने के लिए बुद्धि देने की विनती करें, अंत में परिणाम निश्चित तौर पर आपकी आशा के अनुरुप होगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com