फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

 
दोस्तों, शायद आपको यह सुनना अजीब सा लगे पर मुझे लगता है जीवन में दुखों का होना भी ज़रूरी है। जी हाँ सही सुना आपने, जीवन में दुखों का होना ज़रूरी है क्यूँकि दुःख के बिना सुख का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ जाएगा। दुःख ही हमें सुख की अहमियत, उसके महत्व को बताता है और हमें अपना सर्वश्रेष्ठ खोजने, देने के लिए प्रेरित करता है। दुःख ही हमें एहसास करता है कि हमसे भी शक्तिशाली कोई है, जो सारी सृष्टि को गतिशील रखता है। जिसे हम ईश्वर, वाहे गुरु, जीसस, अल्लाह या सर्वशक्तिमान मानते हैं। लेकिन यह पता होने के बाद भी सामान्यतः हम सब दुःख से डरते हैं, घबराते हैं और चाहते हैं कि इसका साया भी हमारे ऊपर कभी ना आए। जब भी मैं दुःख के विषय में विचार करता हूँ, मुझे दो तरह के विचार आते हैं। पहला, मुझे लगता है, दुःख आता नहीं है अपितु हम इसे आमंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए नकारात्मक भावों के साथ रहकर, लगातार स्वास्थ्य को नज़रंदाज़ करते हुए आदि।

दूसरा, जब भी उस सर्वशक्तिमान को लगता है कि उसे हमें जीवन का कोई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाना है, वह इसे हमारे पास भेजता है। जैसे हमारे अंदर अहंकार या दुर्भावना की अधिकता हो जाए तो उसको खत्म करने के लिए या फिर हमारी सुप्त प्रायः शक्तियों या क्षमताओं का एहसास कराने के लिए। वैसे स्थिति दोनों में से कोई भी क्यूँ ना हो दोस्तों, दुःख अंतः हमें जीवन का मूल्य सिखाने या हमारे जीवन को या हमें बेहतर बनाने के लिए ही आता है। दुःख एक ऐसी राम बाण दवाई है जो कड़वी होने के बाद भी हर हाल में हमारे लिए लाभप्रद रहती है।

दोस्तों, शायद आप अभी भी मेरी बात से पूरी तरह सहमत नहीं होंगे, पर सोच कर देखिएगा, जब भी हम विपरीत परिस्थितियों में होते हैं या फिर खुद को चारों ओर से दुःख, संकट से घिरा हुआ पाते हैं, तब-तब हम इससे बाहर आने के लिए अपनी पूरी क्षमता, शक्ति से प्रयास करते हैं। लेकिन जब पूरी क्षमता और शक्ति से किए गए हमारे सभी प्रयास हमें आशातीत परिणाम नहीं देते हैं तब हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर की याद आती है और हम उसके प्रति नतमस्तक हो जाते है और उससे प्रार्थना करते हैं कि वह हमें इससे बाहर निकाले।

देखा जाए दोस्तों, तो दुःख की घड़ी में ही हम अपनी शक्तियों या क्षमताओं को पहचानते है और उसे कार्य में लेने का प्रयत्न करते है। दुःख या विपत्ति के समय में ही हमने नास्तिकता से आस्तिकता का सफ़र तय किया या जिस ईश्वर को भूल गए थे उसे फिर से याद किया। इसी दौरान हमने अधर्म से धर्म की, अहंकार से नम्रता की यात्रा करी, दूसरों की पीड़ा को पहचानना शुरू किया, विभिन्न लोगों की सलाह पर हमें प्रकृति में मौजूद सभी प्राणियों की मदद या जरूरतमंदों की सेवा को अपना लक्ष्य बनाया, अपने परिवार के महत्व को समझा, सही ग़लत की पहचान करना सीखा, अपने जीवन को बेहतर बनाया। दोस्तों, यह सूची बहुत लम्बी है, सही मायने में देखा जाए तो विपरीत परिस्थिति, दुःख या विपत्ति भरे समय ने ही तो हमें अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक, महत्वपूर्ण सीख सिखाई। बिलकुल कम शब्दों में कहा जाए दोस्तों तो विपरीत या विपत्ति के समय में लगी एक ठोकर हमें सही रास्ते पर ले आती है। 

दोस्तों, उपरोक्त बात मैं अपने खुद के अनुभव से बोल रहा हूँ। व्यवसाय में बदलाव करते वक्त हुए बड़े नुक़सान के दौरान मैंने पाया था कि मैं हर पल सतर्क और सावधान रहना सीख गया था और कार्य करने की मेरी क्षमता कई गुना बढ़ गई थी। इसीलिए मैं कहता हूँ दोस्तों, विपत्ति से डरने की ज़रूरत ही नहीं है क्यूँकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमारे लिए हानिकर सिद्ध हो सके। याद रखिएगा दोस्तों, इसीलिए दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं सभी ने विपरीत परिस्थितियों का सामना किया था और दुःख व विपत्ति भरे समय में ईश्वर पर विश्वास रखते हुए खुद को खोजा और अपना सर्वश्रेष्ठ देकर नए मुक़ामों को छुआ। चाहें तो डाकू अंगुलिमाल, गौतमबुद्ध, भगवान श्री राम किसी के भी जीवन को देख लीजिएगा। इसे आप ऐसा भी मान सकते हैं कि ईश्वर जिस व्यक्ति को बेहतर बनाना चाहते है, अपनी शरण में लेना चाहते है उसे ही विपरीत परिस्थितियों में भेजते हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com