अहंकार का करें तिरस्कार !!!
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फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज की चर्चा एक बहुत पुरानी कहानी के साथ करते हैं। दक्षिण के एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। बचपन से ही एक ही कार्य को करते-करते वह इतना पारंगत हो गया था कि उसकी बनाई हुई मूर्तियाँ एकदम जीवंत प्रतीत होती थी। इसी वजह से धीरे-धीरे उसकी प्रसिद्धि पूरे देश में फैल गई थी और लोग दूर-दूर से उसकी बनाई मूर्तियों को देखने आया करते थे। लोगों से सिर्फ़ प्रशंसा सुन-सुन कर धीरे-धीरे उस मूर्तिकार में अहंकार की भावना जाग गई और वह स्वयं को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार मानने लगा।
समय के साथ-साथ उम्र का प्रभाव अपने ऊपर बढ़ता देख मूर्तिकार को मृत्यु का भय सताने लगा। अब उसका मन काम में भी नहीं लगता था बस वह पूरे समय मृत्यु से बचने के उपाय के बारे में सोचने लगा। एक दिन उसके मन में एक विचार कौंधा और वह फिर से पूरी ऊर्जा के साथ नई मूर्तियाँ बनाने में जुट गया। इस बार उसकी मूर्ति बनाने की गति इतनी अधिक थी कि कुछ ही महीनों में उसने कम से कम एक दर्जन नई मूर्तियाँ बना ली। लेकिन इस बार उसने सारी की सारी मूर्तियाँ खुद की प्रतिलिपि के रूप में ही बनाई थी।
असल में मूर्तिकार ने स्वयं को यमदूत से बचाने के लिए, अपनी मृत्यु को धोखा देने के लिए जो योजना बनाई थी, यह उसका एक हिस्सा थी। उसने सोचा था कि जिस दिन भी यमदूत उसके प्राण हरने के लिए आएँगे वो इन मूर्तियों के बीच मूर्ति बन बैठ जाएगा और यमदूत को धोखा देगा। वैसे कुछ हद तक मूर्तिकार अपनी योजना में सफल भी हुआ, जिस दिन यमदूत उसको लेने आया वह मूर्तियों के बीच बैठे मूर्तिकार को पहचान नहीं पाया।
13 एक जैसी मूर्तियों को देख यमदूत चकित था, वह प्रयास करने के बाद भी उन मूर्तियों और मूर्तिकार के बीच में अंतर नहीं कर पा रहा था। पर उसे यह बात बहुत अच्छी तरह पता थी कि मूर्तिकार उन्हीं मूर्तियों के बीच छिपा बैठा है। खुद को प्रकृति के नियम का पालन ना कर पाने की वजह से कुछ पलों के लिए यमदूत चिंता में पड़ गया। हालाँकि यमदूत अपनी शक्तियों के प्रयोग से मूर्तियों को तोड़ कर देख सकता था किंतु वह मूर्तिकार की कला का अपमान नहीं करना चाहता था।
प्रकृति के नियम का मान रखने के लिए यमदूत ने मूर्तिकार के प्राण हरने के लिए एक नई योजना बनाई और मूर्तिकार के अहंकार पर चोट करने का निर्णय लिया। वह एक मूर्ति के पास गया और बहुत बारीकी से उसे देखते हुए बोला, ‘वास्तव में सभी मूर्तियाँ बहुत सुंदर और कलात्मक है। पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि इतना अद्भुत कलाकार होने के बाद भी इस मूर्ति में इतनी बड़ी गलती कैसे कर बैठा?’ यमदूत की बात मूर्तिकार को चुभ गई और उसका अहंकार जाग गया। वह उसी वक्त मूर्तियों के बीच में से उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘असंभव! मेरी बनाई मूर्ति में कोई त्रुटि हो ही नहीं सकती। बताओ कहाँ क्या ग़लत है?’ मूर्तिकार की बात सुनते ही यमदूत ने अट्टहास लगाया और बोला, ‘बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती। तुम्हारी सबसे बड़ी त्रुटि है कि तुम अहंकारी हो, उसी की वजह से आज तुम अपनी जवान पर क़ाबू नहीं रख पाए और पहचाने गए। चलो अब तुम्हारा भूलोक में समय पूरा हो गया है।’ इतना कहते हुए यमदूत ने मूर्तिकार के प्राण हर लिए।
इसीलिए दोस्तों हिंदू धर्म में कहा गया है, ‘अहंकार विनाश का कारण है।’ अगर आप अहंकार से बचना चाहते हैं तो आपको गर्व और अहंकार के बीच के महीन फ़र्क़ को समझना होगा और ‘मैं’ के भाव को छोड़ना होगा और स्वीकारना होगा कि जो कुछ भी मैं कर पा रहा हूँ वो मेरी नहीं बल्कि ईश्वर की योजनानुसार हो रहा है। मैं तो बस माध्यम हूँ। वैसे भी साथियों विदुर नीति में कहा गया है, ‘जो व्यक्ति न तो सम्मान पाकर अहंकार करता है और न अपमान से पीड़ित होता है । जो जलाशय की भाँति सदैव क्षोभरहित और शांत रहता है, वही ज्ञानी है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com