फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, काउन्सलिंग के अपने कार्य के दौरान मैंने अक्सर देखा है कि लोग जीवन में की गई ग़लतियों के भार से बचने के लिए अजीबोग़रीब तर्क देते हैं, जिनका असल ज़िंदगी से कोई लेना-देना नहीं होता है। जैसे, हाल ही में एक बच्ची, जो कि दोस्तों के साथ अपने रिश्तों को लेकर परेशानी में थी, ने काउन्सलिंग के दौरान कहा, ‘सर, आपका सुझाव बहुत अच्छा है, लेकिन अगर मैंने इसे अमल में लिया तो मैं अपने दोस्तों पर फट पड़ूँगी।’ लेकिन जब मैंने उसे ‘फट पड़ने’ के फ़ायदे बताए तो उसका कहना था, ‘आपको अंदाज़ा नहीं है सर, अगर मैंने बोलना शुरू कर दिया तो बाद में मेरे लिए स्वयं को रोकना असम्भव हो जाएगा।’ मेरे द्वारा बातचीत के दौरान उसे समझाने या सही स्थिति साझा करने के लिए कही गई हर बात, जो उसे भी सही लग रही थी, को नकारने के लिए उसके पास समुचित कारण थे। ऐसा लग रहा था मानों वह खुद को एक्शन लेने से रोक रही है।

वह बच्ची ही क्यूँ सामान्यतः गलती पर दी गई समझाइश पर हम सभी की प्रतिक्रिया कुछ-कुछ ऐसी ही होती है। इसकी मुख्य वजह, मेरे अनुसार, वह अनजान डर हो सकता है जो हमें की गई गलती को स्वीकारने की वजह से खुद की या समाज की नज़रों से गिर जाने की सम्भावना के कारण लगता है।

‘बीइंग रांग: एडवेंचर इन द माजिर्न ऑफ एरर’ किताब की लेखक और अमेरिका की जानी-मानी पत्रकार कैथरिन शुल्ज के अनुसार, ‘सामान्यतः हम अपने आस-पास मौजूद चीजों को लेकर भ्रम की स्थिति में रहते हैं और इसी वजह से कई बार उस विषय में ग़लत सवाल पूछ बैठते हैं या ग़लतियाँ करते हैं। जब सामने वाला हमारी इस गलती को पकड़ लेता है, तो हमारा रवैया अजीब सा हो जाता है। हम स्वयं को इस तरह पेश करते हैं जैसे, हमने कुछ ग़लत पूछा या करा ही ना हो।’ आख़िर दोस्तों ग़लतियों को स्वीकारना इतना मुश्किल क्यूँ है? ग़लतियाँ करना या होना मानव की प्रकृति है, इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। गलती करने के बाद खुद को सही दर्शाना आपके व्यक्तिगत एवं व्यवसायिक जीवन दोनों में दिक़्क़त पैदा करता है। चलिए एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं कि हम हमेशा खुद के सही होने की धारणा क्यूँ पालते हैं-
थोड़ी सी देर के लिए कल्पना कीजिए और सोचकर देखिए कि ‘मैं ग़लत हूँ!’ अब आपको कैसा लग रहा है? निश्चित तौर पर आप स्वयं पर उँगली उठा रहे होंगे या शर्म महसूस कर रहे होंगे। हो सकता है आपको लग रहा होगा लोग मुझ पर हंस सकते हैं, मुझ पर कमेंट कर सकते हैं। यह आपके अंदर एक अनजान डर या नकारात्मक भाव पैदा कर सकता है। ज़ाहिर है दोस्तों, यह अंजाना डर ही हमें ग़लतियाँ स्वीकारने से रोकता है। दरअसल हम खुद को गलत मानने की संभावना पर विचार करना ही नहीं चाहते हैं। चाहे जो हो जाए, हम खुद को सही साबित करेंगे क्यूँकि हमारे मन में डर है कि अगर हमने गलती मानी तो हम फंस जाएंगे। इसलिए हम स्वयं से कहते हैं, ‘अड़े रहो और सिद्ध करो कि हम सही हैं!’
खुद को हमेशा सही सिद्ध करने की ज़िद हमें जानबूझकर अपनी ग़लतियों को नज़रंदाज़ करने के लिए प्रेरित कर और ज़्यादा मुश्किलों में डाल देती है। इसीलिए हमें अपनी ग़लतियों का सही मायने में एहसास बहुत देर से होता है और हम ग़लतियों से बहुत धीरे-धीरे सबक़ ले पाते हैं। वैसे यह सहज प्रक्रिया है लेकिन अगर हम इसकी गम्भीरता को जल्दी समझ लें तो अपने जीवन को कम समय में बेहतर बना सकते हैं।
अगर साथियों आपका लक्ष्य जीवन को उच्चतम स्तर तक जीना है तो एक बात स्वीकारें, ग़लतियों को छिपाकर या नकार कर आप जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते। उसके लिए आपको ग़लतियों को सुधारना होगा। इसके लिए जीवन में ग़लतियों के संदर्भ में निम्न 3 साधारण बातों का हमेशा ध्यान रखें- 
पहली बात - अगर आप कोई गलती करते हैं तो चिंता ना करें आपकी बड़ी से बड़ी गलती भी माफ़ी योग्य है। बस एक बाद याद रखें उसे छिपाने के लिए झूठ बोलकर दूसरी गलती करना ज़रूर अपराध है। याद रखिएगा दोस्तों, भूल या गलती होना स्वाभाविक प्रक्रिया है, उसके बिना कुछ भी नया सीखना मुश्किल है। लेकिन अगर आप एक ही गलती को बार-बार कर रहे हैं तो यह ज़रूर चिंता का विषय है।
दूसरी बात - अगर आप भूल को छिपा रहे हैं तो आप अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, यह बहुत ज़्यादा ख़तरनाक है। झूठ, गलती या दोष को कुछ देर के लिए ढक तो लेता है, मगर उसे खत्म नहीं करता। ढकी हुई यही गलती हमारी निर्णय लेने या सोचने की स्वाभाविक प्रक्रिया को प्रभावित करती है और आने वाले समय में बड़ी ग़लतियों का कारण बन जाती है।
तीसरी बात - हमेशा याद रखें, गलती को स्वीकारना उतना मुश्किल नहीं होता जितना लगता है। ग़लतियों को स्वीकारना आपको दूसरों की नज़रों में क्षमा का अधिकारी बना देता है। याद रखिएगा, भूल होना प्रकृति है, उसे मान लेना संस्कृति है और समय के साथ उसे स्वीकार लेना प्रगति है। तो आईए आज से अपनी ग़लतियों को स्वीकार कर उसमें सुधार करें और जीवन पथ पर आगे बढ़ जाएँ।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com