बेहतरीन जीवन जीना है तो यह 9 सूत्र अपनाएँ…

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, शायद आप मेरी बात से पूर्णतया सहमत होंगे की जीवन में अक्सर महत्वपूर्ण पाठ हमने विपरीत परिस्थितियों में ही सीखें हैं या फिर विपरीत परिस्थितियों के दौरान ही सीखने को मिले हैं। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह विपरीत परिस्थितियों में हमारा अधिक आत्मकेंद्रित अर्थात् सेल्फ़ फ़ोकस्ड होना होता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो विपरीत परिस्थितियों में किया गया आत्ममंथन, मनचाहा परिणाम पाने के लिए, ग़लतियों को सुधार कर फ़ोकस्ड ऐक्शन करने के लिए मजबूर करता है। ऐसा हे कुछ अनुभव मुझे कल हुआ।
पिछले कुछ दिनों से अपने ख़ास मित्र के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित चल रहा था, जिनका उपचार विशेष हॉस्पिटल, इंदौर में चल रहा था। कल जब मैं अपने मित्र से मिल कर वापस बाहर आ रहा था तभी मेरा ध्यान उनके पास ही भर्ती एक बुजुर्ग महिला की ओर गया जिनका विडियो उनके रिश्तेदार बना रहे थे लेकिन इससे अनभिज्ञ वे अपने दूसरे रिश्तेदार से हाथ जोड़कर कुछ कह रही थी।
उनके हाव-भाव और शारीरिक भाषा को देख मैं कुछ पलों के लिए ठिठक कर रुक गया और ध्यान से उनकी बात सुनने लगा। जल्द ही मुझे एहसास हुआ की वे अपनी भतीजी (शायद) से कह रही थी की ‘तेरी मम्मी से कहना मुझे माफ़ कर दें।’ और इसके साथ ही उन्होंने कई लोगों के नाम ले-ले कर माफ़ी माँगी। उनकी भतीजी बार-बार उनको समझाने का प्रयास कर रही थी की, ‘आप बड़े हो ऐसा क्यूँ बोल रही हो? आप बिलकुल अच्छी हो जाओगी।’ लेकिन वह बुजुर्ग महिला अपनी भतीजी की बात को नज़रंदाज़ करते हुए अपनी बात दोहराए जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वे अपने दिल के ऊपर रखे अनावश्यक बोझ को कम करने का प्रयास कर रही है।
उनकी उम्र, हालात और उस वक्त के कार्य को देख मैं हतप्रभ था। मैं तुरंत वहाँ से बाहर निकला और अपने अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया लेकिन रात होते-होते तक मुझे एहसास हुआ की वह घटना मेरे दिमाग़ में छप सी गई थी और मैं चाह कर भी उसे अपने दिमाग़, अपने मन से निकाल नहीं पा रहा हूँ। मैं सोच रहा था की जीवन के इस पड़ाव पर आकर आपका अहम, झूठी प्रतिष्ठा, बड़प्पन आदि सब धरा रह जाता है और आपके समक्ष सिर्फ़ सच्चाई बचती है।
पर इस विचार के साथ कुछ वक्त और गुज़ारने पर मुझे एहसास हुआ की इस वक्त सच्चाई का सामना करने से क्या जीवन के बीते हुए हसीन पल वापस आ पाएँगे? बिलकुल भी नहीं, हाँ यह बिलकुल सही है की आप अपना बचा हुआ जीवन आराम से, बिना किसी अपराध बोध, घृणा, अनावश्यक ग़ुस्से के जी पाएँगे और अपने जीवन को ज़्यादा बेहतर, ज़्यादा हसीन बना पाएँगे।
दोस्तों, एक बार सोच कर, गम्भीरता से विचार कर, देखिएगा। अगर हम आज ही आपसी रिश्तों में बिना अपराध बोध, घृणा, अनावश्यक ग़ुस्से, नकारात्मक भाव के जीवन जीना शुरू कर दें तो यह ज़िंदगी कितनी हसीन बन जाएगी और यह बिना किसी बड़े त्याग के सम्भव है। बस आपको अपने रिश्तों को निम्न साधारण सूत्रों के अनुसार निभाना होगा-
पहला सूत्र - कोसने के स्थान पर आशीर्वाद दें।
दूसरा सूत्र- एक दूसरे के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने की बजाय उन्हें भरने में मदद करें।
तीसरा सूत्र - एक-दूसरे को हतोत्साहित करने के स्थान पर उत्साहवर्धन करें और सामने वाले के प्रयासों को दिल से स्वीकारें।
चौथा सूत्र - रिश्तों में अपने व्यवहार से निराशा बढ़ाने के स्थान पर आशा जगाने के लिए प्रयासरत रहें।
पाँचवाँ सूत्र - एक दूसरे को परेशान करने या नेगलेक्ट करने के स्थान पर जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकारें, गले लगाएँ।
छठा सूत्र - आलोचना के स्थान पर सामने वाले ने जो किया है उसके लिए धन्यवाद दें।
सातवाँ सूत्र - बदनाम करने के स्थान पर सामने वाले की तारिफ़ करें।
आठवाँ सूत्र - आपस में ठंडा व्यवहार करने के स्थान पर गर्मजोशी से मिलें।
नवाँ सूत्र - एक दूसरे के बारे में नकारात्मक बोलने, बदनाम करने के स्थान पर सामने वाले में जो अच्छा है, उसकी खुल कर तारिफ़ करें।
दोस्तों उपरोक्त 9 सूत्र आपके रिश्तों में जान डालने का कार्य करेंगे जिससे आपके जीवन में, आपसी रिश्तों में सकारात्मकता का भाव पैदा होगा। संक्षेप में कहूँ तो रिश्ते में गरमाहट लाने के लिए हमें एक-दूसरे को चुनना है ना की एक दूसरे के ख़िलाफ़ जाना है। इसे आप माँ अथवा ईश्वर के बिना शर्त प्यार की भावना से जोड़ कर देख सकते हैं। याद रखिएगा दोस्तों आपका जीवन ईश्वर द्वारा प्रदत्त रिश्तों के इर्द-गिर्द है अगर आप उन्हें नकारात्मक रूप में लेकर बोझा बनाएँगे, तब भी, और अगर उसे आप जीवन भर का साथ मानकर साथ लेकर चलेंगे तब भी। चुनाव आपका है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com