फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, आपने अक्सर लोगों को परिस्थिति, परिवार, परिचितों अथवा क़िस्मत को दोष देते हुए देखा होगा। जब भी उनके जीवन में कुछ भी ऐसा घटित होता है, जो उनकी आशा के अनुरूप नहीं होता है, वे उसके लिए किसी ना किसी को ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं। दूसरों को दोष देना दोस्तों एक ऐसी स्थिति है, जो आपको हर उस चीज से दूर कर देती है, जिसको पाने के आप हक़दार होते हैं क्यूँकि जब-जब आप दोष देते हैं, आप अपने जीवन में घटने वाली घटना के लिए किसी और को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। इसका अर्थ हुआ कि आप मन ही मन स्वीकारते हैं कि आपके जीवन का रिमोट किसी अन्य के हाथ में है, कोई और आपके जीवन को निर्देशित कर रहा है। बीतते समय के साथ धीरे-धीरे आपका अवचेतन मन भी स्वीकारना शुरू कर देता है कि आपके जीवन की कमान किसी और के हाथ में है। वैसे इस स्थिति का एक और बड़ा नुक़सान है, दोष देने की वजह से अक्सर लोग जीवन में कुछ नया सीखने और पहले से बेहतर बनने का मौक़ा छोड़ देते हैं।

याद रखिएगा दोस्तों, जब भी हम गलती करते हैं हमारा अंतर्मन, हमारा दिमाग़, हमारी आत्मा, हमारे अंदर मौजूद ईश्वर का अंश हमें चेतावनी देता है कि आप गलती कर रहे हो। लेकिन दूसरों को दोष देने की वजह से हम लापरवाह बन उस चेतावनी को नज़रंदाज़ कर देते हैं और फिर उसी गलती को जीवन में कई बार दोहराते हैं और अपने कर्म को नहीं स्वीकारते। हमारा यही नज़रिया हमें इस जीवन का मज़ा नहीं उठाने देता और हम जीवन के असली मक़सद ‘हमेशा ख़ुश रहना’ से दूर हो जाते हैं। इसे मैं आपको सामान्य जीवन में घटने वाली घटना पर हमारी अलग-अलग प्रतिक्रियाओं से समझाने का प्रयास करता हूँ-

मान लीजिए आप आस-पास के माहौल को निहारते हुए कहीं जा रहे थे। चलते वक्त आप रास्ते में पड़े एक पत्थर को देख नहीं पाते हैं और उससे टकरा जाते हैं। टकराने की वजह से आपके पैर में चोट लगती है, आपको तेज़ दर्द होता है। तभी आपका ध्यान  पास में बन रहे मकान पर जाता है। आप उसे देखते हुए बोलते हैं, ‘लोग बिलकुल भी ध्यान नहीं रखते हैं देखो पत्थर बीच सड़क पर ही छोड़ दिया।’ अर्थात् सड़क पर पड़े पत्थर के लिए आपने किसी और को ज़िम्मेदार या दोषी माना, उसके लिए उसे कोसा, उसकी शिकायत करी और आगे बढ़ गए।

अब इसी सीन को दूसरे नज़रिए से देखते हैं, आप आस-पास के माहौल को निहारते हुए कहीं जा रहे थे। आपको रास्ते में एक पत्थर पड़ा नज़र आया आपको लगा या विश्वास था कि इसे ठोकर मारने से मुझे कुछ नहीं होगा। आपने उसे ठोकर मारी लेकिन यह क्या आपकी आशा के विपरीत आपके पैर में चोट लग गई। हालाँकि आपका यह बर्ताव लापरवाही और चलता है वाले दृष्टिकोण से भरा हुआ था लेकिन इसके बाद भी आपको लगता है कि आपके साथ विश्वासघात हुआ है। 

विश्वासघात के भाव की वजह से आपको तेज़ ग़ुस्सा आता है और आप एक बार फिर उस पत्थर को जोर से लात मारते हैं। आपको फिर चोट लगती है, दर्द होता है, लेकिन वह पत्थर अभी भी वहीं, वैसा ही पड़ा था।

दोस्तों अब इसे तीसरे नज़रिए से देखते हैं। आप आस-पास के माहौल को निहारते हुए कहीं जा रहे थे। रास्ते में पत्थर नज़र आते ही आप अपने कदमों को सम्भालते हैं और ध्यान रखते हुए उससे बिना टकराए, बचकर निकल जाते हैं। ठोकर खाने से बचने की वजह से आपको अच्छा लगता है और आप अच्छे मूड के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाते हैं।

एक सम्भावना और बनती है, आप आस-पास के माहौल को निहारते हुए कहीं जा रहे थे। अचानक आपको बीच रास्ते पर पड़ा हुआ पत्थर नज़र आया। पत्थर को देखते ही आपके मन में विचार आता है, ‘मैंने तो इसे समय पर देख लिया और खुद को चोट लगने से बचा लिया। पर अगर कोई अन्य राहगीर इससे टकरा गया तो उसे गम्भीर चोट लग सकती है।’ विचार आते ही आप उस पत्थर को बीच रास्ते से हटाकर थोड़ी दूरी पर रख देते हैं और रास्ते को सामान्य बना देते हैं। ऐसा करते ही आपको असीम आनंद का एहसास होता है। आप खुश होते हैं क्यूँकि आपने खुद को नहीं बल्कि दूसरों को भी परेशानी से बचाया है। आप एक नई ऊर्जा से भर जाते हैं और ख़ुशी-ख़ुशी अपने अगले काम के लिए आगे बढ़ जाते हैं।

दोस्तों परिस्थिति एक ही थी बस उसे देखने का आपका नज़रिया अलग था और उस अलग नज़रिए ने ही आपके जीवन में सारा फ़र्क़ पैदा किया था। दोस्तों अगर आप अपने जीवन में ख़ुशी की मात्रा बढ़ाना चाहते हैं, कुछ अलग, कुछ बहुत ही अच्छा या कुछ ऐसा सकारात्मक महसूस करना चाहते हैं, जैसा आपने कभी नहीं किया, तो आज से ही अपने नज़रिए पर काम करना शुरू कर दें और हर पल लोगों की मदद करने का भाव अपने अंदर रखना शुरू कर दें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com