फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


हाल ही में मध्यप्रदेश के खंडवा शहर के एक प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल द्वारा शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए आमंत्रित किया गया। चूँकि ट्रेनिंग सुबह 8 बजकर 30 मिनिट से शुरू करनी थी इसलिए मैंने वहाँ एक दिन पूर्व शाम को पहुँचने का निर्णय लिया। शाम को होटल पहुँचने के पश्चात मुझे एहसास हुआ कि मेरा सहायक ट्रेनिंग मैन्यूअल के साथ फ़ोल्डर रखना भूल गया है। कुछ पलों के लिए तो मैं विचलित हुआ, लेकिन फिर मैंने सोचा फ़ोल्डर ना होने से क्या फ़र्क़ पड़ता, मैन्यूअल तो मेरे पास है ही। ख़ैर विचारों की इस ऊहापोह से बाहर आते ही मेरा सामना एक नई समस्या से हुआ, होटल द्वारा प्रदत्त लिनेन एकदम गंदे थे। ऐसा लग रहा था मानों पहले से उपयोग किए गए कमरे को ठीक-ठाक करके अगले ग्राहक को दे दिया गया हो। मैंने हाउस कीपिंग स्टाफ़ से निवेदन कर अपनी समस्या का समाधान कराया और रात को लगभग 12 बजे अपने दिन को समाप्त कर रिलैक्स कर पाया।

ख़ैर इस ट्रेनिंग से सम्बंधित चुनौतियाँ अभी मेरे लिए खत्म नहीं हुई थी। अगले दिन सुबह नाश्ते के दौरान वेटर द्वारा गिरे भोजन से मेरे सूट की पेंट पूरी तरह ख़राब हो गई थी। मैंने अपने बड़े लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए खुद को संयमित किया और जींस पहनकर, सेमी फ़ॉर्मल डे्स में ही ट्रेनिंग लेने गया। ख़ैर ईश्वर की कृपा और संतुलित मनःस्थिति की वजह से ट्रेनिंग की शुरुआत बहुत ही अच्छी रही। लेकिन मेरे लिए परीक्षा अभी भी बाक़ी थी, ब्रेक के दौरान सर्टिफ़िकेट पर हस्ताक्षर करते समय मुझे एहसास हुआ की आयोजक द्वारा बनवाए गए ट्रेनिंग प्रमाणपत्र पर ‘सर्टिफ़िकेट’ की स्पेलिंग ही ग़लत लिखी हुई है। मैंने इन सभी चुनौतीपूर्ण घटनाओं को एक माला में पिरोया और ट्रेनिंग के अंत में एक सीख के रूप में सभी पार्टिसिपेंट से साझा किया।

दोस्तों एक साथ इतनी अप्रिय घटनाओं का होना मुझे क़िस्मत का मारा या फूटी क़िस्मत वाला नहीं बनाता। या फिर ईश्वर प्रदत्त दिन को मेरे लिए बहुत बुरा या भारी नहीं बनाता। ऐसा सोचना भी ग़लत होगा क्यूँकि जो भी कार्य करेगा या ऐक्शन लेगा, उसे कई बार आशा के विपरीत परिणामों का सामना करना ही पड़ेगा। हम सभी को अपने जीवन में कभी ना कभी तो अप्रिय प्रसंगों का सामना करना ही पड़ता है। लेकिन जो इंसान इन अप्रिय प्रसंग को जीवन के खेल का एक हिस्सा मान, धैर्यवान रहते हुए डील करता है, वही विजेता बन पाता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो अगर आप हर हाल में विजेता बनना चाहते हैं, तो आपको अपने कार्य को खेल की तरह करते हुए, चुनौतियों या परेशानियों को मनोरंजन का साधन बनाना सीखना होगा और इसके लिए आपको अपने मन पर क़ाबू करना सीखना होगा।

इस दुनिया में हज़ारों-लाखों लोग हैं जो हमसे अधिक परेशानी वाला, दुःख भरा जीवन हंसते-हंसते जी रहे हैं। वे हमसे ज़्यादा चुनौतियों या कठिनाइयों का सामना करते हैं, वे हमसे कई गुना ज़्यादा मेहनत करते हैं, कई गुना अधिक धोखे या घात-प्रतिघात सहते हैं, लेकिन फिर भी मस्त और खुश रहते हैं। असल में उन्होंने अपने मन को क़ाबू करना और हर हाल में खुश रहना सीख लिया है।

हमें भी अपने मन का स्वामी बनना सीखना पड़ेगा, जिससे चिंता, शोक, दुःख जैसे नकारात्मक शत्रु हमारे मन-मस्तिष्क पर क़ब्ज़ा  करके हमारे स्वास्थ्य और शांति का हरण कर सके और हमें नकारात्मक भावों के साथ जीने के लिए मजबूर कर दें। मेरी नज़र में साथियों यह भ्रम और अज्ञान के आधार पर खुद के बनाए नरक में रहने के समान होगा।

अगर हमें अप्रिय प्रसंगों के बीच अपनी शांति बरकरार रखते हुए जीवन जीना है तो अपनी बुद्धि को जागृत अवस्था में रखते हुए याद रखना होगा कि कर्तव्य का पथ संघर्षों से भरा है जहाँ हर पल नई-नई बाधाएँ आ सकती हैं और हमें उनसे निपटने के लिए तैयार रहना होगा। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमें जीवन के खेल को समझते हुए परिस्थितियों के प्रभाव से मस्तिष्क को बेक़ाबू होने से बचाना सीखना होगा। इसके लिए दोस्तों आज हम मिलकर एक निर्णय लेते हैं, ‘आज से हम धैर्य रखते हुए, अच्छी-बुरी हर परिस्थिति में एक समान हंसते-मुस्कुराते रहेंगे और अपने मानसिक संतुलन को नहीं बिगड़ने देंगे क्यूँकि कर्म करते हुए आनंदपूर्वक रहने का एक ही सूत्र हैं, ‘सदा प्रसन्न रहिये और ईश्वर का स्मरण करते हुए याद रखिए, वह कभी अपने बच्चों के साथ ग़लत नहीं कर सकता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com