फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

ज्ञान पर आधारित दूसरों की अच्छी बातों की सराहना करना अच्छी बात है लेकिन अधूरी जानकारी या अज्ञानता के आधार पर अपनी गौरवशाली बातों को भुला देना या नज़रंदाज़ करना और दूसरों को अपने से श्रेष्ठ मानना, मेरी नज़र में मानसिक दिवालियेपन से अधिक कुछ भी नहीं है। ऐसा ही कुछ अनुभव मुझे एक विद्यालय में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग के दौरान हुआ। मीटिंग के पश्चात एक सज्जन सामान्य बातचीत के बाद बोले, ‘सर, आज बच्चों को समझने, अपनी बातें सही तरीक़े से बताने, सही शिक्षा देने संबंधी, आपकी सभी बातें बहुत अच्छी थी। लेकिन मुझे लगता है, अगर आप इस विषय को समय की कसौटी पर परखी हुई अमेरिकन तकनीकों से बताते तो ज़्यादा अच्छा रहता। हमारे देश में तो तकनीकों से सफलता पाने का चलन अभी-अभी शुरू हुआ है।’ उनकी नादानी भरी बातों को सुन मुझे हंसी आ गई मैंने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘सर, अगर समय की कसौटी पर परखी हुई बातों का ही सवाल है, तो हमारे देश की बातें ज़्यादा सटीक और पुरानी है।’

मेरी बात सुन उन्हें आश्चर्य तो हुआ लेकिन वे अभी भी असहमत थे। मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘सर, वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत जैसे सभी धर्मग्रंथों में हमें जीवन जीने का सही तरीक़ा ही तो सिखाया गया है। अगर आप गहराई में जाकर देखेंगे तो आपको एहसास होगा कि जो हमारे ऋषि-मुनियों ने हज़ारों वर्ष पहले कहा था, वह अब विदेशी खोज रहे हैं।

बल्कि ऐसे भी कई उदाहरण हैं जहाँ विदेशियों ने उन्हीं बातों को नए तरीके से सजाकर हमें ही वापस परोस दिया है। हमारे यहाँ जीवन को पूर्णता के साथ जीने के तरीक़ों को धर्म के साथ जोड़कर बताया गया है। अज्ञानता व अपनी मूल भाषाओं प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी का ज्ञान ना होने के कारण हम इसे दक़ियानूसी मान, छोड़ देते हैं, उसमें छिपे गूढ़ अर्थों को समझने का प्रयास नहीं करते हैं। इसके ठीक विपरीत अंग्रेज़ी को भाषा से अधिक फ़ैशन मानना और अधिक काम में लेना भी आपको अपनी मूल विचारधारा से दूर ले जाकर, उनके क़रीब ले जाता है। इसे मैं आपको आचार्य चाणक्य के द्वारा अनुमानतः 376 ई॰पु॰ से 283 ई॰पु॰ के बीच राजनीति, अर्थनीति, कृषि और समाजनीति आदि विषयों पर आधारित चाणक्य नीति के उदाहरण से समझाता हूँ जो आज भी 100% प्रासंगिक है। आचार्य चाणक्य ने कहा था, ‘कुशल और योग्य संतान जहाँ माता-पिता का अभिमान होती है और कुल का नाम रोशन करती है, वहीं श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण में अपना विशिष्ट योगदान देती है।’ लेकिन दोस्तों मुख्य प्रश्न आता है कि संतान को इतना योग्य कैसे बनाया जाए? आईए आज मैं आपको इस विषय में उनकी कही कई बातों में से कुछ मुख्य बातों को 5 सूत्रों के रूप में बताता हूँ-

पहला सूत्र - संतान को सदाचारी बनाएँ
आचार्य चाणक्य के अनुसार, संतान का सदाचारी होना वह पहला और मुख्य गुण है जिसके बिना अच्छे और सुखी परिवार व समृद्ध राष्ट्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। चूँकि माता-पिता बच्चों के प्रथम शिक्षक होते हैं, इसलिए सदाचारी व्यवहार की मज़बूत नींव बनाने की पूरी ज़िम्मेदारी उनकी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए माता-पिता को बच्चों को ऐसे संस्कार देने चाहिए जिससे संतान श्रेष्ठ बन सकें। आचार्य चाणक्य ने कहा है, ‘ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है। इसलिए अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ।’

दूसरा सूत्र - सच्चाई का महत्व बताएँ
आचार्य चाणक्य ने कहा था, सच्चाई के साथ ही आप अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर सकते हैं। लेकिन झूठ बच्चों को आसानी से पारिस्थितिक सफलता का एहसास कराता है, इसलिए बच्चे जल्दी इसके आदि बन जाते हैं। इसलिए पालकों को बच्चों को इस आदत से बचाने के लिए सचेत और गम्भीर रहना होगा। पालकों  को अपने आचरण से बच्चों को इसका महत्व सिखाना होगा।

तीसरा सूत्र - संतान को अनुशासित जीवन जीना सिखाएँ
आचार्य चाणक्य के अनुसार बिना अनुशासन जीवन में सफल होना असम्भव है। अनुशासनहीनता, जीवन में आपके संघर्ष को बढ़ा देती है। इसलिए बच्चों को अनुशासन के महत्व को समझाना अति आवश्यक है।

चौथा सूत्र - शिक्षित बनाएँ
आचार्य ने कहा था, ‘जो माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते हैं वे शत्रु समान हैं। विद्याहीन बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत किए जाते हैं, जैसे हंसों की सभा में बगुला।’ उनका मानना था कि शिक्षा आपको अच्छे और बुरे में भेद करना सिखाती है और आपके जीवन से सभी प्रकार के अंधकार को दूर करती है। साथ ही शिक्षित व्यक्ति अपने जीवन में कोई भी कार्य कर सकता है और इसके विपरीत अशिक्षित होना आपके जीवन को व्यर्थ कर सकता है। इसलिए शिक्षित कर बच्चों को जीवन के लिए तैयार करें, उसे आदर्श शिक्षा के बारे में बताएँ। चाणक्य नीति में उन्होंने कहा भी है, ‘शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।’

पाँचवा सूत्र - परिश्रमी बनाएँ
चाणक्य नीति के अनुसार, ‘सफलता आपके हालात देखकर नहीं, आपकी मेहनत देखकर आएगी।’ इसलिए अपने बच्चे को परिश्रम करने के लिए प्रेरित करें, उसे परिश्रम का महत्व सिखाएँ। परिश्रमी जीवन में आसानी से लक्ष्य प्राप्त करते है। परिश्रम करते वक्त आने वाली चुनौतियों के विषय में उन्होंने कहा था, ‘जीवन और चुनौतियाँ हर किसी के हिस्से में नहीं आती हैं, क्यूँकि क़िस्मत भी क़िस्मत वालों को आज़माती है।’

इतना ही नहीं दोस्तों आचार्य चाणक्य ने बच्चों में उक्त विशेषताएँ विकसित करने के लिए एक गोल्डन रूल भी बताया है। उनके अनुसार बच्चों को पहले 5 साल तक दुलार के साथ पालना चाहिए, उसके बाद अगले 5 साल तक डाँट-फटकार के साथ। लेकिन जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए तब उसके साथ दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए। आशा करता हूँ उपरोक्त पाँच सूत्रों से आप बच्चों में मनचाही विशेषताएँ विकसित कर पाएँगे।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com