फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, बच्चों की क़ाबिलियत निखारने, उन्हें जीवन में कुछ अच्छा और बड़ा करने, साथ ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण उन्हें अच्छा इंसान बनाने में, बोले हुए शब्द बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। जी हाँ दोस्तों, जिस तरह विचार आपको बना या बिगाड़ सकते हैं, ठीक उसी तरह बोले हुए शब्द भी आपके जीवन की दिशा तय कर सकते हैं। इसे मैं आपको अमेरिका के बोस्टन शहर की एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।

बर्ट एवं जॉन जेकब का जन्म एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। दोनों ही छः भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। जब दोनों भाई एलीमेंट्री स्कूल में पढ़ रहे थे तब इनके माता-पिता का एक ज़बरदस्त ऐक्सिडेंट हुआ। जिसमें माँ तो एक लम्बे इलाज के बाद ठीक हो गई, लेकिन पिता के दाहिने हाथ ने हमेशा के लिए काम करना बंद कर दिया। लम्बी चिकित्सीय सहायता के बाद भी फ़ायदा ना मिलने के कारण उत्पन्न हुए तनाव और ज़िम्मेदारियों के दबाव की वजह से पिता काफ़ी चिड़चिड़े और ग़ुस्सैल स्वभाव के हो गए थे। अक्सर वे अकारण ही बच्चों पर चिढ़ ज़ाया करते थे और जोर-जोर से चिल्लाकर डाँटा करते थे।

पिता के स्वभाव और परिस्थितियों की वजह से ग्रेड स्कूल तक आते-आते परिवार की स्थिति बहुत बिगड़ गई। छोटी-मोटी ज़रूरतों को पूरा करना या उनके ख़्वाब देखना भी परिवार के सदस्यों के लिए सम्भव नहीं था। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस परिवार में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था। लेकिन इतनी चुनौतियों और परेशानी के बाद भी माँ हमेशा अपने बच्चों से कहा करती थी, ‘देखो!, ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है!’ 

इसी भावना को वे अपने छहों बच्चों में भी विकसित करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने डिनर टेबल पर छहों बच्चों से एक ही प्रश्न पूछना शुरू कर दिया, ‘बताओ बच्चों, आज दिनभर में तुम्हारे साथ क्या अच्छा हुआ?’ बच्चों का जवाब सुनते ही वे फिर से कहती थी, ‘देखो!, ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है!’ 

बर्ट एवं जॉन के अनुसार डिनर टेबल पर की गई बातें रोज़ उनके परिवार का माहौल ख़ुशनुमा बना दिया करती थी और वे ही नहीं बल्कि परिवार के सभी सदस्य दिनभर में आई परेशानियों, चुनौतियों की वजह से नकारात्मकता पर चर्चा करने के स्थान पर दिनभर के सबसे अच्छे, सबसे विचित्र या फिर सबसे मज़ेदार पल पर चर्चा किया करते थे, जिसकी वजह से परिवार के सभी सदस्यों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ ज़ाया करती थी।

जॉन के मुताबिक़ जिन परिस्थितियों में उनके परिवार के सदस्यों में ‘पीड़ित मानसिकता’ अर्थात् ‘विक्टिम मेंटेलिटी’ विकसित होना चाहिए थी, वहाँ माँ के द्वारा डाली गई इस आदत ने सभी के अंदर आशा के भाव को जगा दिया था। इसलिए परिवार के सभी सदस्य जब कुछ नहीं था तब भी, जीवन के प्रति आशावादी रहते थे।

इतना ही नहीं दोस्तों बर्ट एवं जॉन जेकब की माँ ने किचन में काम करते वक्त, विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी गाना गाकर, अभिनय करके, अच्छी कहानियाँ सुनाकर सभी बच्चों को जीवन के दो महत्वपूर्ण पाठ सिखाए। पहला, खुश रहना परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता है। दूसरा, हर हाल में विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक, आशावान और ज़िंदादिल बने रहना एक साहसी विकल्प है, जिसे तुम्हें रोज़ चुनना होगा।

दोस्तों सालों तक रोज़ दिए गए सकारात्मक अफ़रमेशंस का नतीजा यह हुआ कि दोनों भाइयों अर्थात् बर्ट एवं जॉन जेकब ने चुनौतियों भरे माहौल और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी ‘लाइफ इज़ गुड’ टी-शर्ट कंपनी की स्थापना करी जिसका आज सालाना टर्नओवर 100 करोड़ डॉलर से ज़्यादा है। अपने जीवन के अनुभव के आधार और माँ के द्वारा सिखाए गए जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पाठ की वजह से व्यापार में मिली सफलता पर दोनों भाइयों ने टी-शर्ट कम्पनी का ध्येय वाक्य ‘जीवन परफ़ैक्ट नहीं है, जीवन आसान नहीं है, जीवन अच्छा है अर्थात् लाइफ इज़ गुड!’ रखा है। वैसे दोस्तों, यह मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि यह बात बर्ट एवं जॉन जेकब ने अपनी पुस्तक ‘लाइफ इज़ गुड’ में बताई है।

आज सफल कम्पनी के मालिक होने के बाद अपनी माँ के द्वारा बचपन में पूछे गए प्रश्न को वे अपनी कम्पनी के कर्मचारियों से पूछते हैं, ‘बताओ, आज दिनभर में क्या अच्छा हुआ?’ या फिर ‘मुझे कुछ अच्छा या सकारात्मक अनुभव सुनाओ।’ उनके द्वारा पूछे गए इस प्रश्न ने उनकी कम्पनी के माहौल को बेहतर बना दिया है, जिसके परिणाम सकारात्मक मिले हैं।

दोस्तों, प्रतिदिन क्या अच्छा घटा को याद करना, उस पर विचार करना आपको जीवन में आगे बढ़ने, प्रगति करने का मौक़ा देता है। याद रखिएगा, जो लोग चुनौतियों या विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मकता देखते हैं, वे हमेशा खुश और आशावान रहते हैं, जिससे उन्हें नए आइडिया मिलते हैं और यही आइडिया उन्हें जीवन में आगे बढ़ने, सफल होने का मौक़ा देते है और वे अपने सपनों का सफल जीवन जी पाते हैं। तो चलिए दोस्तों आज से इसी विचार को हम अपने जीवन में आज़माते हैं और इसकी वजह से आए फ़र्क़ को पहचानने का प्रयास करते हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com