फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, मेरा मानना है कि अगर आप बच्चों को जीवन में सुखी, संतोषी और सफल बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले कक्षा या परीक्षा में नम्बर -1 बनाने की चाह को छोड़कर आत्मविश्वासी अर्थात् कॉन्फिडेंट बनाने के विषय में सोचना होगा। जी हाँ साथियों, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यूँकि पढ़ाई का मुख्य उद्देश्य ज्ञानार्जन कर जागरूक बनाना है, नम्बर -1 आना नहीं। जब भी आप अपने बच्चे को हर क्षेत्र में विशेष या नम्बर- 1 बनाने के लिए काम करते हैं, तब-तब आप जाने अनजाने में बच्चों के साथ तुलनात्मक व्यवहार करते हैं, उनके ऊपर अनावश्यक दबाव पैदा करते हैं। यही अनावश्यक दबाव उन्हें दो तरफ़ा नुक़सान पहुँचाता है। पहला, वे अपनी विशेष योग्यता अर्थात् यूनिकनेस पहचानने से वंचित रह जाते हैं और दूसरा, वे खुद की क्षमताओं, योग्यताओं पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारा व्यवहार उनके आत्मविश्वास को नुक़सान पहुँचाकर हमें उनसे दूर कर देता है।

दोस्तों मेरा मानना है कि जब बच्चा आत्मविश्वासी होता है, तभी वह अपने क्षेत्र में बेहतर बनकर, जीवन को अच्छी तरह जी पाता है। अगर आपका भी लक्ष्य बच्चे को उद्देश्यपूर्ण, सुखी, संतोषी और सफल बनाना है तो दोस्तों सबसे पहले आपको उसे आत्मविश्वासी बनाना होगा और इसके लिए आप प्लेसिबो इफ़ेक्ट की सहायता ले सकते है। इसे मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ-

मारिया अपनी मां के साथ अमेरिका के न्यूयॉर्क में एक छोटे से अपार्टमेंट में रहती थी। वह उम्र में ना तो बहुत छोटी थी और ना ही बहुत बड़ी। उसका क़द ना तो बहुत छोटा था, ना ही बहुत लम्बा। यही स्थिति उसके रंग-रूप की थी अर्थात् ना तो वह बदसूरत थी और ना ही बहुत ख़ूबसूरत। कुल मिला कर कहूँ तो मारिया एक औसत लड़की थी। हालाँकि वह एक बड़ी कंपनी में सचिव के रूप में काम कर रही थी लेकिन उसका जीवन काफी उबाऊ और सांसारिक था। वह हमेशा अपने काम और ज़िम्मेदारियों में ही डूबी रहती थी और उसे लगता था कि उसके काम पर भी कोई ध्यान नहीं देता है।  उसके आसपास रहने वाले लोग भी उसे उतना ही उबाऊ मानते थे, जितना कि उसकी जिंदगी उबाऊ थी।

एक दिन मारिया अपने कार्यालय जाने के लिए घर से थोड़ा जल्दी निकल गई। बाज़ार से जाते वक्त मारिया की नजर एक टोपी की दुकान पर पड़ी। अतिरिक्त समय और जिज्ञासा की वजह से मारिया उस दुकान में अंदर चली गई। दुकान के अंदर उस वक्त एक छोटी सी बच्ची अपनी माँ के साथ थी। माँ उस बच्ची को अलग-अलग टोपी पहना कर पसंद करवाने की कोशिश कर रही थी। मारिया ने सोचा क्यूँ ना मैं भी एक टोपी पसंद कर लूँ? विहकार आते ही वह भी अलग-अलग टोपियाँ पहन कर देखने लगी।

कई टोपियाँ ट्राई करने के  बाद भी मारिया को कोई टोपी पसंद नहीं आ रही थी उसने एक अंतिम टोपी ट्राई करने का निर्णय लिया। अभी मारिया ने उस टोपी को पहना ही था कि दुकान में मौजूद छोटी सी बच्ची अपनी माँ से बोली, ‘माँ, वह देखो दीदी उस टोपी में कितनी सुंदर लग रही है।’ माँ ने बच्चे द्वारा उठाई गई उँगली की दिशा में देखा और बोला, ‘वाक़ई वह दीदी तो बहुत सुंदर लग रही है।’ तभी उस दुकान में एक और ग्राहक आया और मारिया को उस टोपी में देखकर उसकी तारीफ़ करने लगा।

मारिया ने उसी वक्त टोपी ख़रीदने का निर्णय लिया और बिलिंग काउंटर पर चली गई। बिलिंग पर बैठे युवक ने भी मारिया की पसंद की बहुत तारीफ़ की। तारीफ़ सुनकर मारिया को बहुत अच्छा लगा और उसके चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी और चमक आ गई।  मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ मारिया ने बिलिंग क्लर्क को धन्यवाद दिया और भुगतान कर अपने ऑफ़िस की ओर चल दी। आज रास्ते में मारिया का ध्यान ताजी हवा, खिले हुए फूल, सुहाने मौसम, चहचहाती चिड़ियों पर जा रहा था। उसे यह सब एक सुरीली धुन की तरह लग रहा था। इन सब के बीच आज मारिया की चाल भी बदल गई थी। चलते वक्त वह बहती हुई हवा के समान लग रही थी।

जब वह कार्यालय की इमारत में पहुंची, तो दरबान ने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला और उसे गुड मॉर्निंग विश किया। आज से पहले तो मारिया पर उसने कभी ध्यान नहीं दिया था। लिफ़्ट में घुसते ही मारिया से वहाँ मौजूद लोगों ने फ़्लोर नम्बर पूछा और उसका बटन दबाया। ऑफिस में आज सभी लोगों का व्यवहार मारिया को बदला हुआ सा लग रहा था। उसे लग रहा था मानो कार्यालय में लोग उसे आज पहली बार देख रहे है और उसकी चापलूसी करते हुए कह रहे हैं कि, आज वह कितनी प्यारी लग रही है। आज उसके बॉस ने भी कार्य के विषय में चर्चा करते हुए उसके साथ दोपहर का भोजन किया।

उस दिन जब यह जादुई कार्यदिवस पूर्ण हुआ तो मारिया ने बस के बजाय टैक्सी से घर जाने का निर्णय लिया। उस दिन जैसे ही उसने टैक्सी रोकने के लिए हाथ ऊपर उठाया एक के स्थान पर दो टैक्सी रुक गई। मारिया ने मुस्कुराते हुए एक टैक्सी को चुना और उसकी पीछे वाली सीट पर बैठ गई। वह इस चमत्कारी दिन के बारे में सोचकर हैरान थी। आज उसका जीवन बदल गया था। उसने ईश्वर को इस नई चमत्कारी टोपी के लिए धन्यवाद दिया।

घर पहुँचने पर मारिया की माँ ने दरवाज़ा खोला और उसे देखते ही कहा, ‘मारिया, तुम आज कितनी सुंदर लग रही हो। तुम्हारा चेहरा, आँखें सब जगमगा रही हैं। तुम्हारे चेहरे और आँखों में ऐसी चमक तो मैंने सिर्फ़ तुम्हारे जन्म के समय महसूस की थी।’ मारिया ने मुस्कुराते हुए उँगली से सिर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘हाँ माँ, यह सब मेरी इस नई टोपी की वजह से हो रहा है। इसकी वजह से आज का दिन मेरे जीवन का सबसे शानदार दिन था!’

माँ ने मारिया के सिर की ओर देखते हुए कहा, ‘कौन सी टोपी? तुमने कोई टोपी नहीं पहन रखी है।’ माँ की बात सुन मारिया घबरा गई, उसने अपने हाथ से सिर को छुआ और महसूस किया कि उसके जीवन को बदलने वाली टोपी तो उसके सिर पर थी ही नहीं। वह चौंककर सोचने लगी आँखी टोपी कहाँ रह गई? कहीं मैंने उसे टैक्सी में तो नहीं छोड़ दिया? या फिर लंच वाले स्थान पर? या फिर कार्यालय में? सोचते-सोचते उसे ध्यान आया की टोपी तो वह दुकान के बिलिंग काउंटर पर ही छोड़ आई थी।

असल में दोस्तों उस दिन मारिया की आँखों और चेहरे पर चमक टोपी की वजह से नहीं अपितु उन विचारों की वजह से थी जिसने उसे विश्वास दिलाया था कि आज वह बहुत ख़ूबसूरत लग रही है। ठीक इसी तरह दोस्तों अगर हमें अपने बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाना है तो हमें उन्हें समय-समय पर सही तरीके से एप्रीशिएट करते हुए विश्वास दिलाना होगा कि वे ख़ास हैं। उन्हें ईश्वर ने किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाया है। फिर भले इस विश्वास को दिलाने के लिए आपको प्लेसिबो इफ़ेक्ट का ही सहारा क्यों ना लेना पड़े।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com