फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, आपने बचपन में हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन जी की लिखी कहानी, ‘उसी से ठंडा, उसी से गर्म’ ज़रूर सुनी होगी, जिसमें एक काल्पनिक पात्र मियाँ बालिश्तिये एक लकड़हारे को ठंड में फूंक से हाथ गर्म करते और फूंक से ही गर्म आलू को ठंडा करते देख हैरान रह गए थे। उनकी परेशानी या उलझन की मुख्य वजह फूंक से ही ठंडा और फूंक से ही गर्म होना था।

ठीक इसी तरह दोस्तों, ज़्यादातर लोग जिस कारण या वजह से अपने जीवन में कुछ बड़ा नहीं कर पाते हैं, उसी वजह से कुछ लोग बड़ा और अनूठा कर जीवन में सफल हो जाते हैं। जी हाँ साथियों, इसे मैं आपको एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ। एक शराबी के दो पुत्र थे, उनमें से एक अपने पिता की ही तरह बहुत ज़्यादा शराब पीता था, तो दूसरा शराब से बहुत दूर रहता था। जब उनसे इसकी वजह पूछी गई तो शराब पीने वाले लड़के ने कहा, ‘मैंने तो बचपन से ही अपने पिता को शराब पीते हुए देखा है, इसलिए मैंने भी कम उम्र में ही शराब पीना शुरू कर दिया था।’ वही दूसरे लड़के का मानना था, ‘मैंने अपने पिता को बचपन से शराब पीते हुए और उसकी वजह से घर में झगड़े होते हुए, ज़रूरी कार्यों के लिए पैसे की कमी और पिता के स्वास्थ्य को बिगड़ते हुए देखा, इसलिए मैं कभी शराब नहीं पीता।’

दोस्तों कारण एक ही था, लेकिन दोनों के जीवन पर उसका प्रभाव बिल्कुल अलग-अलग था। इसकी मुख्य वजह उनका जीवन के प्रति अलग नज़रिया होना था। कोविद 19 के माहौल में भी दोस्तों यही बात हमें दूसरों से अलग बनाएगी। मार्च 2020 में पहली बार कोविद 19 की पहली लहर में लॉकडाउन लगने से लेकर तीसरी लहर में बिना लॉकडाउन या सीमित लॉकडाउन के ज़रिए सुरक्षित बाहर आने तक जीवन के प्रति हमारे नज़रिए ने बड़ी भूमिका निभाई है।

अगर मैं आपसे अपना अनुभव साझा करूँ तो वर्ष 2020 मार्च से 2022 के शुरुआती माह तक लगभग दो वर्षों की इस यात्रा में मैंने धैर्य, साहस और लचीले रहते हुए फिर से बाउंस बैक करने की शक्ति को अपने अंदर विकसित होते हुए देखा है। साथ ही इसी समय में मुझे खुद की क्षमताओं को पहचानने का, उन्हें निखारने का मौक़ा भी मिला और मैंने अपने परिवार के साथ एक अच्छा समय भी बिताया। इसके साथ ही मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा ‘कृतज्ञता का पाठ’ भी इसी दौरान सीखा।

दोस्तों, मार्च 2020 से लेकर आजतक मैं अकेला नही हूँ जो अपने जीवन में आगे बढ़ा हो, बल्कि हज़ारों या लाखों लोगों ने कोविद 19 से हार मानने से मना कर दिया था और वे इसी दौरान एक मनुष्य के रूप में पहले के मुक़ाबले कई गुना मज़बूत होकर उभरे हैं। इसे मैं आपको हमारे देश के एक प्रमुख शिक्षाविद के व्यक्तिगत अनुभव से बताता हूँ, जो अपनी ऑनलाइन कक्षा के पहले सभी छात्रों को कैमरा ऑन करके नमस्ते करने या व्यक्तिगत रूप से बात करने के लिए कहते थे।

एक दिन अपनी कक्षा में उन्होंने नोटिस किया कि दो छात्रों की पृष्ठभूमि थोड़ी असामान्य है। पहले उन्होंने कलाई नाम की छात्रा से पूछा, ‘कलाई, आप तपती हुई धूप में बैठी हुई हैं और इसी वजह से आपको काफ़ी पसीना भी आ रहा है और आपकी पृष्ठभूमि में बहुत सारी मूर्तियाँ दिख रही हैं। आप इस वक्त कहाँ से अपनी कक्षा अटेंड कर रई हैं?’

कलाई बड़ी विनम्रता के साथ बोली, ‘अन्ना, यह हमारे गाँव का मंदिर है जो गाँव के प्रवेश द्वार के पास और मेरे घर से 4 किलोमीटर दूर है। हमारे गाँव में यही एक जगह है जहाँ सिग्नल मिलते हैं। मैंने मंदिर के अधिकारियों से बात कर एक समझौता किया है। जिसके तहत मैं रोज़ 6 से 7:30 तक मंदिर की सफ़ाई करती हूँ और उसके बाद यहीं से अपनी सभी कक्षाओं को अटेंड करती हूँ।’ शिक्षक ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘यह तो बहुत अच्छी बात है लेकिन तुम छाँव में क्यों नहीं बैठ जाती?’ कलाई मुस्कुराई और बोली, ‘आप बिलकुल भी चिंता ना करें, मुझे इसकी आदत है और वैसे भी पूरे गाँव में सिर्फ़ इसी जगह मोबाइल कनेक्टिविटी काफी अच्छी है और यहाँ से बिना परेशानी के अच्छे से पढ़ाई हो जाती है। इसीलिए मैं इस जगह से एक इंच भी नहीं हिलती और अब तो सूरज भी मुझे ज़्यादा परेशान नहीं करता। मुझे इसकी आदत हो गई है।’

इसके बाद शिक्षक ने दूसरे छात्र एल्बिन से कहा, ‘’एल्बिन तुम्हारी पृष्ठभूमि भी थोड़ी असामान्य है, तुम कहाँ बैठे हो?’ एल्बिन मुस्कुराते हुए बोला, ‘सर, मेरी समस्या भी कलाई की तरह है। मेरे गाँव में भी सिग्नल नहीं मिलते हैं। इसलिए अच्छी कनेक्टिविटी पाने के लिए सबसे अच्छी जगह मुख्य सड़क पर स्थित एक विशाल बरगद का पेड़ है। मैं हर सुबह अपने दिन के भोजन के साथ यहाँ आ जाता हूँ और इस बरगद के पेड़ की एक शाख़ के ऊपर बैठकर अपनी सारी कक्षाएँ अटेंड कर लेता हूँ।’  शिक्षक एल्बिन का जवाब सुन हैरान थे, उन्होंने तुरंत उससे अगला प्रश्न पूछा, ‘पर तुम ऊपर चढ़कर क्यों बैठे हो पेड़ के नीचे बैठकर भी तो अपनी कक्षा में भाग ले सकते थे?’ एल्बिन कुछ बोलने के स्थान पर जोर से हंसा और अपने कैमरे से पेड़ के नीचे छाँव में बैठे ढेर सारे बुजुर्ग लोगों को दिखाने लगा जिनमें से कुछ आपस में बातचीत में मशगूल थे, तो कुछ ताश खेलने में।

दोस्तों उपरोक्त दोनों छात्र बी॰ई॰ कर रहे हैं। इनकी कहानी पढ़कर मैं सोच रहा था एक ओर वे छात्र हैं जो इंटरनेट कनेक्शन, डोंगल आदि होने के बाद भी निर्बाध कक्षा में भाग नहीं ले पाते और दूसरी और यह छात्र किसी भी हाल में कक्षा छोड़ना नहीं चाहते।

दोस्तों हर परिस्थिति में आपके पास दो उपाय होते हैं। पहला, सभी कारणों को बताते हुए शिकायत करना और दूसरा उन्हीं कारणों को दृष्टिगत रखते हुए समाधान सोचना और उसपर काम करना। जी हाँ, दोस्तों हम सभी के पास किसी भी परिस्थिति में ना कहने के सौ कारण होते हैं लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें उस एक कारण को खोजना होगा जिसकी वजह से हम हाँ कह सके, उस बात को स्वीकार सकें। इसलिए दोस्तों जीवन में आगे बढ़ने, खुश रहने के लिए जो आपके पास है उसके लिए कृतज्ञ रहें, शिकायत की जगह उसकी प्रशंसा करें और उसके बाद दृढ़ संकल्प के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com