मन में शोर या शांति - चुनाव आपका…

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
‘क्या मुझे कुछ पल की शांति मिलेगी?’ इस जोर से गूंजती आवाज़ के साथ मित्र के घर पर मेरा स्वागत हुआ। अभिवादन के पश्चात मैंने अपने मित्र से पूछा, ‘भाई किस बात के लिए इतने परेशान हो रहे हो? क्या आज फिर किसी बात पर परिवार में से किसी से तनातनी हो गई है?’ मित्र बोले, ‘क्या बताऊँ यार, तुम्हें तो पता ही है शहर से इतना दूर इस सोसायटी में इतना महँगा घर सिर्फ़ इसलिए लिया था कि शहर की चिल्ल-पों से दूर शांति के साथ रह सकूँ। पर अब यहाँ भी रोज़ किसी ना किसी वजह से देर रात तक शोर रहने लगा है। कभी किसी के घर पार्टी, तो कोई झगड़ता रहता है, कुछ लोग तो इतनी ऊँची आवाज़ में संगीत सुनते हैं जैसे वे पूरी सोसायटी को सुनाना चाहते हैं। हद तो तब हो जाती है जब यह सब देर रात तक चलता रहता है।’
वैसे दोस्तों किसी भी तर्क से इस तरह के ग़लत सामाजिक व्यवहार को सही नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन उनके ग़लत व्यवहार के लिए अपना संयम खो देना भी शायद सही नहीं है क्यूँकि कोई भी इंसान किस तरह व्यवहार करेगा या अपना जीवन जिएगा, नियमों या संस्कारों का पालन करेगा या नहीं करेगा, कभी भी हमारे हाथ में नहीं रहता। लेकिन उसके व्यवहार पर हम कैसी प्रतिक्रिया देंगे, निश्चित तौर पर यह निर्णय हमारा रहता है और हमारा निर्णय ही हमारी मानसिक स्थिति तय करता है। इसे मैं आपको एक बहुत पुरानी कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूँ।
कला के क्षेत्र में रुचि रखने वाले राजा ने अपने राज्य के सबसे अच्छे चित्रकार को खोजने और पुरस्कृत करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो भी चित्रकार शांति का सर्वश्रेष्ठ चित्रण अपनी चित्रकारी से करेगा, उसे राजा पुरस्कृत करने के साथ-साथ सम्मानित करेंगे।
जल्द ही पूरे राज्य से शांति का चित्रण करने वाली, महान चित्रकारों की बहुत सारी बेहतरीन कलाकृतियाँ आने लगी। राजा ने सभी कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी लगाई। पूरे राज्य से लोग उस प्रदर्शनी को देखने के लिए पहुँचने लगे, सभी लोगों को एक कलाकृति बहुत पसंद आ रही थी जिसमें चित्रकार ने एक शांत नीली झील जो एक बहुत ऊँचे बर्फ़ के पहाड़ों के एकदम पास थी और झील व पहाड़ के ठीक ऊपर एकदम साफ़ नीले बादल थे। तस्वीर को देख ऐसा लग रहा था मानो नीले अम्बर के तले प्रकृति शांति के साथ आराम कर रही है। तस्वीर एकदम उत्कृष्ट और उद्देश्य के अनुरूप थी। सभी दर्शकों को लग रहा था यही कृति पुरस्कार जीतेगी।
शाम को दरबार में राजा ने जब पुरस्कार की घोषणा की, तो सभी लोग हैरान रह गए। राजा ने सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में दूसरी पेंटिंग को चुन लिया था। इस पेंटिंग में चित्रकार ने ऊबड़-खाबड़ से पहाड़, उफान पर बहती नदी जिसने आसपास के कई पेड़ों को जड़ से उखाड़ दिया था और ऊपर आसमान में बिजली चमक रही थी।
कुल मिलाकर ख़राब मौसम को चित्रित करती इस पेंटिंग को राजा ने क्यूँ शांति की सर्वश्रेष्ठ कृति के लिए चुना, कोई समझ नहीं पा रहा था। जब सभी लोगों ने राजा से इस विषय में प्रश्न करा तो वे बोले, ‘शायद आप सभी लोग इस पेंटिंग को क़रीब से और इसमें बारीकी से दर्शाई गई जीवन की सही छवि को देखने से चूक गए हैं।’ सभा में मौजूद लोगों के चेहरे देख राजा समझ गए कि वे लोग अभी भी उनकी बात से सहमत नहीं है या उनकी बात को समझ नहीं पाए हैं। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘आप इस पेंटिंग को क़रीब से देखिए, इसमें कलाकार ने चट्टानों के बीच की दरार में एक छोटी सी झाड़ी बनाई है जिसमें एक गौरैया ने अपना घोंसला बना रखा है। एक दम ख़राब, डरावने मौसम के बीच चिड़िया बिना किसी डर के शांति से अपने घोंसले में बैठी है। सब कुछ विपरीत होने के बाद भी उसने अपने विश्वास को डिगने नहीं दिया और अपनी मानसिक शांति को बरकरार रखा।’ सभा में उपस्थित सभी लोग राजा की पारखी नज़र और सोच के क़ायल थे।
जी हाँ दोस्तों, अकसर ज़्यादातर लोग शांति का सही मतलब ही समझ नहीं पाते हैं। शांति के साथ रहने का मतलब ऐसी जगह पर रहना नहीं होता, जहां किसी प्रकार का शोर, किसी प्रकार की परेशानी या अव्यवस्था ना हो। इसका सही अर्थ है सभी अव्यवस्थाओं, अनिश्चितताओं के बीच में रहकर भी आप अपने हृदय, अपने मन को शांत रख पाए। वास्तविक शांति मन की स्थिति है, परिवेश या माहौल की नहीं।
दोस्तों अगर आप भी शांति की खोज में हैं तो एलेनोर रूजवेल्ट की कही इस बात को ध्यान में रखिएगा, ‘शांति के बारे में सिर्फ बात करना पर्याप्त नहीं है, हमें उस पर यकीन भी करना होगा और सिर्फ यकीन करना भी पर्याप्त नहीं होगा, हमें उसके लिए काम भी करना होगा।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com