फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

चलिए दोस्तों, आज के शुभ दिन की शुरुआत बचपन में सुनी एक कहानी से करते हैं। बात कई वर्ष पुरानी है, महेश नाम का एक बहुत ही आलसी व्यक्ति हुआ करता था, वह हमेशा काम करने के लिए आसान रास्ते खोजा करता था, फिर भले ही वो रास्ता सही हो या ग़लत। एक दिन रास्ते में भूख लगने पर उसने अपनी आदत के अनुसार, सड़क किनारे किसी और के फलों के बगीचे में से फल तोड़कर खाने का निर्णय लिया और बिना बगीचे के मालिक से पूछे, फलों से लदे एक पेड़ पर चढ़कर, फल तोड़कर खाने लगा।

महेश के हाथ से ज़मीन पर फल गिरने से हुई आवाज़ ने बगीचे के मालिक को सचेत कर दिया। उसने अपना लट्ठ लेकर चोर को ढूँढने के लिए निकल पड़ा। जैसे ही इस बात का एहसास महेश को हुआ वह पेड़ से कूद जंगल की ओर भागा और वहाँ खोह में छुपकर बैठ गया। कुछ मिनटों बाद जब उसे स्थिति थोड़ी सामान्य लगी वह खोह से बाहर निकलकर अपने घर की ओर चल दिया।

रास्ते में महेश की नज़र एक लोमड़ी पर पड़ी जिसके दो पैर ख़राब थे और वह बहुत धीरे-धीरे लेकिन ख़ुशी-ख़ुशी घसीटते हुए चल रही थी। महेश सोचने लगा, ऐसी हालत में ख़ूँख़ार जानवरों के बीच यह लोमड़ी अभी तक ज़िंदा कैसे बची हुई है? ना यह दौड़ सकती है, ना यह शिकार कर सकती है ना ही यह अपना बचाव कर सकती है। उसकी समझ के अनुसार जंगल में तो जीवित रहने, भोजन का प्रबंध करने के लिए सक्षम होना आवश्यक है।

महेश के मन में लोमड़ी के भोजन को लेकर दुविधा चल ही रही थी कि उसे सामने से मुँह में मांस दबाए शेर आता हुआ दिखाई दिया। शेर को देख महेश समेत ही वहाँ मौजूद अन्य सभी जानवर डर गए और अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे।  महेश भी जान बचाने के लिए एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया।

इधर शेर को तो मानों इन सब से कोई मतलब ही नहीं था, वह तो अपनी मदमस्त चाल में चलता हुआ लोमड़ी के पास पहुँचा और अपने मुँह में दबाया हुआ मांस का टुकड़ा उसके पास गिराकर आगे बढ़ गया। इस पूरी घटना को देख महेश के मन में विचार आया कि मैं तो नाहक ही चिंता कर रहा था। ईश्वर ने जिसे जन्म दिया है, उसके लिए खाने का प्रबंध भी किया है।

महेश था तो आलसी ही, उसने इस घटना को खुद के हालात से जोड़ लिया और सोचने लगा जब प्रभु ने इस लोमड़ी के लिए खाने का इंतज़ाम करा है तो निश्चित तौर पर उसने मेरे लिए भी कुछ ना कुछ सोच रखा होगा और जब प्रभु ने ही मेरे बारे में सोच रखा है तो मैं फिर किसी भी कार्य के लिए क्यूँ परेशान होऊँ। यह विचार आते ही महेश ने सड़क किनारे एक सुरक्षित सा स्थान खोजा और वहाँ जाकर बैठ गया और सोचने लगा कि जैसे शेर लोमड़ी के पास पहुँचा था वैसे ही कोई ना कोई भोजन लेकर मेरे पास भी आएगा।

इसी इंतज़ार में दो दिन गुजर गए, महेश का अब तो भूख से बुरा हाल था। उसे लग रहा था कि तत्काल अगर खाने के लिए कुछ नहीं मिला तो मैं भूखा ही मर जाऊँगा। कोई और उपाय ना देख महेश उठा और आस-पास भोजन की तलाश में घूमने लगा। कुछ ही देर में उसे सड़क किनारे एक साधु-महात्मा का आश्रम नज़र आया। वह लगभग दौड़ते हुए वहाँ पहुँचा और उन्हें पूरा क़िस्सा सुनाकर, भोजन देने की गुज़ारिश करने लगा।

महात्मा जी ने पहले तो उसे भरपेट भोजन कराया और उसके बाद उन्होंने महेश से कहा, ‘तुम ईश्वर से इतने नाराज़ सिर्फ़ इसलिए हो क्यूँकि तुम्हें लग रहा है कि उन्होंने लोमड़ी के लिए तो भोजन का प्रबंध कर दिया पर तुम्हारे लिए नहीं करा?’ महेश बोला, ‘जी महाराज!, आप सही कह रहे हैं। ईश्वर मेरे साथ इतना पक्षपाती क्यूँ है? वैसे भी यह कोई पहला मौक़ा नहीं है, मेरे कई साथी जन्म से ही बहुत अमीर हैं, उनके लिए उनके पुरखे बहुत सारी धन-दौलत छोड़कर गए हैं। जबकि उसने मुझे इतने गरीब परिवार में जन्म दिया और साथ ही तीन छोटे भाई-बहन भी दे दिए, जिससे हर समय किसी ना किसी चीज़ की समस्या बनी ही रहती है।’

महेश का जवाब सुन महात्मा जी मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, तुम बिलकुल सही सोच रहे हो, जगत निर्माता परम पिता परमेश्वर ने सभी के लिए कुछ ना कुछ सोच रखा है, तुम भी उससे अछूते नहीं रह सकते हो। अर्थात् उनके पास तुम्हारे लिए भी कुछ ना कुछ योजना है और उन्होंने कई बार, अलग-अलग अनुभवों से, तरीक़ों से तुम्हें समझाने का प्रयास करा है। परंतु वत्स, तुम उसके इशारे को समझ ही नहीं पाए हो, थोड़ा गहराई में जाकर सोचोगे तो तुम्हें एहसास होगा कि वह तुम्हें लोमड़ी या तुम्हारे दोस्तों के समान आश्रित नहीं बनाना चाहता, बल्कि वह चाहता है कि तुम शेर बनो और दूसरों के लिए ज़रूरत की चीजों का इंतज़ाम करो। तुम गरीब परिवार में पैदा हुए, तो क्या फ़र्क़ पड़ता है। लेकिन अगर तुमने अपने भाइयों और परिवार के अन्य सदस्यों के अच्छे जीवन यापन का प्रबंध कर दिया तो हालात बदल जाएँगे।’

जी हाँ दोस्तों, अकसर हम अपने जीवन में ईश्वर द्वारा दिए गए संकेतों को ग़लत समझ लेते हैं और परिस्थितियों, क़िस्मत, दोस्तों, रिश्तेदारों, हालात आदि को दोष देते हुए, ईश्वर द्वारा मानव जीवन के रूप में दिए गए अनमोल तोहफ़े को बर्बाद कर देते हैं। हालात कुछ भी क्यूँ ना हों दोस्तों, हमेशा सकारात्मक सोच के साथ स्थितियों को देखें, ईश्वर द्वारा आपके लिए तय भूमिका को पहचानें और सकारात्मक सोच के साथ खुद को मज़बूत स्थिति में मान, पूरे दिल से प्रयास करें। जी हाँ दोस्तों, जीवन में जब भी ईश्वर किसी चीज़ को चुनने का मौक़ा दे तब आसान नहीं, सही चुनने का प्रयास करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com