फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों कुछ दिन पूर्व मुझे एक बड़ी अच्छी आध्यात्मिक कहानी पढ़ने का मौक़ा मिला। उस कहानी पर मंथन करने पर मुझे उसमें छिपे जीवन के कुछ मंत्र नज़र आए। आईए आज उन मंत्रों को समझने के लिए लेख की शुरुआत जीवन बदलने की क्षमता रखने वाली उसी शानदार कहानी से करते हैं।

सुदूर गाँव में एक मज़दूर विधवा महिला अपने बच्चे के साथ रहा करती थी। महिला जहाँ भी काम करने ज़ाया करती थी अपने बच्चे को साथ ले जाया करती थी। एक बार महिला को उस राज्य में बनने वाले मंदिर पर मज़दूरी का काम मिला, वह वहाँ भी अपने बच्चे को साथ ले काम करने पहुँच गई। एक दिन राजा अपने पूरे लवाज़ में अर्थात् मंत्रियों, सैनिकों, सेवकों के साथ मंदिर निर्माण कार्य की प्रगति देखने के लिए आया।

उस महिला का बच्चा राजा की शान-ओ-शौक़त, रुतबा देख सम्मोहित सा हो गया। जब तक राजा वहाँ रहे वह उन्हें एकटक देखता रहा। राजा के जाने के बाद वह बच्चा अपनी माँ के पास पहुँचा और बोला, ‘माँ, क्या मैं राजा से मिल सकता हूँ, उनसे बात कर सकता हूँ?’ माँ को उसका प्रश्न बाल मन की जिज्ञासा से अधिक कुछ नहीं लगा, वह उसका जवाब देने की जगह मुस्कुरा दी और उसे टाल गई।

उस दिन तो बच्चा चुप रह गया पर समय के साथ उसकी जिज्ञासा या राजा से मिलकर बात करने की इच्छा और प्रबल होती जा रही थी। उसने तय कर लिया था कि वो किसी ना किसी तरह राजा से मिलेगा और उनसे बातचीत करेगा। वह जिस किसी समझदार, समर्थ या बड़े व्यक्ति से मिलता था इसी प्रश्न को पूछा करता था। ऐसे ही कई वर्ष बीत गए और वह बच्चा अब युवा बन गया। एक दिन उस गाँव में एक साधु-महात्मा का आना हुआ। उनके प्रवचन पूर्ण होने के बाद यह युवा उनके समक्ष पहुँचा और चरण वंदन के पश्चात प्रश्न के रूप में अपनी जिज्ञासा रख दी।

महात्मा जी ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘वत्स, शहर के दक्षिण पूर्व में राजा के नवीन महल का काम चल रहा है, तुम वहाँ जाकर मज़दूरी करना शुरू कर दो। बस एक बात का ध्यान रखना, अपना कार्य पूरे मन से करना लेकिन किसी भी हाल में मज़दूरी मत लेना, निस्वार्थ और निष्काम भाव से अपना कार्य पूरी तन्मयता के साथ करते रहना। लड़के ने महात्मा को प्रणाम कर आशीर्वाद लिया और बिना एक भी पल गँवाए महात्मा जी के बताए स्थान पर पहुँच गया और महल निर्माण में अपना योगदान देने लगा।

वह युवक दोगुनी ऊर्जा के साथ मेहनत करता था लेकिन मंत्रियों के लाख कहने के बाद भी उसके बदले मज़दूरी नहीं लेता था, हमेशा सिर्फ़ इतना बोलता था, ‘राज्य का काम तो मेरा अपना काम है, मैं इसके पैसे कैसे ले सकता हूँ?’ लगभग दो माह पश्चात राजा महल निर्माण का निरीक्षण करने के लिए वहाँ आया और सभी कार्यों का निरीक्षण करते-करते उनकी नज़र इस युवा पर पड़ी। राजा ने अपने मंत्री से पूछा, ‘यह लड़का कौन है जो इतनी तन्मयता, इतनी लगन के साथ मेहनत कर रहा है। इसे आज दोगुनी मज़दूरी देना।’ राजा की बात सुनते ही मंत्री हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘महाराज, इस युवा का तो हाल ही निराला है। पिछले दो माह से इसी ऊर्जा के साथ मेहनत कर रहा है, लेकिन कभी भी मेहनताने के रूप में एक भी मुद्रा स्वीकार नहीं की। जब भी उसे मज़दूरी देने का प्रयास करो, कहता है, ‘राज्य का काम तो मेरा अपना काम है, मैं इसके पैसे कैसे ले सकता हूँ?’

राजा ने तुरंत उस युवा को बुलाया और कहा, ‘बेटा, तुम मज़दूरी क्यों नहीं लेते हो बताओ? क्या कुछ और चाहते हो?’ युवा तुरंत राजा के पैरों में गिर पड़ा और बोला, ‘महाराज आपके दर्शन हो गए, आपसे बात कर ली, आपकी कृपा दृष्टि मेरे ऊपर पड़ गई, इससे ज़्यादा और क्या चाहिए मुझे? और रही मज़दूरी की बात तो राज्य का काम तो मेरा अपना काम है, मैं इसके पैसे कैसे ले सकता हूँ?

राजा को उस युवा का नज़रिया बहुत पसंद आया। उन्होंने उसे तुरंत अपने साथ चलने को कहा और उसे मंत्रियों के अधीन कार्य करने को लगा दिया। वहाँ भी उसकी लगन देख राजा ने उसे जल्द ही मंत्री बना दिया और अपनी इकलौती पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। कालांतर में राजा ने उसकी निपुणता देखते हुए उसे अपना राज्य सौंपा और खुद ईश्वर की आराधना करने के लिए वन में चले गए।

दोस्तों, अगर इस कहानी के भाव को आप अपनी उम्र के हिसाब से समझेंगे तो आपको इसके अंदर छिपे गूढ़ अर्थ समझ आएँगे। जैसे, एक विद्यार्थी को ज्ञान अर्जन के लिए बिना किसी फल अर्थात् मज़दूरी की चिंता किए शिक्षा लेना चाहिए। यहाँ शिक्षा लेना मेहनत - मजदूरी का पर्याय है, ज्ञानी बनना, मंत्री पद के रूप में फल पाना है, ज्ञान के आधार पर रोज़गार पाना, राजकुमारी से शादी के समान और अंत में ज्ञान के आधार पर अच्छे-बुरे में फ़र्क़ करते हुए, अपने मन पर क़ाबू पाकर, अपने जीवन का मालिक बनना, राजा बनना है। जिससे आप जनमानस की सेवा कर सकें।

इसे दोस्तों हम एक और नज़रिए से देख सकते हैं, भगवान, परमपिता परमेश्वर हम सभी के राजा हैं। उनकी आराधना करना, जनमानस की सेवा करते हुए जीवन बिताना हमारी मज़दूरी है। संतों, ज्ञानियों का साथ ही हमारे साथी मंत्री समान हैं जो हमें सही निर्णय लेने में मदद करते हैं और भक्ति या अपना धर्म राजकुमारी सामान है जिससे हमें विवाह बंधन जैसा साथ निभाते हुए अंततः मोक्ष रूपी राज्य प्राप्त होगा। इसीलिए तुलसीदास जी ने कहा है, ‘तुलसी विलम्ब न कीजिए, निश्चित भजिए राम। जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान॥’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com