‘पर्सपेक्टिव' है सही तो दुनिया है नई !!!

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
चलिए दोस्तों जीवन को नयी दिशा देने वाले एक सच्चे किस्से से आज के शो की शुरुआत करते है। बस निजता का ध्यान रखते हुए मैंने नाम बदल दिए हैं। रमेश और सुरेश दो दोस्त थे। एक बार दोनों ने मिलकर मेडिकल चेकअप करवाने का निर्णय लिया। तय दिन दोनों अपने तीसरे परिचित डॉक्टर के यहाँ पहुंचे और उनके निर्देशानुसार सारे टेस्ट करवाए।
अगले दिन सभी रिपोर्ट देखने के पश्चात डॉक्टर ने उनसे कहा, ‘मित्रों, मेडिकल जाँच के अनुसार तुम दोनों एक लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो और अपने 25 वर्षों के अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि अब तुम अधिकतम एक वर्ष ही जीवित रह पाओगे। इतनी कटु और बुरी बात कहने के लिए मैं तुम दोनों से दिल से माफ़ी माँगता हूँ। बताने के सिवा मेरे पास कोई और चारा भी तो नहीं था!’
डॉक्टर के मुँह से यह शब्द सुनते ही कुछ पलों के लिए दोनों दोस्त हक्के-बक्के रह गए। कुछ पलों बाद सुरेश एकदम से बोला, ‘क्या? मात्र एक साल… बस। इतना कम समय।’ उसके चेहरे पर चिंता, भय, क्रोध और उदासी एक दम साफ़ नज़र आ रही थी। कुछ पलों की खामोशी के बाद वह पुनः बोला, ‘अभी तो मेरी उम्र ही क्या है? अगर इतनी कम उम्र में मर जाऊँगा तो मेरे परिवार, मेरे बच्चों, मेरे व्यवसाय और मेरे सपनों का क्या होगा?’ इतना कहकर व फूट-फूटकर रोने लगा।
इसके ठीक विपरीत, रमेश अब एकदम शांत था। वह डॉक्टर को धन्यवाद देता हुआ बोला, ‘मुझे आगाह करने के लिए शुक्रिया डॉक्टर। मैं उन कुछ चुनिंदा भाग्यशाली लोगों में से हूँ जो यह जानते हैं कि मेरी मृत्यु कब होने वाली है। अब मैं अपने बचे हुए जीवन का उपयोग अपने परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताने, अपनी ग़लतियों को सुधारने और खुद को और अच्छा इंसान बनाने के लिए करूँगा। मैं हर दिन, हर पल को सौ प्रतिशत जीना सुनिश्चित करूँगा।’ आशा के विपरीत सुरेश की मृत्यु मात्र पाँच माह बाद हो गई लेकिन रमेश, सुरेश के मुक़ाबले तीन वर्ष अधिक जिया।
दोस्तों, डॉक्टर के अनुसार दोनों की स्थिति एक सामान थी, दोनों एक जैसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से जूझ रहे थे। लेकिन जिस बात ने उनके जीवन को छोटा या लम्बा बनाया वह था, वह था जीवन को देखना का उनका नज़रिया अर्थात् उनका पर्सपेक्टिव। दोनों ने एक ही खबर को अलग-अलग अन्दाज़ में स्वीकारा और इसी का असर उनके जीवन पर पड़ा।
जब आप चीजों को देखने का नजरिया बदलते हैं, तो आप जिन चीजों को देखते हैं, वे भी बदल जाती हैं। इसका सीधा सीधा अर्थ है दोस्तों हमारे जीवन में समस्या की वजह से जितनी समस्या नहीं हैं, उतनी समस्या, समस्या को देखने के नज़रिए की वजह से है। अगर आपकी धारणाएँ, चुनौतियों अथवा परिस्थितियों से मज़बूत हैं तो आप जीवन में आने वाली हर परिस्थिति को स्वीकार लेते हैं और अगर नहीं, तो जल्दी टूट जाते हैं।
जी हाँ दोस्तों, अगर आप भी अपने जीवन को खुलकर, हर पल, बिंदास जीना चाहते हैं तो एक छोटा सा ब्रेक लें और विचार करें कि आपके लिए जीवन का क्या अर्थ है? आपकी प्राथमिकताएँ क्या हैं? और हर पल जीवन का मज़ा उठाने के लिए आपको क्या करना होगा? इससे आप जीवन अथवा ज़िंदगी के अपने मायने को स्पष्ट तौर पर समझ पाएँगे। ज़िंदगी या जीवन की अपनी परिभाषा गढ़ पाएँगे।
जब आप किसी चीज़ को स्पष्ट तौर पर समझते हैं, उसके अर्थ को जानते हैं तो वह पहले आपके सोचने के तरीक़े को, फिर आपकी भावनाओं को और अंत में आपके कार्य करने के तरीक़े को प्रभावित कर जीवन के परिणाम को बदल देती है। जी हाँ दोस्तों, एक्शन अर्थात् क्रिया के साथ भावनाएँ और नज़रिया परिणाम बदल देता है।
नकारात्मक अथवा विपरीत परिस्थितियों या चुनौतियों के प्रति अपनी धारणा अर्थात् पर्सपेक्टिव बदलने से समस्या खत्म नहीं होती बल्कि पर्सपेक्टिव बदलते ही आपकी सोच, आपके विचार बदल जाते हैं और यही बदले विचार आपको अपने अंदर ही प्रेरणा खोजने को मजबूर करते हैं और प्रेरणा मिलते ही हम आशावान बन जाते हैं और हमारी आंतरिक शक्ति हमारी ऊर्जा को बढ़ाकर उन परिस्थितियों या परेशानियों को अपने पक्ष में मोड़ने में मदद करती है।
अर्थ बदलना तथ्यों को नकारना या अस्वीकार करना नहीं बल्कि उन्हें एक नए नज़रिए से देखना है। दोस्तों, यही तो ईश्वर द्वारा मनुष्यों को दी गई सबसे बड़ी शक्ति है जिसकी सहायता से वह कैसी भी चुनौतियों या परिस्थितियों में मनचाहा परिणाम पा सकता है। बस तो अब देर किस बात की है आज का लेख खत्म होते ही सबसे पहले उस स्थिति को पहचाने, जो आपको परेशान कर रही है, अब उसे बदले हुए नज़रिये अर्थात् अलग-अलग कोण के साथ देखने का प्रयास करें। इसे एक नया सकारात्मक अर्थ दें और परिणाम को अपने पक्ष में मानकर मिलने वाली ऊर्जा का प्रवाह अपने अंदर महसूस करें। कुछ ही पलों में आप खुद को पहले से अधिक मज़बूत, पहले से अधिक बेहतर पाएँगे। याद रखिएगा दोस्तों, आप अपने जीवन में आने वाली किसी भी परेशानी, किसी भी विपरीत परिस्थिति के मुक़ाबले कई गुना अधिक मज़बूत हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com