फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

सामान्यतः देखा जाए दोस्तों तो मनुष्य बड़ा ही विचित्र प्राणी है। शायद यह सुनकर आप पशोपेश में पड़ गए होंगे कि मैं क्या कह रहा हूँ? लेकिन अगर आप गम्भीरता के साथ सोचकर देखेंगे तो आप पाएँगे कि मनुष्य अपने स्वभाव से बड़ा ही अधीर और भुलक्कड़ होता है। जीवन में हर पल घटती घटनाओं के साथ उसका मन, उसकी मनोदशा बदलती जाती है। ज़रा सा कुछ उसकी इच्छानुसार हुआ नहीं कि उसे सब कुछ हरा ही हरा नज़र आने लगता है, सब कुछ बहुत अच्छा लगने लगता है और इसके विपरीत ज़रा सा कुछ बुरा हुआ नहीं कि वह उदास और निराश महसूस करने लगता है। ऐसी स्थिति में उसे अपने लिए गए निर्णयों पर पछतावा होने लगता है और वह आज तक उसके साथ हुई सभी अच्छी बातें भूल जाता है।

इस स्थिति को मैं आपको व्हाट्सएप पर प्राप्त हुए मैसेज के द्वारा समझाने का प्रयास करता हूँ। एक सज्जन कार्यालय से अपने घर जा रहे थे। अपने मोहल्ले में घर के आस-पास बहुत सारी भीड़ देख वे आश्चर्यचकित थे। जब वे अपने घर के थोड़ा और पास पहुंचे तो उन्हें एहसास हुआ कि उनके सुंदर घर में आग लग गई है। अपने खूबसूरत घर को जलता देख वह सज्जन बदहवास से रोने-चिल्लाने लगे और तमाशबीन भीड़ से मदद की गुहार लगाने लगे।

उन सज्जन को रोता-चिल्लाता देख उनका सबसे छोटा बेटा दौड़ता हुआ उनके पास आया और बोला, ‘पिताजी, आप घबराइए मत, मैंने दो दिन पूर्व ही एक अच्छा खरीददार मिल जाने की वजह से इस मकान का सौदा कर दिया था। उसने हमारे मकान की क़ीमत की 3 गुना रक़म देने की पेशकश करी थी। मैं उसे मना ना कर सका और आपको बताए बिना सौदा कर दिया।

छोटे बेटे की बात सुनते ही पिता की जान में जान आयी और वो भी भीड़ की ही भाँति तमाशबीन बन अपने घर को जलता हुआ देखने लगे। तभी उनका मझला बेटा वहाँ पहुँचा और बोला, ‘पिताजी, छोटे भाई ने सौदा तो कर दिया था, लेकिन हमें अभी तक पैसे नहीं मिले हैं। अब आप ही बताइए इस जले हुए मकान की 3 गुनी क़ीमत कौन देगा?’

मंझले बेटे की बात सुन वो सज्जन एक बार फिर चिंता में पड़ गए और लोगों से मदद की गुहार करते हुए वापस से आग बुझाने का प्रयास करने लगे। तभी उनका सबसे बड़ा बेटा वहाँ पहुँचा और बोला, ‘पिताजी, घर जल गया तो कोई बात नहीं, ज़रा भी घबराने की ज़रूरत नहीं है। मैं अभी उस खरीददार के घर से आ रहा हूँ। मैंने उसे अपने घर की पूरी सही-सही स्थिति बताते हुए सौदे के विषय में पूछा तो वह बोला, ‘मैं अपनी ज़बान का पक्का हूँ, एक बार जो कह दिया सो कह दिया। मैं अपने आदर्शों से नहीं पलट सकता, यह लो अपने घर की क़ीमत और जाओ।’ बच्चे के हाथ में अपने घर की 3 गुनी क़ीमत देख वह सज्जन फिर चिंतामुक्त हो गए और फिर से तमाशबीन बन घर को जलते हुए देखने लगा।

यही हाल दोस्तों ज़्यादातर मनुष्यों का होता है। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा, ‘मनुष्य अपने स्वभाव से बड़ा ही अधीर और भुलक्कड़ होता है। जीवन में हर पल घटती घटनाओं के साथ उसका मन, उसकी मनोदशा बदलती जाती है।’ लेकिन यदि दोस्तों आप अधीरता को छोड़ हर दिन, हर पल को एक सामान शांत, खुश और सुखी रहते हुए जीना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने अंदर स्वीकार्यता की शक्ति को विकसित करना सीखें। जी हाँ दोस्तों, स्वीकार्यता की शक्ति!, अक्सर हम उन चीजों के लिए परेशान होते रहते हैं जिनको बदलना, वापस पुरानी स्थिति को प्राप्त करना सम्भव नहीं होता। यह हमारे द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णयों के संदर्भ में भी लागू होता है। ऐसी स्थिति में सबसे पहले स्वीकार करें कि जीवन में कोई पल, कोई दिन अपनी इच्छानुसार बीतेगा तो दूसरा पल, दूसरा दिन प्रभु इच्छानुसार। जब दिन हमारी इच्छानुसार बीतता है तो हमें अच्छा लगता है और जब प्रभु की योजनानुसार बीतता है तो हमारी नासमझी के कारण हम उसे ख़राब दिन मान लेते हैं और ऐसा अक्सर दूरदर्शिता के स्थान पर तात्कालिक सोच होने की वजह से होता है।

लेकिन याद रखिएगा दोस्तों, जीवन में घटने वाली हर घटना को स्वीकारना ही शांतिपूर्ण जीवन जीने की शुरुआत करता है। इसलिए हमेशा भावनाओं, बच्चों, जीवनसाथी, परिवार, दोस्तों, सामान्य लोग, डर, विपत्ति, अवांछनीय स्थिति, विपरीत परिस्थिति, आशा के विपरीत परिणाम आदि का विरोध करने के स्थान पर उसे स्वीकारना सीखें। याद रखिएगा, आप इसका कितना भी विरोध कर लें, सब व्यर्थ ही जाएगा।

इसके स्थान पर दोस्तों, जब जैसी स्थिति हो उसे स्वीकारें क्यूँकि स्वीकारना, उसे बदलने की दिशा में पहला कदम होता है। आशा करता हूँ दोस्तों आप आज से आपके जीवन पाठ पर जो भी आएगा उसे स्वीकारेंगे, उसे अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करेंगे और परिणामों से संघर्ष करने के स्थान पर अपने व्यवहार का प्रबंधन करते हुए मनमाफ़िक परिणाम पाने के लिए एक नया प्रयास करेंगे।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com