फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

इस सोमवार स्कूल कंसलटेंसी के कार्य से अपने एक साथी के साथ एक लम्बा टूर करने का मौक़ा मिला। लगभग 350 किलोमीटर गाड़ी ड्राइव करने और साथ ही दिनभर का अपना कार्य करने की वजह से मैं थोड़ा थका हुआ महसूस कर रहा था। शाम को लगभग 7 बजे मैं विद्यालय से अपने गंतव्य इंदौर के लिए निकला। चूँकि अगले दिन यानी मंगलवार को सुबह 7:30 बजे मुझे नई दिल्ली की फ़्लाइट लेना थी। इसलिए विद्यालय से इंदौर की दूरी जो लगभग 150 किलोमीटर थी, को जल्दी तय करने के लिए मैं गाड़ी थोड़ी तेज लेकिन नियमों का पूर्ण पालन करते हुए चलाने लगा। 

कुछ देर तक तो सब सामान्य रहा लेकिन मुझे बार-बार हेड लाइट को कम ज़्यादा करता देख और साथ ही लेन चेंज करते समय इंडिकेटर का प्रयोग करते देख मेरे मित्र बोले, ‘निर्मल, इस ख़ाली हाईवे पर, गिनी-चुनी गाड़ियों के बीच तुम्हारे इस तरह गाड़ी चलाने से क्या फ़ायदा?’ मित्र को दुविधा में देख मैंने एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया जो इस प्रकार थी-

सुदूर गाँव में एक बहुत ही समझदार, भला, लेकिन अंधा व्यक्ति रहता था। सूर्यास्त के बाद कहीं भी जाते वक्त वह एक जलती हुई लालटेन साथ में ले लिया करता था। एक दिन वह अपनी आदतानुसार रात्रि को अपने मित्र के घर से लौटते हुए हाथ में जलती हुई लालटेन लेकर वापस घर आ रहा था कि रास्ते में कुछ शरारती बच्चों ने उसे ‘देखो! अंधा लालटेन लेकर जा रहा है।’, कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया। शुरू में तो उस अंधे व्यक्ति ने शरारती बच्चों के व्यंग्य बाणों को नज़रंदाज़ करा। लेकिन
बच्चों द्वारा बार-बार चिढ़ाए जाने पर उन्हें जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने का निर्णय लिया। 

वह उन बच्चों के पास गया और बोला, ‘सही कहते हो भाइयों, ‘अंधे को लालटेन का क्या काम।’ अंधों को तो अंधेरे में भी स्पष्ट समझ आता है क्यूँकि वे तो अपना पूरा जीवन अंधेरे में ही जीते हैं। यह लालटेन तो मैंने तुम जैसे आँख वालों के लिए उठा रखी है। तुम सभी को रोशनी में जीने की आदत होती है। इसलिए तुम्हें अंधेरे में देखने में समस्या हो सकती है और तुम मुझसे टकरा सकते हो। अपनी और तुम्हारी दोनों की भलाई के लिए ही मैं यह लालटेन लेकर घूमता हूँ।’ अंधे व्यक्ति के सपाट और स्पष्ट जवाब ने बच्चों को उनकी गलती का एहसास बहुत अच्छे से करवा दिया। उन्होंने तुरंत उस अंधे व्यक्ति से क्षमा माँगी और वह गलती जीवन में कभी ना दोहराने का प्रण लिया।

कहानी पूरी होते ही मैंने अपने मित्र की ओर देखा, उनके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वे इस कहानी में छुपे उनके प्रश्न के उत्तर को अच्छी तरह समझ गए हैं। वैसे मुझे इस बात का बहुत अच्छे से एहसास था कि अभी उनके प्रश्न के दूसरे हिस्से अर्थात् ‘ख़ाली रोड पर नियमों का पालन क्यों कर रहा हूँ?’, का जवाब देना बचा हुआ था। मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘मित्र कम ट्राफ़िक में भी मैं नियमों का पालन क्यूँ कर रहा हूँ, तुम समझ गए होगे। लेकिन ख़ाली रोड पर इंडिकेटर देकर लेन चेंज करना या अन्य ट्राफ़िक नियमों का पालन करना, नियम से चलने की अपनी आदत को और मज़बूत बनाने समान है। 

जी हाँ दोस्तों, जब आप किसी कार्य को चेतन मन के साथ बार-बार दोहराते हैं तो असल में आप अपने अवचेतन मन को उस कार्य को हर हाल, हर अवस्था में करने के लिए ट्रेंड करते जाते हैं। इसे मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मान लीजिए, आप अपने किसी मित्र के साथ बात करते हुए गाड़ी से कहीं जा रहे हैं। हरी बत्ती देख आपने उसी गति के साथ चौराहे को पार करने का निर्णय लिया। अभी आप चौराहे के लगभग बीच में पहुंचे ही थे कि अचानक से एक व्यक्ति नियमों को अवहेलना करता हुआ आपकी गाड़ी के सामने आ गया। 

अब आप बताइए, ऐसी स्थिति में आप कुछ सोचते-विचारते हैं या आपके हाथ और पैर बिना विचारे या दिमाग़ से बिना कोई नया ऑर्डर लिए, अपने आप ही गाड़ी को संतुलित करने, रोकने के लिए काम करना शुरू कर देते हैं? निश्चित तौर पर आपका जवाब भी मेरे जवाब समान ही होगा, ‘बिना कुछ सोचे-विचारे, तर्क किए, वे अपने आप ही गाड़ी को संतुलित कर आवश्यकतानुसार रोकने या धीमा करने का काम करने लगते हैं।’ सही कहा ना दोस्तों? असल में गाड़ी चलाना सीखते वक्त किसी के सामने आने पर बार-बार गाड़ी धीमे करके या रोककर हमने अपने अवचेतन मन को इस परिस्थिति में इस ऐक्शन को लेने के लिए प्रोग्राम कर दिया है। ठीक इसी तरह दोस्तों, जब हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में नियमों का पालन कोई देखे या ना देखे करते जाते हैं तो आप अपने अंदर नियमों को पालन करने की आदत विकसित कर लेते हैं। भविष्य में आपका अवचेतन मन भीड़ में ब्रेक लगाने के समान ही आपको बिना सोचे-विचारे नियमों का पालन करने में मदद करता है। वैसे दोस्तों इस सूत्र से आप अपने अंदर जीवन को बेहतर बनाने वाली कोई सी भी आदत विकसित कर सकते हैं। 

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com