फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों मेरा मानना है कि हमारे और हमारी सफलता के बीच अगर कोई गति अवरोधक या बाधा है तो वह हम स्वयं हैं। जी हाँ दोस्तों, ईश्वर ने सफल और असफल लोगों को एक समान क्षमता और हालात में इस दुनिया में भेजा था। लेकिन हम अपने मानसिक अवरोधों के चलते अकसर अपनी सफलता से दूर हो जाते हैं। आईए इस स्थिति को समझने के लिए बचपन में सुनी एक कहानी को दोहरा लेते हैं।

गाँव में एक व्यापारी था जो गधों की ख़रीद-फ़रोख़्त कर अपना जीवन यापन करता था। एक दिन गाँव के ज्ञानी ने ज़्यादा मुनाफ़े के लिए उसे शहर के साप्ताहिक बाज़ार में जाकर गधों की बिक्री करने का सुझाव दिया। उसे उन ज्ञानी सज्जन का सुझाव पसंद आ गया और वह अपने तीन सबसे अच्छे गधों को लेकर शहर की ओर चल दिया। दिन में कड़ी धूप में चलते-चलते वह व्यापारी काफ़ी थक गया था। उसने रास्ते में पड़ने वाली नदी के किनारे रुक कर कुछ देर विश्राम करने का निर्णय लिया।

नदी के किनारे पहुँचते ही उसने पेड़ की छाँव में अपने गधों को बांध कर, नदी में डुबकी लगाने का निश्चय किया। गधों को पेड़ की छाँव में बांधते समय उसे एहसास हुआ कि उसके पास मात्र दो गधों को बांधने के लिए पर्याप्त रस्सी है। दो गधों को पेड़ से बांधने के बाद वह विचार में पड़ गया कि अब तीसरे गधे को बांधने के लिए क्या किया जाए?

व्यापारी अभी विचारों के जाल में उलझा हुआ ही था कि उसकी नज़र वहाँ से जा रहे एक साधु पर पड़ी, उसने साधु महाराज से मदद करने का निवेदन किया। साधु के पास भी रस्सी तो नहीं थी लेकिन उन्होंने उस व्यापारी को सुझाव दिया, ‘तुम तीसरे गधे के सामने दूसरे दोनों गधों को रस्सी से इस तरह बांधो की वह तुम्हें ऐसा करते हुए देख ले। उसके बाद तुम तीसरे गधे को बांधने का नाटक करो। उसके बाद यह कहीं नहीं जाएगा।’

किसान ने साधु के सुझाव के अनुसार तीसरे गधे के सामने दोनों गधों को बांधा और तीसरे को बांधने का नाटक करते हुए, नदी में नहाने चला गया। वापस आकर तीसरे गधे को वहाँ सुरक्षित देख वह आश्चर्यचकित था। उसने तुरंत साधु महाराज को धन्यवाद दिया और दो गधों को खोला और तीसरे गधे को थपथपाकर चलना शुरू कर दिया। थोड़ा दूर चलने के बाद उसे एहसास हुआ कि तीसरा गधा तो उसी स्थान पर खड़ा हुआ है जहाँ उसे बांधने का नाटक किया था। उस व्यापारी ने वहाँ जाकर उस गधे को साथ लाने की बहुत कोशिश करी उसे लात भी मारी लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ।

साधु महाराज पूरा नजारा देख रहे थे उन्होंने उस व्यापारी को बुलाया उसे कहा, ‘पहले तीसरे गधे को खोलो, फिर साथ लेकर जाना।’ व्यापारी को साधु महाराज की बात समझ नहीं आयी, वह बोला, ‘महाराज वह तो पहले से ही खुला हुआ है।’ साधु मुस्कुराए और बोले, ‘वह तो मुझे भी पता है, पर यह बात क्या उस गधे को मालूम है?’ किसान को सारा माजरा समझ आ गया। उसने तुरंत गधे को खोलने का नाटक किया और उसके बाद गधे को चलने का इशारा किया, गधा तुरंत उस व्यापारी के साथ चल दिया और अन्य दो गधों के साथ जाकर मिल गया।’

असल में दोस्तों यह कहानी काल्पनिक रस्सी से बंधे गधे की नहीं अपितु हमारी है। जी हाँ दोस्तों हमारी है, हम सभी ने खुद को उस गधे की तरह कई काल्पनिक रस्सियों से बांधा हुआ समझ रखा है। जैसे, मेरे पास पैसे नहीं हैं, मैं यह नहीं कर सकता, मैं वो नहीं कर सकता, मेरा जन्म गरीब परिवार में हुआ, मेरी शिक्षा अच्छे विद्यालय में नहीं हुई, मुझे लोगों का साथ नहीं मिला, आदि। सही मायने में देखा जाए तो उपरोक्त सभी बातें उस काल्पनिक रस्सी के सामान अस्तित्वहीन हैं।

यक़ीन मानिएगा साथियों, जीवन की एकमात्र सच्चाई हमारे अंदर असीमित क्षमताओं का होना है। जिसकी वजह से वास्तविक जीवन में कोई सीमा नहीं होती है। हम में से कोई भी किसी भी सीमा तक बढ़ सकता है अर्थात् अपने जीवन में किसी भी ऊँचाइयों को छू सकता है। इसीलिए कहा गया है साथियों, ‘आपका जन्म किस परिवार में, किन हालातों में हुआ है, मायने नहीं रखता है और उसके लिए आप ज़िम्मेदार नहीं है। लेकिन आपकी मृत्यु किन हालातों में होगी और आप अपने परिवार के लिए क्या छोड़ कर जाएँगे, उसकी सौ प्रतिशत ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी होगी।’ जी हाँ दोस्तों, असल जीवन मानसिक अवरोधों के पार है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com