कंसलटेंसी के अपने कार्य की वजह से मुझे अपने क्लायंट के घर जाने का मौक़ा मिला। वहाँ पहुँचते ही, उनके दोनों बच्चे लड़ते हुए बाहर आ गए। कुछ ही पलों बाद दोनों में से एक बच्चा अपने छोटे होने का फ़ायदा उठाते हुए बोला, ‘पापा, भैया ने मेरी चाकलेट ले ली।’ छोटे भाई से अपनी शिकायत सुनते ही बड़े भाई ने तुरंत अपना स्पष्टीकरण देते हुए बता दिया कि उसने भी बिना पूछे उसके चिप्स के पैकेट को खत्म कर दिया था।

पिता ने पहले तो दोनों को समझाने का प्रयास करा, पर हल ना निकलता देख बड़े भाई को अधिकार पूर्वक चाकलेट लौटाने के लिए कह दिया। पिता का ऑर्डर मिलते ही बड़े बेटे ने चाकलेट ज़मीन पर फेंकी और पैर पटकते हुए खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया। उसकी इस हरकत को देखते ही मेरे क्लाइंट झूठी हंसी हंसते हुए बोले, ‘बच्चे हैं सर, समय के साथ समझ जाएँगे। वैसे इनको इस लड़ाई से बचाने के लिए ही मैं हमेशा दोनों के लिए हर चीज़ अलग-अलग लाता हूँ।’

उन सज्जन की बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और मन ही मन बोला, ‘यही तो ग़लत करते हैं आप।’ ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ दोस्तों क्यूँकि बच्चों में जो भी अवगुण देखने को मिलते हैं उसके मूल में अगर आप गहराई से जाकर देखेंगे तो आप पाएँगे कि कहीं ना कहीं गलती हम बड़ों की ही है। मुझे बहुत अच्छे से याद है बचपन में मुझे किस तरह सीमित चीजों को अपने भाई और बहन के साथ खुश रहते हुए साझा करना होता था। इससे मैंने चीजों की क़ीमत, उसकी अहमियत और साझा करने के महत्व जैसी जीवन के लिए ज़रूरी बातें सीखी।

इसीलिए मेरा मानना है कि बड़ों की प्रवृति जैसी होगी, बच्चों का व्यवहार भी वैसा ही होगा और यह बात अहंकार के बारे में भी सौ प्रतिशत लागू होती है। जब बच्चे रोज़मर्रा के हमारे व्यवहार में अहंकार देखते हैं तो वे बिना परिणाम की चिंता किए, हमारे व्यवहार, हमारे जीवन जीने के तरीक़े को अपनाने लगते हैं। अतः दोस्तों बच्चों में सुधार लाने के लिए हमें उन पर नहीं बल्कि खुद पर अंकुश लगाना पड़ेगा।

अगर आपको बच्चों के व्यवहार में अहंकार, अहं और अंग्रेज़ी में कहूँ तो ईगो देख रहे हैं तो बच्चों को उसे जल्दी नियंत्रित करना सिखाएँ। यह बहुत महत्वपूर्ण है साथियों क्यूँकि आज तो वह कच्ची मिट्टी के घड़े के समान है, जिसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। लेकिन अगर समय रहते उसे सही बात नहीं सिखाई गई तो बड़ा होने पर उसके तार्किक मन में बदलाव लाना मुश्किल हो जाएगा।

मेरा मानना है दोस्तों, अहंकार से बचाने के लिए हमें बच्चों को समय रहते सही शिक्षा देना आवश्यक है और इसके लिए हमें सबसे पहले अहंकार शब्द को समझना होगा। अहंकार अर्थात् किसी भी वस्तु अथवा रिश्ते पर अहं भरा अधिकार जताना। जब आप अधिकार जताने की उसकी प्रवृति को सही समय पर सुधारने के स्थान पर ‘अभी तो वह बच्चा है’, कह कर छोड़ देते हैं तो यह धीरे-धीरे उसके लिए घातक हो जाता है। सोचकर देखिए विद्यालय में बच्चा घमंड और दया दोनों का अर्थ, उसके फ़ायदे नुक़सान को सीखता है लेकिन थोड़ा बड़ा होने पर वह दया को भूलकर घमंड को अपने व्यवहार का हिस्सा बना लेता है।

अगर आप बच्चों को अहंकार अर्थात् हर वस्तु, हर रिश्ते पर अहं भरे अधिकार के भाव से बाहर निकालना चाहते हैं तो उसे विनम्रता और आभारी रहना सिखाएँ। ठीक उसी तरह जैसे हम हवा, पानी, धरती, आसमान सब देने के लिए प्रकृति के आभारी हैं, या फिर, हमें जन्म देकर, पढ़ाने-लिखाने और सभी सुविधा देने के लिए हम अपने माता-पिता के लिए आभारी हैं। यही भाव हमें बच्चों में भी पैदा करना होगा।

इसके लिए बच्चों में कुछ आदतें छुटपन से ही डालना जरूरी हैं। जैसे बच्चों में धैर्य और संतुष्टि के भाव को विकसित करना। बच्चों में अहंकार दूर करने के लिए आप निम्न नियमों को भी काम में ले सकते हैं-
1) अगर आप चाहते हैं कि बच्चे समयानुसार उचित कपड़े पहनें तो हमें उन्हें सही कपड़े पहनने के लिए बचपन में ही टोकना होगा अन्यथा हर वक्त पसंद के कपड़ों को पहनना बड़े होने पर उनकी स्टाइल का हिस्सा बन जाएगा।
2) अगर आप बच्चों को स्वभाविक रूप से शर्मिला बनाना चाहते हैं तो उन्हें उम्र के हिसाब से फ़िल्म, वेब सीरीज़ अथवा शो देखने दें और इसके लिए स्वस्थ सीमाएँ और नियम बनाएँ।
3) हमेशा उनकी इच्छाएँ पूरी करने के स्थान पर कुछ चीजों के लिए समझौता करना, इंतज़ार करना सिखाएँ।
4) उन्हें अच्छे दोस्त, अच्छी संगत चुनने में मदद करें।
5) सुनिश्चित करें कि बच्चे घर के नियमों, संस्कारों का पालन करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com