फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, अगर आप मुझसे जीवन में मनचाही चीज़ पाने के लिए आवश्यक या सबसे महत्वपूर्ण 5 कौशल के बारे में पूछेंगे तो उनमें से एक निश्चित तौर पर संवाद कौशल अर्थात् कम्यूनिकेशन स्किल होगा। जीवन का इतना महत्वपूर्ण कौशल होने के बाद भी अक्सर लोग इसे ‘चलता है’ के दृष्टिकोण से ले लेते हैं अर्थात् ज़्यादातर लोग इसके विषय में गहराई से सोचे बिना ही मान कर चलते हैं कि भाषा पर तो हमारा कमांड है ही इसलिए संवाद करना कौन सी बड़ी बात है, जब ज़रूरत होगी तब इस पर काम कर लेंगे। लेकिन हक़ीक़त इससे विपरीत होती है साथियों। ज़्यादातर लोग अपनी बात कहने को ही संवाद करना मान लेते हैं और इसीलिए हाथ आए बड़े और अच्छे मौक़ों को चूक जाते हैं।

अगर आप संवाद कौशल विकसित करना चाहते हैं तो आपको अपने शब्दों का चयन, सोच, दृष्टिकोण आदि सब अपने उद्देश्य के मुताबिक़ विकसित करना होगा और इसमें से शब्दों के चयन और दृष्टिकोण को एक, दो चार दिन तो छोड़िए, एक दो महीनों में भी विकसित करना आसान नहीं है। इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन में चेतन अवस्था में सतत कार्य करना होगा और अक्सर लोग इसमें चूक कर जाते हैं। इसे मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ-

बात बुधवार की है, परिवार में हम सभी दोपहर भोजन के पश्चात हंसी-मज़ाक़ कर रहे थे। इसी दौरान मेरी बिटिया ने मेरी पत्नी अर्थात् अपनी माँ को कुछ ऐसे शब्द कह दिए जो नहीं कहना चाहिए थे। पत्नी ने तो बिटिया की बात को हंसी में उड़ा दिया, लेकिन मुझे लग रहा था कि उसे इस तरह नहीं बोलना चाहिए था।

कुछ मिनिट विचार करने के पश्चात मैंने अपनी बिटिया से कहा, ‘बेटा, तुम्हें मज़ाक़ में भी यह बात नहीं बोलना चाहिए। वह एकदम से बोली, ‘पापा, कौनसी बात?’ मैंने उसे फिर याद दिलाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘जो तुमने अभी मम्मी को कहा था।’ मेरे इतना कहने के बाद भी मैं उसको वह बात याद दिलवाने सफल नहीं हो पाया। इस बीच मेरी पत्नी ने उसे पूरी बात याद दिलायी तो वह मुझसे बोली, ‘पापा, आप चिंता मत करो यह तो मेरे और मम्मी के बीच की बात है।’

मैंने उसे फिर टोका और बताया कि किस तरह मज़ाक़-मज़ाक़ में बोले गए यह शब्द हमें बड़ा नुक़सान पहुँचा देते हैं। चलिए उसी चीज़ को एक बार फिर दोहरा लेते हैं। असल में दोस्तों मज़ाक़ में बोले गए यह शब्द पहले हमारी शब्दावली का हिस्सा बनते है और अगर इसके बाद भी इस पर ध्यान ना दिया जाए तो यह हमारे अवचेतन मन में बैठ जाते हैं और अंततः आपकी बोली या बातचीत की शैली बन जाते हैं।

दोस्तों वैसे मुझे आपको यहाँ बताने की ज़रूरत नहीं है कि हमारा अवचेतन मन, हमारे चेतन मन से कई गुना शक्तिशाली और बड़ा होता है और जीवन में हमारे ज़्यादातर फ़ैसले, ज़्यादातर ऐक्शन इसी अवचेतन मन पर आधारित होते हैं। इसे मैं आपको एक और उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। आपने देखा होगा कई लोग बातचीत के दौरान अपशब्द इस तरह बोल जाते हैं जैसे वे कोई अलंकार का प्रयोग कर रहे हों और मज़ेदार बात तो यह है कि इन शब्दों का प्रयोग करते वक्त उन्हें इस बात का भी भान नहीं होता है कि वे किस के समक्ष और किन परिस्थितियों में इसका प्रयोग कर रहे हैं।

अगर आप अपना संवाद कौशल बेहतर बनाना चाहते हैं, तो आपको स्लैंग शब्दों अर्थात् बोलचाल की भाषा में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सजग रहते हुए चुनना होगा जिससे अनावश्यक शब्दों को अवचेतन मन का हिस्सा बनने से रोका जा सके। वैसे भी दोस्तों शब्दों के बारे में तो कहा गया है कि शब्दों से, ‘आप किसी के दिल में, तो किसी के दिल से उतर सकते हैं।’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com