फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, कल हमने बच्चों की लोकप्रियता में माता-पिता की भूमिका - भाग 1 में सीखा था कि बच्चों के जीवन पर माता-पिता की सोच, व्यवहार, किए गए कार्य, कही गई बातें, खान-पान की आदतें, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, पालन-पोषण की शैली आदि सभी का प्रभाव पड़ता है। साथ ही हमने जाना था कि माता-पिता द्वारा बचपन में किए गए व्यवहार का प्रभाव किस तरह उनके भविष्य पर पड़ता है। इसके साथ ही दोस्तों हमने यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के मनोवैज्ञानिक और ‘पॉपुलर’ नामक किताब के प्रसिद्ध लेखक डॉ मिच प्रिंस्टीन के कथन से लोकप्रियता के अर्थ, उसके दोनों प्रकार, उनके बीच के मुख्य अंतर और सामान्य परिस्थितियों में दोनों में से क्या बेहतर रहता है, को समझा था।

लेकिन दोस्तों बच्चों के मामले में यह थोड़ा सा अलग हो जाता है। बच्चों में लोकप्रियता के पहले प्रकार सामाजिक प्रतिष्ठा अर्थात् सोशल रेप्यूटेशन का होना आकर्षण पैदा कर, उनपर सकारात्मक प्रभाव डालता है और उन्हें आशावादी बनाता है। इसी की वजह से बच्चों को ज़्यादा बेहतर अवसर मिलते हैं। दोस्तों अगर बच्चों के साथ लम्बे समय तक यही व्यवहार किया जाता रहे तो वे अपने जीवन में लोगों से अच्छे और मज़बूत रिश्ते बनाकर बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं।

वैसे आप मेरी इस बात से पूर्णतः सहमत होंगे कि ना सिर्फ़ बच्चे लोकप्रियता को किस प्रकार लेंगे इस पर माता-पिता का प्रभाव रहता है, बल्कि उनके जीवन के कुछ निर्णय और जीवन की दिशा तक माता-पिता ही तय करते हैं। हालाँकि इसके बावजूद भी सारी बातें या स्थितियाँ कंट्रोल करना किसी के भी हाथ में नहीं होता, फिर भी माता-पिता कुछ हद तक अपने बच्चों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं। 

डॉ प्रिंस्टीन ने अपनी किताब ‘पॉपुलर’ में इस संदर्भ में महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उनके मुताबिक़ बच्चे को पालने के तरीके को बदलना ही एकमात्र ऐसा कार्य है जो बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है। आइए दोस्तों अब हम डॉ प्रिंस्टीन के द्वारा सुझाए गए उन 4 तरीक़ों को सीखते हैं जिससे माता-पिता अपने बच्चे की लोकप्रियता को प्रभावित कर सकते हैं-

पहला तरीक़ा - आपका अर्थात् माता-पिता का नज़रिया 
सामान्यत बच्चे माता-पिता को रोल मॉडल मानते हैं इसलिए आपके नज़रिए का उनपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए उससे संवाद करते वक्त या अपने जीवन के किसी अनुभव से सिखाते वक्त माता-पिता को सावधान और सतर्क रहना चाहिए क्यूँकि बच्चा उन अनुभवों का अर्थ अपनी समझ के आधार पर ही निकाल पाता है। यदि आप बच्चों के साथ अपने जीवन के सुखद और अच्छे अनुभव साझा करेंगे, तो इसका उनपर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

दूसरा तरीक़ा - आनुवंशिक अर्थात् जेनेटिक एवं सामाजिक स्तर पर आपसे ली गई चीज़ें 
आपकी जीवनशैली कैसी है, आप सामाजिक परिवेश में कैसे रहते हैं अर्थात् आप सहज है या नहीं, आप किस तरह संवाद करते हैं, आपका व्यवहार करने का तरीक़ा, समझ, लुक आदि वे बातें हैं जो बच्चा आपसे अर्थात् माता-पिता से लेता है। दुर्भाग्य से इन बातों को रोकना, नियंत्रित करना अथवा संशोधित करना आपके हाथ में नहीं रहता है और बच्चे इन्हें स्वाभाविक तौर पर अपना लेते हैं।

तीसरा तरीक़ा - आपकी अर्थात् माता-पिता की आक्रामकता का स्तर
बच्चे, अक्सर आपकी अर्थात् बड़ों की नक़ल करते हैं। यदि आप आक्रामक हैं और हर छोटी-छोटी बात पर ग़ुस्सा करते हैं, अपना आपा खो देते हैं, तो आपके बच्चे भी आपकी नक़ल करके ऐसा करना शुरू कर देंगे। बचपन में बच्चों द्वारा इस तरह के व्यवहार को नज़रंदाज़ करने पर बच्चे बड़े होने पर भी इसी व्यवहार का पालन करते हैं और फिर दूसरों द्वारा नापसंद किए जाते हैं इसलिए लोकप्रिय नहीं बन पाते हैं।

चौथा तरीक़ा - बच्चे के साथ आपके आत्मीय रिश्ते का स्तर 
जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ स्वस्थ या अच्छा रिश्ता या बंधन साझा करते हैं, उनके लोकप्रिय होने की सम्भावना बहुत अधिक होती है। इसके विपरीत असुरक्षित भाव के साथ अथवा तनावपूर्ण रिश्तों में रहने वाले बच्चे भावनात्मक रूप से सबसे कट जाते हैं। समाज से कटकर रहना उनकी अलोकप्रियता का कारण बन सकता है। इसके विपरीत जो बच्चे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख जाते हैं, उसमें अधिक सक्षम होते हैं, उन्हें अधिक योग्य मान, पसंद किया जाता है और कहने की ज़रूरत नहीं है दोस्तों कि यह बात उन्होंने माता-पिता के व्यवहार से ही ली होती है।

आशा करता हूँ दोस्तों लोकप्रियता, लोकप्रियता के प्रकार एवं बच्चों की लोकप्रियता में माता-पिता की भूमिका पर आधारित यह कॉलम आपको बच्चों के लालन-पालन में मदद करेगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com