फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

हाल ही में एक संस्था में कंसलटेंसी के लिए जाने पर संस्था प्रमुख ने मेरा स्वागत निम्न शब्दों से किया, ‘वैसे तो सब ठीक चल रहा है, पर यह लोग अर्थात् अन्य कर्मचारी मुझे समझ क्यों नहीं पाते हैं? क्या मैं यह सब सिर्फ़ अपने लिए कर रही हूँ? अगर मैंने इन्हें डाँटा है या कुछ कहा है तो संस्था की भलाई के लिए ही तो कहा है। संस्था आगे बढ़ेगी, तभी हम सब भी आगे बढ़ेंगे और वैसे भी मैंने कोई अतिरिक्त मांग नहीं रखी है, जिस काम के लिए उन्हें वेतन दिया जाता है, वे उसे ही अच्छे से कर दें, यही अपेक्षा है।’ मैंने मैडम को जीवन के अनकहे नियम बताते हुए शांत करा।

हम उन नियमों पर चर्चा करें उससे पहले आप सोचकर देखिएगा, ऐसा ही कुछ अक्सर हम सभी के साथ भी होता है। जब किसी बड़े लक्ष्य के लिए कार्य करते वक्त हमारे द्वारा लिए गए निर्णयों पर लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के आक्षेप लगाए जाते हैं। मेरी नज़र में यह बिलकुल सामान्य है दोस्तों, बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि अगर आपके साथ ऐसा कुछ नहीं हो रहा है तो शायद आप किसी बहुत ही छोटे लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं। याद रखिएगा आप अपने नेटवर्क में मौजूद हर शख़्स को संतुष्ट और खुश नहीं रख सकते हैं। आईए आज हम जीवन के 10 प्रमुख अनकहे नियमों को समझने का प्रयास करते हैं-

पहला नियम - अगर आप बिना विश्वासघात, चोट, निराशा, अपमान सहे या फिर बिना आत्मसम्मान पर ठेस सहे अपना जीवन जी पा रहे हैं तो इसका सीधा-सीधा मतलब है कि आपने अभी तक अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग नहीं किया है। इसे दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप खुद को बहुत कमतर आंक रहे हैं इसलिए आपके लक्ष्य बहुत छोटे हैं।

दूसरा नियम - आपको निराशा या विश्वासघात उन्हीं लोगों से मिलेगा जिससे आपको इसकी सबसे कम उम्मीद की थी। वैसे मुझे तो लगता है, यही इस जीवन की सुंदरता भी है क्यूँकि अपनों से मिला धोखा आपको खुद की क्षमताओं को परखने का मौक़ा देता है। मेरे साथ तो बिल्कुल ऐसा ही हुआ है।

तीसरा नियम - अगर आपको लगता है कि आप विश्वासघात, धोखों और उसकी वजह से मिली निराशा के कारण सफल नहीं हो पा रहे हो तो आप पूर्णतः ग़लत हो। आपकी असफलता की मुख्य वजह निराशा, विश्वासघात, धोखों की वजह से मिली चोट से उबरने में ज़रूरत से ज़्यादा समय लगाना है, अर्थात् अपने समय का दुरुपयोग करना है। समय का यही दुरुपयोग आपके समक्ष नई चुनौतियाँ ले आता है जो आपकी परिस्थितियों को और भी जटिल बना देता है और अंत में आप इन नकारात्मक स्थितियों के शिकार हो जाते हो।

चौथा नियम - नकारात्मक अनुभवों की वजह से क्रोधित रहना दीवार पर खुद का सिर मारने और दूसरे व्यक्ति से उसका दर्द महसूस करने की अपेक्षा करने समान है। क्रोध से वास्तव में आप सिर्फ़ और सिर्फ़ खुद को नुक़सान पहुँचा रहे हैं। इसलिए लोगों को माफ़ करना सीखें, इसलिए नहीं कि आप बहुत बड़े दिलवाले हो गए हैं, बल्कि इसलिए कि आप अपना जीवन शांतिपूर्ण तरीक़े से जी पाएँ।

पाँचवाँ नियम - सफलता देने से पहले ईश्वर आपको दुनिया में मौजूद कष्टप्रद, नटखट, मूर्ख और कृतघ्न लोगों से मिलवाएगा लेकिन इसमें चिंता की बात बिलकुल भी नहीं है। इनसे आप समझदारी और परिपक्वता के व्यवहार के साथ निपट सकते हैं। ऐसा करना आपको सफलता के शिखर पर बने रहने के लिए तैयार करेगा।

छठा नियम - याद रखिएगा, आप लोगों को कभी भी मजबूर नहीं कर पाएँगे कि वे आपसे प्यार करें, आपका ख़्याल रखें, आपके जैसा सोचें, आपसे अच्छा व्यवहार करें। लेकिन यह ज़रूर आपके हाथ में है कि आप उनसे किस तरह बर्ताव करेंगे।

सातवाँ नियम - नज़रंदाज़ करना सीखें, दूसरों की ग़लतियों, दोषों को नज़रंदाज़ करते, दफ़नाते हुए जीवन में आगे बढ़ें।

आठवाँ नियम - क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, असहिष्णुता जैसे नकारात्मक भावों ने दुनिया की अधिकांश समस्याओं को जन्म दिया है, इनसे बचें। याद रखिएगा इनसे किसी ने भी आज तक कोई बड़ी समस्या का हल नहीं करा है ना ही इनके साथ सुखी, खुश रहते हुए सफल हो पाया है।

नवाँ नियम -  कोई भी पल आपके जीवन का अंतिम पल हो सकता है, आप नहीं जानते कि आपके पास कितना समय बचा है। इसलिए इस छोटे से जीवन को पूर्णता के स्तर तक खुश और मस्त रहते हुए जीने का प्रयास करें।

दसवाँ नियम - दिल पर अनावश्यक बोझा ना रखें और हिम्मत जुटाकर उन सभी से माफ़ी माँगे जिन्हें आपने किसी भी रूप में ठेस पहुँचाई है।

याद रखिएगा दोस्तों आपको, आपके जीवन की उपयोगिता को, आपके पास कितनी धन-दौलत है, आप कितनी जायदाद के मालिक हैं, आप कितने शक्तिशाली हैं या फिर कितने बड़े पद पर रहे हैं, से नहीं मापा जाएगा। बल्कि आपने अपने जीवन में ऐसा क्या किया जिससे दूसरों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव पड़ा, से तोला जाएगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com