फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, मेरा मानना है कि किसी भी कार्य में आप सफल होंगे या असफल यह आपका नज़रिया, आपकी सोच तय करती है।  अपनी बात को मैं आपको दो क़िस्सों से समझाने का प्रयास करता हूँ। पहला क़िस्सा मध्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर के पास बसे शहर देवास का है। एक दिन देवास में रहने वाले मेरे एक परिचित ने मुझसे सम्पर्क किया और उनके मित्र के बेटे की काउन्सलिंग के लिए मुझसे आग्रह किया। चूँकि उस दिन संयोग से मैं एक विद्यालय की कंसलटेंसी के लिए देवास में ही था तो मैंने उस बच्चे को उसी वक्त वहीं बुलवा लिया।

पिता के समक्ष बच्चे से हुई बातचीत के दौरान उसने मुझे बताया कि वह अभी सी॰ए॰ की तैयारी कर रहा है और सब कुछ योजनानुसार चल रहा है। मैंने उससे कहा, ‘जब तुम एक अच्छे कैरियर का चुनाव कर चुके हो, उसके लिए मेहनत कर रहे हो, तो फिर दुविधा कहाँ है?’ बच्चे ने मेरी बात का कुछ जवाब नहीं दिया। लेकिन मुझे एहसास हो गया था कि वह अपने पिता के सामने बात करने से हिचक रहा है। मैंने पिता की सहमति से बच्चे से अकेले में चर्चा करने का निर्णय लिया। बातचीत के दौरान बच्चा मुझसे बोला, ‘सर, मैं सी॰ए॰ नहीं बनना चाहता क्यूँकि सी॰ए॰ की पढ़ाई बहुत कठिन है और उतनी मेहनत कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं है।’ मैंने उस बच्चे के पुराने रिज़ल्ट, शिक्षकों की राय, उसकी क्षमता व पारिवारिक स्थिति का आकलन करा तो मुझे एहसास हुआ कि सिवाय मनःस्थिति के परिस्थिति से लेकर हर चीज़ उसके फ़ेवर में है।

ठीक इसी तरह का दूसरा क़िस्सा इंदौर के एक छात्र का है। इस छात्र ने हाल ही में 5 वर्षीय बी॰बी॰ए॰ एल॰एल॰बी॰ कोर्स के चौथे सेमिस्टर अर्थात् द्वितीय वर्ष की परीक्षा दी है। दो वर्ष पढ़ाई करने के बाद इस छात्र को लग रहा है कि वकील के रूप में खुद को स्थापित करना आसान नहीं है। इसलिए वह 2 वर्ष का नुक़सान करके एक बार फिर से बी॰ कॉम॰ में प्रवेश लेना चाहता है और साथ ही वह बाज़ार में पूँजी निवेश कर, पैसा कमाना चाहता है।

दोस्तों, अगर पढ़ाई के दौरान आपको लगता है कि आपने उन विषयों या कैरियर को चुन लिया है जो आपको पसंद नहीं है तो स्टेप बैक कर फिर से शुरुआत करना ग़लत नहीं है क्यूँकि जीवन भर वह कार्य करना जो पसंद नहीं है से अच्छा है, दो साल की चिंता छोड़, एक बार फिर से सही शुरुआत करना। लेकिन इस मामले में भी मुख्य समस्या मानसिक बैरियर के रूप में ही समझ आ रही थी। 

वैसे आजकल ज़्यादातर बच्चों की सोच में यह बदलाव साफ़ नज़र आ रहा है। वे जीवन काटना नहीं जीना चाहते हैं, इसलिए क्वालिटी ऑफ़ लाइफ़ की ज़्यादा बात करते हैं। जो शायद सही भी है, लेकिन अनुभव की कमी और एस्केपिंग एटीट्यूड की वजह से वे बिना तैयारी के, कम्फ़र्ट ज़ोन में रहने को ‘क्वालिटी लाइफ़ या बेहतरीन जीवनशैली’ मान रहे हैं। 

मेरी नज़र में दोस्तों, इस समस्या का समाधान हम अपनी पेरेंटिंग शैली में बदलाव करके, कर सकते हैं। हमें टीनएज में ही अपने बच्चों के दोस्त बन कर उन्हें निर्णय लेना, लिए गए निर्णय का सम्मान करना, मेहनत करना सिखाना होगा। साथ ही हमें अपने सम्पर्कों का उपयोग कर उन्हें विभिन्न क्षेत्रों का एक्स्पोज़र देना होगा, जिससे वे सही कैरियर व रोल मॉडल का चुनाव कर सकें। लेकिन दोस्तों यह सुझाव तब तक अधूरा रहेगा जब तक हम उन्हें इन सभी के साथ-साथ जीवन की गहराई और दुनिया की हक़ीक़त ना समझा सकें। इसके लिए हमें उन्हें दैनिक जीवन में लिए जाने वाले निर्णयों में सहभागी बनाना होगा। जिससे वे जीवन की हक़ीक़त से रूबरू होकर उसका अर्थ गहराई से समझ सकें। इसके साथ ही कम उम्र से ही हमें उन्हें पैसे की क़ीमत और महत्व के बारे में भी सिखाना होगा। बिलकुल संक्षेप में कहूँ दोस्तों, तो हमें बच्चों को सिर्फ़ ज्ञानी और शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ ही नहीं बल्कि इनके साथ-साथ मन से मज़बूत अर्थात् दृढ़ भी बनाना होगा। तभी तो वे समझ पाएँगे कि, ‘मन के हारे हार हे और मन के जीते जीत!!!’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com