फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, अपने जीवन में अक्सर मैंने ना सिर्फ़ लोगों को बल्कि आज से कुछ वर्ष पहले तक खुद को भी किसी भी असफलता के लिए दूसरों को दोष देते हुए देखा है। इसे मैं आपको अपने जीवन की एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। वर्ष 2010 में मेरे गुरु श्री राजेश अग्रवाल जी ने मुझसे प्रश्न करा, ‘निर्मल, तुम्हारे अगले 5 लक्ष्य क्या हैं?’ चूँकि यह प्रश्न सर हर मुलाक़ात में पूछते थे, इसलिए इस बार मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार था। मैंने तुरंत अपने 5 लक्ष्य सर को बता दिए।

लक्ष्यों को सुनते ही सर बोले, इस लक्ष्य को तो तुम 31 तारीख़ तक पूर्ण करने वाले थे? मैंने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, ‘यस सर, लेकिन क्या करूँ मुझे मेरे एक्स॰वाय॰ज़ेड॰ साथियों ने सपोर्ट नहीं करा।’ सर ने तुरंत मुझे अपनी लिखी एक कविता सुनाई, ‘मैं वे ही सपने देखता हूँ, जिन्हें खुद पूरा कर सकूँ। उतनी ही इच्छाएँ रखता हूँ जिन्हें अपने दम पर भर सकूँ।’, सुनाते हुए कहा अगर तुम मुझे कुछ दिन पूर्व मिल जाते तो मैं इस कविता को तुम्हारे लिए कुछ इस तरह लिखता, ‘‘मैं वे ही सपने देखता हूँ, जिन्हें एक्स॰वाय॰ज़ेड॰ साथी पूरे करा सकें। उतनी ही इच्छाएँ रखता हूँ जिन्हें एक्स॰वाय॰ज़ेड॰ साथियों के दम पर भर सकूँ।’ दोस्तों यह कविता पूरी होते-होते मुझे अपनी गलती पूर्णतया समझ आ चुकी थी। मुझे एहसास हो गया था कि खुद को सुधारे बिना अधूरे सपनों को पूरा नहीं किया जा सकता है।

अगर आप अभी भी मेरी बात से सहमत ना हों तो आज ही एक प्रयोग कर के देख लीजिएगा, आज आप जिस से भी मिलें यह प्रश्न पूछ कर देखिएगा, ‘आप अपने लक्ष्यों को अभी तक क्यों पूरा नहीं कर पाए?’ या फिर, ‘आप अपने सपनों का जीवन क्यों नहीं जी पा रहे हैं?’ जवाब में दोस्तों निश्चित तौर पर 10 में से 9 लोग कहेंगे कि इसमें पूरी गलती दूसरों की है अर्थात् वे सपनों के पूरे ना होने का दोष दूसरे लोगों, परिस्थितियों और चुनौतियों को देते हुए मिल जाएँगे।

लेकिन सोच कर देखिएगा दोस्तों, क्या सभी लोगों को बदला जा सकता है? बिल्कुल भी नहीं, ठीक इसी तरह परिस्थितियों या चुनौतियों को भी बदलना या अपनी पसंद की चुनना भी सम्भव नहीं है। विजेता तो वही होता है दोस्तों, जो उपलब्ध संसाधनों, खुद के ज्ञान और कौशल से इन सभी चीजों या स्थितियों पर विजय प्राप्त कर सके और अक्सर यह हमें बहुत मुश्किल लगता है। लेकिन मेरा मानना, इस सोच के बिल्कुल विपरीत है। पारिस्थितिक समस्याओं, चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर, लक्ष्य हासिल करना असल में बहुत आसान है। उसके लिए बस आपको अपने सही दुश्मनों को पहचानना सीखना होगा।

सामान्यतः हमें लगता है कि लक्ष्य प्राप्त करने में हमें जो भी समस्या आ रही है, उसकी वजह बाहरी कारण हैं अर्थात् हमारा शत्रु या दुश्मन बाहर है। लेकिन हक़ीक़त में होता बिल्कुल इसका विपरीत है, लक्ष्य प्राप्त करने में आने वाली दिक्कतें बाहरी कम, आंतरिक ज़्यादा होती हैं। जैसे भय, लालच, अधीरता, आलस्य, ज्ञान, कौशल अथवा योग्यता की कमी, व्याकुलता आदि।

जी हाँ साथियों, अक्सर हमारी सफलता हमारे आंतरिक गतिरोध और उपरोक्त कारणों के कारण हमसे दूर हो जाती है। अगर आप जीवन में वाक़ई सफल होना चाहते हैं, तो असफलता के बाहरी कारणों को ढूँढने से पहले खुद के अंदर झांके और अपनी कमियों या अपने दुश्मनों को पहचाने। जैसे
1) खुद से ज्यादा, दूसरों पर भरोसा करना।
2) सीखने के लिए तैयार ना रहना।
3) खुद से ग़लत या अवास्तविक अपेक्षा रखना।
4) खुद की प्राथमिकताओं को नज़रंदाज़ कर दूसरों के कार्यों को ज़्यादा महत्वपूर्ण मानना और बाद में लक्ष्य पूरा ना होते देख बेचैन, चिंतित रहना।
5) खुद को बचाने के लिए प्रयास करने के स्थान पर दूसरों का इंतज़ार करना।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com