फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, सबसे पहले तो मैं माफ़ी चाहूँगा क्यूँकि आज मैं लेख की शुरुआत इंदौर में घटित दो हृदय विदारक घटनाओं के ज़िक्र के साथ कर रहा हूँ। पहली घटना : एक युवा बी॰बी॰ए॰ के छात्र ने नक़ल करते हुए पकड़ाये जाने पर आत्महत्या कर ली। दूसरी घटना : एक युवा ने शराब पीने के बाद अपने ही दोस्त की हत्या कर दी। दोनों ही घटनाओं को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि क्या इन युवाओं को जीवन का मूल्य पता है?

वैसे इन युवाओं को ही क्यों दोष दूँ, रोज़मर्रा के जीवन में अपने आस-पास ही देख लीजिए आपको कई लापरवाह लोग मिल जाएँगे। ऐसा लगता है जैसे समाज के रूप में ही हम इन्हें जीवन का मूल्य और जीवन मूल्य देने में ही चूक कर गए हैं। उदाहरण के लिए, कोविद प्रोटोकॉल के पालन को लेकर लोगों का व्यवहार, मुनाफ़े के लिए की गई मिलावट, लोगों और परिंदों की हर साल जान लेने वाली चाइना डोर का व्यापार, पैसों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवीयता को नीलाम करना, आदि। यह सूची बहुत लम्बी है साथियों। मेरा मानना है कि अगर हम पैसे को जीवन और इंसानियत से ज़्यादा मूल्यवान बना देंगे तो यह दुनिया सिर्फ़ एक बाज़ार बनकर रह जाएगी और हम सब वस्तु।

इससे बचने का एक ही तरीक़ा है दोस्तों, हमें अपने जीवन के मूल्य और मक़सद को ना सिर्फ़ समझना होगा बल्कि उसे अपने लोगों को या समाज को भी समझाना होगा, तो चलिए इसकी शुरुआत हम आज, और अभी, एक कहानी के माध्यम से करते हैं-

बात कई वर्ष पुरानी है, एक महात्मा ने अपने शिष्य को जीवन का मूल्य बताने के उद्देश्य से एक साधारण सा दिखने वाला पत्थर देते हुए कहा, ‘बाज़ार में जाओ और अलग-अलग व्यक्तियों से इस पत्थर का मोल अर्थात् क़ीमत पता करके आओ। बस इतना याद रखना क़ीमत कुछ भी मिले तुम्हें इसे बेचना नहीं है।’ शिष्य ने गुरु को प्रणाम करा और पत्थर लेकर क़ीमत पता करने के लिए बाज़ार की ओर चल दिया।

बाज़ार के रास्ते में उसे एक राहगीर मिला, उसने संत के दिए पत्थर को दिखाते हुए उसे बेचने की मंशा जताई। राहगीर ने उस पत्थर को दूर से ही देखते हुए कहा, ‘सड़क पर पड़े पत्थर का भी कोई मोल होता है क्या? यह तो यूँ ही फ़्री में मिल जाते हैं। मुझे नहीं चाहिए यह।’ शिष्य पत्थर को लेकर बाज़ार पहुँचा और एक किराने वाले दुकानदार को उसे दिखाते हुए बोला, ‘क्या आप इस पत्थर को ख़रीदना चाहेंगे।’ दुकानदार ने उसके हाथ से पत्थर लिया और उसे देखता हुआ बोला, ‘मैं इसके बदले में तुम्हें एक दिन का अनाज दे सकता हूँ, बस।’ शिष्य को भी वैसे ऐसा ही कुछ होने की उम्मीद थी। उसने दुकानदार को धन्यवाद कहा और अपना पत्थर लेकर एक आभूषण बेचने वाली दुकान पर पहुँच गया और उससे उसकी क़ीमत पूछी।

दुकानदार ने पत्थर को देखा और बोला, ‘मैं तुम्हें इस पत्थर के अधिकतम पचास हज़ार रुपए दे सकता हूँ।’ शिष्य को गुरु की पत्थर को ना बेचने वाली बात याद थी। अच्छी क़ीमत सुनने के बाद भी उसने पत्थर बेचने से मना कर दिया। उससे ना सुनते ही दुकानदार को लगा कि शायद पत्थर बेचने वाले को उसकी सही क़ीमत का अंदाज़ा है। उसने तुरंत उसकी क़ीमत बढ़ाते हुए पहले 5 लाख, फिर 25 लाख और अंत में 2 करोड़ बोल दी। शिष्य पत्थर की इतनी क़ीमत सुन हैरान था। उसने बड़े मुश्किल से आभूषण विक्रेता को मना करा और रत्नों के विशेषज्ञ के पास पहुँच गया। रत्न विशेषज्ञ ने पत्थर को काफ़ी देर तक परखा और अंत में उसे अपने माथे पर लगाकर एक लाल मखमली कपड़े पर रखते हुए बोला, ‘आपको यह अनमोल माणिक कहाँ से मिला? अगर मैं सारी दुनिया का धन भी ले आऊँ तो इसे ख़रीद नहीं पाऊँगा। यह अनमोल है।’

रत्न विशेषज्ञ की बात सुन शिष्य स्तब्ध था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले क्यूँकि जिसे वह साधारण पत्थर मान रहा था, उसे सारे जहां की दौलत से भी नहीं ख़रीदा जा सकता था। उसने विशेषज्ञ से पत्थर लिया और बड़ी हिफ़ाज़त के साथ उसे छुपाकर अपने कपड़ों में रखा और वापस महात्मा जी के पास पहुँचा और उन्हें काँपते हाथों से पत्थर को सौंपते हुए शुरू से अंत तक की सारी कहानी सुना दी।

पत्थर वापस लेते हुए महात्मा बोले, ‘वत्स, हमारा जीवन भी इस पत्थर की तरह अनमोल है। लेकिन कई बार हम उस राहगीर की तरह भाग्य से मिले अमूल्य पत्थर को राह में पड़े मिले साधारण पत्थर की भाँति मान लेते हैं और क़िस्मत से मिले मौके को गँवा देते हैं। कुछ लोग किराना व्यापारी या आभूषण विक्रेता की तरह उसका मूल्य समझने का प्रयास तो करते हैं लेकिन सहीं आंकने में चूक जाते हैं और अपने जीवन को फ़ालतू की चीजों में बर्बाद कर देते हैं। इस दुनिया में बहुत कम लोग होते हैं जो रत्न पारखी की तरह जीवन का सही मूल्य आंक पाते हैं और उसे बर्बाद करने के स्थान पर खुश रहते हुए, पूर्णता के स्तर तक जीने का प्रयास करते हैं।

दोस्तों, आज से हर पल याद रखिएगा, आप और आपका जीवन बहुमूल्य है। कोई व्यक्ति, घटना, परिस्थिति उसकी क़ीमत, उसकी उपयोगिता तब तक कम नहीं कर सकती, जब तक आप स्वयं उसकी क़ीमत ना गिरा लें। सामान्य लोग तो अपने मक़सद, आप पर विश्वास, उनकी महत्वाकांक्षा, उनके फ़ायदे और उनकी क्षमता के आधार पर, आपका मूल्य लगाएँगे, लेकिन ऐसी स्थितियों से हमें डरना, घबराना नहीं है। बस थोड़ा धैर्य रखते हुए विश्वास रखना है कि जल्द ही कोई मिलेगा, जो हमारा सही मूल्य समझेगा। ध्यान रखिएगा दोस्तों आप अनोखे हैं, कोई और आपकी जगह नहीं ले सकता है, इसलिए अपनी क़ीमत पहचानिए और खुद की इज्जत कीजिए।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com