फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, जीवन में अगर उद्देश्य हो तो, उम्र महज़ एक आँकड़ा है। जी हाँ, उद्देश्य या लक्ष्य का होना आपको जीवन में गतिशील बनाए रखता है। गतिशील रहना अर्थात् अपने समय, दिमाग़ और मन को उद्देश्य पूर्ति के लिए किए जाने वाले कार्यों में व्यस्त रखना और जब आप योजनाबद्ध तरीके से उद्देश्य पूर्ति के लिए व्यस्त रहते हैं तब आप स्वयं को व्यर्थ की नकारात्मकता से बचाकर, जीवन को सार्थक बनाते है। चलिए, अपनी बात को मैं आपको मदुरै में रहने वाली श्रीमती पद्मावती हरिहरण की सच्ची कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ। 

श्रीमती पद्मावती हरिहरण का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही पढ़ने में अच्छी थी और शुरू से ही उनका  लक्ष्य कम से कम ग्रैजुएशन तक शिक्षा लेना था। लेकिन उनके घर वालों ने इंटरमिडिएट पास करते ही उनकी शादी श्री ई॰ हरिहरण से करवा दी। शादी के बाद भी श्रीमती पद्मावती के दिमाग़ में हर पल एक ही बात चलती थी, ‘किसी तरह अपना ग्रैजुएशन पूरा कर लूँ।’ मुझे तो उनकी बात सुनते समय ऐसा लग रहा था जैसे यही उनका एकमात्र सपना था।

3 बच्चों की माँ बनने के बाद श्रीमती हरिहरण को एक बार फिर पढ़ने का मौक़ा मिला और उन्होंने वर्ष 1995 में मदुरै की कामराज यूनिवर्सिटी से बी॰कॉम॰ की शिक्षा लेना शुरू कर दिया और 42 वर्ष की आयु में ग्रैजुएट बनने का अपना सपना पूरा करा। ग्रैजुएशन पूर्ण करते ही उनके परिचित चार्टेड अकाउंटेंट श्री सीवीएस मणियन ने उन्हें सी॰ए॰ करने के लिए प्रोत्साहित करा लेकिन श्रीमती हरिहरण मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं थी। उन्होंने उसी वक्त सी॰ए॰ की पढ़ाई करने से इनकार कर दिया। इस पर श्री मणियन ने उन्हें एम॰ कॉम॰ के साथ सी॰ए॰ की तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित कर तैयार किया। 

45 वर्ष की उम्र में श्रीमती हरिहरण ने एम॰ कॉम॰ के साथ सी॰ए॰ की तैयारी करना शुरू किया और 50 वर्ष की उम्र में वे सी॰ए॰ बन गई। उनकी मेहनत और लगन का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सी॰ए॰ बनने के लिए आवश्यक सभी ग्रुप परीक्षाएँ उन्होंने प्रथम प्रयास में ही क्लीयर करी। लेकिन दोस्तों 3 बच्चों की माँ के लिए यह इतना आसान नहीं था। कई बार तो उन्हें एक ही दिन में दो-दो परीक्षाएँ देनी पड़ी। अर्थात् वे सुबह सी॰ए॰ की परीक्षा देने जाती थी और दोपहर में एम॰ कॉम की। इतना ही नहीं, परीक्षा देने जाने के पहले उन्हें अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ भी निभाना होती थी। जैसे एक बार परीक्षा के दिन उनके घर पर मेहमान आ गए, तो उन्होंने ‘अतिथि देवो भवः', को चरितार्थ करते हुए पहले उनके खान-पान की व्यवस्था करी और उसके बाद दौड़ते-भागते परीक्षा देने पहुँची। अपने लक्ष्य के प्रति उनके कमिटमेंट का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वे खुद को अपने घर में बंद कर लिया करती थी, ताकि बिना किसी व्यवधान के वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें। उन्होंने अपने घर की सभी दिवार पर गणित के समीकरण अथवा याद रखी जाने वाली बातें लिखकर लगा रखी थी, जिससे वे घर के काम करते-करते अपनी पढ़ाई भी कर सके। 

50 वर्ष की उम्र में सी॰ए॰ पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू करी। उनका जीवन प्रबंधन का तरीक़ा इतना अच्छा था कि वे पढ़ाई के साथ अपने परिवार और अपने शौक़ अर्थात् संगीत के लिए भी बराबर समय निकाल लिया करती थी।इसी का नतीजा था कि उनके छोटे पुत्र ने उन्हीं से प्रेरणा लेकर सी॰ए॰ बनने का निर्णय लिया। पढ़ाई या कुछ नया सीखने की उनकी लगन का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 73 वर्ष की उम्र में उन्होंने संस्कृत भारती की परीक्षा को 98% अंकों के साथ पास किया। 86 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद श्रीमती हरिहरण ने अपने व्यवसायिक कार्य से रिटायरमेंट लिया। 

आज के युवा वर्ग के लिए सफलता का मंत्र पूछे जाने पर श्रीमती पद्मावती हरिहरण ने कहा, ‘लक्ष्य तय करो और उसके बाद पूरे जोश, समर्पण और दृढ़ता के साथ अपने सपने का पीछा करो। हमेशा याद रखो तुम सफल होने के लिए पैदा हुए हो। हर पल अपनी सफलता के लिए लगे रहो, उसके लिए प्रयास करो, प्रयास करो, प्रयास करो और तब तक प्रयास करते रहो, जब तक सपना सच ना हो जाए।’ 

बात सही भी है साथियों, जीवन में सफलता किसी को भी ट्रे में सजी हुई नहीं मिलती है, उसके लिए सारे किंतु-परंतु को हटाकर पूरी लगन से प्रयास करना पड़ता है। किसी ने सही कहा है दोस्तों, जहाँ चाह, वहाँ राह!!!

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com