फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत हम जीवन की एक सच्ची कहानी से करते हैं। बात कई वर्ष पुरानी है, सुदूर गाँव में एक बहुत ही मेहनती व्यक्ति रहता था। हालाँकि उसकी ख्वाइशें बहुत ज़्यादा और बड़ी थी। लेकिन अपनी और से तमाम प्रयास करने के बाद भी दिन के खत्म होने तक उसके पास रोटी का ही जुगाड़ हो पाता था। जी हाँ, वह चाहे जितनी मेहनत कर ले, फिर भी अंत में उसे रोटी ही मिल पाती थी।

कुछ ही दिनों में उस व्यक्ति को एहसास हो गया कि ईश्वर ने, उसके प्रारब्ध ने, उसके लिए रोटी का ही प्रावधान करा है। उसने इसे खुले दिल से स्वीकारा अर्थात् उसने अपनी क़िस्मत को बुरा मानने, उस पर रोने या दोष देने के स्थान पर या फिर उसे बदलने के लिए, अपनी बड़ी-बड़ी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए, जीवन की सभी प्राथमिकताओं को छोड़ने के स्थान पर, ईश्वर के द्वारा दी गई रोटी को खुले मन से स्वीकारना शुरू कर दिया। जी हाँ, यह पता होने के बाद भी कि अंत में उसे सिर्फ़ रोटी ही मिलने वाली है, वह अपना पूरा ध्यान देते हुए अपना कर्म करता था।

इस विचार को अपना ध्येय बना लेने की वजह से अब वह व्यक्ति थोड़ा शांत हो गया था। अब उसे कम परिणाम भी परेशान नहीं करता था, उसका लक्ष्य तो बस अब अपनी पूरी क्षमता के साथ, अपना सर्वस्व देना हो गया था। अब दिन के अंत में जब भी उसे रोटी मिलती थी वह उसे भर पेट खा लेता था व जो अतिरिक्त बच जाती थी, वह उसे घर के एक कोने में संग्रहित कर लेता था।

एक बार गाँव में सूखा पड़ने पर ज़्यादातर लोग अपने पशुओं के साथ दूसरे स्थान पर चले गए। अंत में पशुपालकों में सिर्फ़ एक व्यक्ति बचा जो भेड़ पालन का कार्य किया करता था। भेड़ पालक ने गाँव के एक घर में बची हुई रोटियों का संग्रह देख, जो उसी व्यक्ति का घर था। भेड़ पालक ने उस व्यक्ति से रोटियों को भेड़ों को खिलाने के लिए मांग लिया। रोटियों के मालिक अर्थात् उस व्यक्ति ने सोचा ईश्वर तो रोज़ मुझे पेट भरने के लिए रोटियाँ दे ही रहा है तो मैं क्यूँ ना इन बचे हुए रोटियों के टुकड़ों से भेड़ पालक की मदद कर दूँ। यह विचार आते ही उसने ख़ुशी-ख़ुशी बची रोटियों के टुकड़े भेड़ों को खिलाने के लिए दे दिए। भेड़ पालक उस व्यक्ति की मदद से खुश हो गया और उसे ईनाम स्वरूप एक गर्भवती भेड़ दे दी।

अब उस व्यक्ति ने अपनी बची हुई रोटियाँ उस भेड़ को खिलाना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में उस भेड़ ने दो बच्चे दिए, अब यह व्यक्ति तीनों भेड़ों का बहुत ध्यान रखने लगा और अपने भोजन में से बची रोटियाँ उन्हें खिलाने लगा। धीरे-धीरे उसकी भेड़ों की संख्या बढ़ने लगी और उसी हिसाब से उसकी सम्पत्ति भी। कुछ ही सालों में वह व्यक्ति बहुत अमीर और प्रसिद्ध हो गया, पर इसके बाद भी उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। वह अभी भी ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव रखता था और उसे आज भी मतलब सिर्फ़ अपनी रोटी से ही था।

दोस्तों यह व्यक्ति कभी भी पैसों के पीछे नहीं भागा। उसने तो बस खुद को शांत और संतुष्ट रखने का प्रयास करा क्यूंकि उसे पता था कि उसकी ‘रोटी’ का ध्यान रखने के लिए ईश्वर हैं। उसके लिए जितना भी आवश्यक होगा ईश्वर उसके पास भेज देंगे। इसे दूसरे शब्दों में समझा जाए तो दोस्तों इस कहानी में दो मुख्य जीवन सूत्र छिपे हुए हैं-

पहला सूत्र - इस व्यक्ति ने जो नहीं मिला उस वजह से परेशान होने के स्थान पर, जो मिल रहा था उसे खुश होकर स्वीकारा और उसमें से भी जितनी मात्रा की आवश्यकता थी सिर्फ़ उतने का ही प्रयोग खुद के लिए किया और बचे हुए को जरूरतमंद को देने में ज़रा भी चिंता महसूस नहीं करी अर्थात् दोस्तों खुश रहने के लिए ज़रूरी है कि आप जो उपलब्ध है उसका सर्वोत्तम उपयोग करें और उसमें से भी कुछ बचाकर समाज की बेहतरी के लिए लगाए।

दूसरा सूत्र - बाहरी साधनों अथवा कौशल पर ध्यान देने के स्थान पर खुद के अंदर झांको और जो आपके अंदर दिख रहा है, भले ही आज वो कम या छोटा हो, उसकी चिंता करने के स्थान पर उसका सर्वोत्तम प्रयोग करो। ऐसा करना अनावश्यक प्रतियोगिता से बचाकर, आपको सर्वश्रेष्ठ या धनवान भी बना सकता है।

याद रखिएगा दोस्तों, जिस सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हमें बनाया है, उसने हमसे क्या करवाना है, इसकी योजना भी बना रखी है। इसलिए जीवन में दुविधा होने पर बाहरी समाधान खोजने से पहले खुद के अंदर झांके और जब भी ज़रूरत लगे तब सिर्फ़ और सिर्फ़ उस परमपिता परमेश्वर के अंश अर्थात् ईश्वर से मार्गदर्शन लें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com