क्षेत्रीय समीकरण बिगड़ने से बिगड़ा गणित, मध्यप्रदेश के चुनाव में कांग्रेस किसी भी मोर्चे पर फेल नहीं होना चाहती। लेकिन गलत चुनावी रणनीति की वजह से कांग्रेस जनाधार नहीं जुटा पा रही है। सात स्थानों से शुरू हुई कांग्रेस की जनआक्रोश रैली में पार्टी का कोई बड़ा चेहरा नहीं दिख रहा है। जो नेता रैली में लीड कर रहे हैं वह जनसर्मथन नहीं जुटा पा रहे हैं। पार्टी राज्य के क्षेत्रीय समीकरण में भी गच्चा खा रही है, ब्राहृमण बहुल क्षेत्र से ठाकुर नेता को कमान दे दी गई। पार्टी ने बुंदेलखंड से अरूण यादव को उतारा, यादव वहां न जातिगत समीकरण में फिट बैठ रहे हैं और न ही उनका कद इतना बड़ा है कि वह लोगों को प्रभावित कर सकें।

बड़ा चेहरा नहीं, कार्यकर्ताओं का टूटा मनोबल

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की भूमिका दिल्ली तक सीमित रह गई है। पार्टी की जोर शोर से शुरू की गई जनआक्रोश रैली में कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा, जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी कम हो रहा है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जगह पार्टी ने जीतू पटवारी और गोविंद सिंह को जनआक्रोश रैली की अगुवाई करने के लिए चुना है। हालांकि दोनों ही नेताओं की मध्यप्रदेश के क्षेत्रीय इलाकों में अच्छी पकड़ है, राऊ से विधायक जीतू पटवारी को आला कमान ने चुनाव प्रचार कमेटी का सह अध्यक्ष भी बनाया है। सूत्रों की मानें तो जनसमर्थन जुटाने की बात हो तो जनता बड़े नेताओं को ही देखना और सुनना चाहती है, इस मामले में पार्टी का चुनावी समीकरण पूरी तरह फेल होता दिख रहा है। पार्टी ने जाने माने नेता अरूण यादव को बुंदेलखंड भेजा है, जहां के जातीय समीकरण में अरूण फिट नहीं बैठ रहे, इसी तरह अजय सिंह को विंध्य की कमान दे दी गई है जबकि विंध्य ब्राहृमण बहुल क्षेत्र है, विंध्य से पार्टी को ब्राहृमण चेहरा ही उतारना चाहिए था, क्योंकि यहां ठाकुर और ब्राम्हण हमेशा से आमने सामने रहे है। इसे कमजोर चुनावी रणनीति कहें या क्षेत्रीय समीकरण का बिगड़ा हुआ गणित, लेकिन इसका सीधा प्रभाव कांग्रेस की जनआक्रोश यात्रा पर नजर आ रहा है और यही वजह है कि यात्रा को जनता का समर्थन नहीं प्राप्त हो रहा है।