जयपुर । राजस्थान में बीजेपी को तीन बार सत्ता दिलाने वाले भैरोसिंह शेखावत की जन्मशती के नाम पार्टी राजपूतों को जोड़ने का कार्यक्रम चला रही थी। अचानक खबर आती है कि उनके दामाद का ही टिकट कट गया है। खैर टिकट कटता और मिलता रहता है पर डैमेज कंट्रोल के लिए बीजेपी जैसी हड़बड़ी दिखा रही है उससे लगता है कि राजपूत वोटों को लेकर सब कुछ ठीक नहीं है। 
राजस्थान में राजपूतों का इतिहास रहा है। संख्या बल में अन्य जातियों से कम होने के बावजूद प्रतिनिधित्व के मामले में सभी पर भारी पड़ते रहे हैं। इसकारण कोई भी पार्टी इनकी अनदेखी नहीं करती रही है। 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण राजपूतों की नाराजगी ही रही। 2023 में भी बीजेपी के हाल के फैसलों से यही लग रहा है कि पार्टी राजपूत वोटों को लेकर कन्फ्यूज में है। 
पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी संस्थापकों में से एक रहे शेखावत के दामाद का टिकट कटने के बाद पार्टी हड़बड़ी में दिख रही है।  महाराणा के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ और करणी सेना के संस्थापक के पुत्र भवानी सिंह कल्वी को वोटिंग के एक महीने पहले आनन फानन में पार्टी में शामिल कराने से यही लगता है। तब क्या राजस्थान में बीजेपी राजपूत वोटों को लेकर संदेह में है?
राजस्थान में राजपूतों की जनसंख्या कुल 8 से 10 प्रतिशत के ही करीब है। जो अपनी प्रतिद्वद्वी जातियों जाटों और गुर्जरों के मुकाबले काफी कम है। लेकिन राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के हर विधानसभा चुनाव में करीब 14 से 15 प्रतिशत विधायक इसी समुदाय के चुने जाते हैं। जबकि लोकसभा चुनावों में यह प्रतिशत कभी-कभी 20 प्रतिशत तक पहुंच जाता रहा है।  राजस्थान के करीब 120 विधानसभा सीटों से राजपूत समुदाय के प्रत्याशी कभी न कभी अपना परचम लहरा चुके हैं। कहने का मतलब यह है कि जिन सीटों पर इस समुदाय की जनसंख्या कम है वहां से भी राजपूत चुने जाते रहे हैं। 
2014 में बीजेपी के कद्दावर नेता जसवंत सिंह का टिकट कटने से शुरू हुई राजपूत समाज की नाराजगी दिन प्रति दिन बढती गई। वसुंधरा सरकार के समय राजकुमारी दीया सिंह के होटल का प्रकरण, आनंदपाल के एनकाउंटर , सामराऊ प्रकरण , चतुर सिंह एनकाउंटर आदि को लेकर राजपूतों में राज्य सरकार के प्रति जो नाराजगी पैदा हुई वहां 2108 के चुनावों में नजर आई थी। इसके साथ ही गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष न बनाने को लेकर राजपूतों में नाराजगी रही। समुदाय में ऐसा संदेश गया प्रदेश की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे के विरोध के चलते अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय चेहरा मदन लाल सैनी को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। यही सब कारण रहा है कि कांग्रेस से अधिक बीजेपी ने राजपूतों को टिकट बांटा पर वोट कांग्रेस से अधिक नहीं पा सके। 
2018 चुनावों में मिली हार के चलते बीजेपी संगठन करीब 2 साल पहले से ही राजपूत समुदाय को मनाने में जुट गया था। 2022 अगस्त में दुर्गादास राठौर और पन्ना धाय की मूर्ति का अनावरण राजनाथ सिंह से कराकर राजपूत समाज को संदेश देने की कोशिश शुरू हो गई थी। इसके बाद में प्रदेश के तीन बार सीएम रहे भैरो सिंह शेखावत का 100वां जन्मदिन बड़े पैमाने पर करने की योजना बनाई गई। बीजेपी ने पूर्व सीएम शेखावत के जन्मशती महोत्सव से राजपूत मतदाताओं को साधने के लिए 5 महीने का वोटर कनेक्ट प्लान भी बनाया। राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद्र कटारिया को हटाकर उनकी जगह राजपूत समुदाय के राजेंद्र सिंह राठौर को प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया। महारानी दीया सिंह को हर मोर्चे पर फ्रंट पर रखने का संदेश दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनती है, तब महारानी दीया सिंह मुख्यमंत्री भी बन सकती हैं। इस तरह राजपूत समुदाय को पार्टी यह संदेश दे रही है कि पार्टी के लिए वे कितना महत्वपूर्ण हैं। 
वसुंधरा को पार्टी में किनारे लगाने से राजपूत नाराज नहीं हैं पर अगर चुनाव के अंत तक वसुंधरा को पार्टी संभाल नहीं पाती है, तब यह तय है कि वसुंधरा राजपूतों को नाराज कर सकतीं हैं। महारानी दीया कुमार और वसुंधरा राजे में बहुत बड़ा अंतर है। वसुंधरा बीजेपी की बहुत पुरानी कार्यकर्ता रही हैं। बीजेपी और राजस्थान की रग-रग से परिचित हैं। उन्होंने पार्टी को राजस्थान में खड़ा करने के लिए खून-पसीना बहाया है। और सबसे बड़ी बात खुद को क्षत्रिय की बेटी भी कहती रही हैं।