भोपाल। प्रदेश की 103 आकांक्षी यानी 2018 में हारी   सीटों में से भाजपा ने 39 पर प्रत्याशियों की घोषणाकर मैदान मारने का आगाज तो कर दिया, लेकिन अधिकांश प्रत्याशियों के विरोध ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी है। जिस तरह से प्रत्याशियों का विरोध हो रहा है, उससे पार्टी को बड़ा डैमेज होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में पार्टी के रणनीतिकार इस बात पर मंथन कर रहे हैं कि जिन क्षेत्रों में प्रत्याशियों का सबसे अधिक विरोध हो रहा है, उनको बदल दिया जाए। इस तरह संभावना जताई जा रही है कि करीब दर्जन भर सीटों पर प्रत्याशियों को बदला जा सकता है।
गौरतलब है कि मप्र में भाजपा ने 17 अगस्त को 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। कहा गया कि यह मास्टर स्ट्रोक है। इससे हारी हुई सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों को तैयारी करने के लिए वक्त मिलेगा। इन सीटों पर हार को जीत में तब्दील किया जा सकता है। हालांकि, यह परेशानी का सबब बन गया है। 39 में से 16 सीटों पर विरोध हो रहा है। भोपाल में भाजपा कार्यालय पर हर दिन अलग-अलग क्षेत्रों से कार्यकर्ता आ रहे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं विधानसभा क्षेत्रों में भी रोजाना विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इस कारण रणनीतिकार इस बात पर मंथन करने को मजबूर हो रहे हैं कि जहां प्रत्याशियों का अधिक विरोध हो रहा है, वहां बदलाव किया जा सकता है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार दिन पर दिन बढ़ते विरोध को देखते हुए भाजपा अपनी पहली सूची से एक दर्जन प्रत्याशियों को बदल सकती है। सूत्रों की मानें तो इस पर शुक्रवार को हुई बैठक में संभावनाएं तलाशी गई। बैठक में पार्टी नेताओं ने पहली सूची में जारी प्रत्याशियों को लेकर चर्चा की। नेताओं ने कहा कि जिस तरह से कुछ स्थानों पर विरोध हो रहा है, वह किसी भी स्थिति से उचित नहीं है। कार्यकर्ताओं को समझाना होगा कि जो भी निर्णय लिए गए हैं, वे पार्टी हित में हैं। सूत्रों की मानें तो शुक्रवार को नेताओं ने पहली सूची के बाद हो रहे विरोध को लेकर चर्चा की। इस मामले में पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशियों के क्षेत्रों से फीडबैक लिया था, जिसमें यह बात सामने आ रही थी कुछ स्थानों में प्रत्याशियों को लेकर कार्यकर्ताओं में असंतोष है, जबकि वहां कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ तैयारी में जुटी हुई है। नेताओं ने ऐसे क्षेत्रों में प्रत्याशी बदले जाने की संभावनाओं को तलाशने की बात की। बताया गया है कि इस संबंध में शीर्ष नेतृत्व से चर्चा होने के बाद ही कोई बड़ा कदम उठाया जा सकता है। यदि दिल्ली से हरी झंडी मिलती है, तो चाचौड़ा सहित कई विधानसभा क्षेत्रों से पार्टी प्रत्याशी बदल सकती हैं।
भाजपा ने विरोध को दबाने के लिए डैमेज कंट्रोल पर काम करना शुरू कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने सभी विधानसभा क्षेत्रों से फीडबैक लिया है। राज्य कार्यसमिति की बैठक के बाद दोनों नेताओं ने हालात की समीक्षा की। दिग्गज नेताओं को विरोध को थामने के लिए मैदान में उतारा जा रहा है। मुरैना में नरेंद्र सिंह तोमर की मध्यस्थता का असर दिखा भी है। मुरैना जिले की सबलगढ़ सीट पर पूर्व विधायक मेहरबान सिंह की बहू सरला विजेंद्र रावत उम्मीदवार है। 2018 में कांग्रेस के बैजनाथ कुशवाह ने रावत को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। फिर भी उन्हें टिकट दिया है। इस पर पार्टी के प्रदेश मंत्री रणवीर रावत का विरोध सामने आया था। उनके बेटे आदित्य ने तो सोशल मीडिया पर ही पार्टी के खिलाफ पोस्ट डाल दी थी। हालांकि, केंद्रीय मंत्री और सांसद नरेंद्र सिंह तोमर ने रणवीर रावत को मनाया। इसके बाद रावत बोले कि जो पोस्ट डाली गई थी उसको डिलीट कर दिया गया है। मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं।
भाजपा ने प्रत्याशियों की जो पहली सूची जारी की है उसमें से 39 में से 16 सीटों पर विरोध हो रहा है। जिन सीटों पर विरोध हो रहा है उनमें सबलगढ़, गोहद (अजा), पिछोर, चाचौड़ा, बंडा, महाराजपुर, छतरपुर, चित्रकूट, शाहपुरा, लांजी, पांढुर्णा, भोपाल उत्तर, सोनकच्छ, झाबुआ, कुक्षी और धरमपुरी सीट शामिल है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2018 में बागियों ने ही भाजपा के समीकरण बिगाड़ दिए थे। लिहाजा इस बार वरिष्ठ नेताओं को डैमेज कंट्रोल में लगाया गया है। इसके बावजूद कुछ सीटों पर असंतुष्टों ने निर्दलीय चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। भाजपा से पहली प्रतिक्रिया पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे की आई। उन्हें शहपुरा सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। धुर्वे शहपुरा की बजाय डिंडौरी से टिकट मांग रहे हैं। वहीं, पिछले चुनाव में बागी बने और पार्टी छोड़ चुके लोगों को टिकट देने से भी कई सीटों पर भाजपा में नाराजगी सामने आ रही है। भाजपा की पहली लिस्ट में पिछली बार चुनाव लड़ चुके 16 लोगों के टिकट काटे गए हैं। इन सीटों पर ही सबसे अधिक विरोध के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। घोषित प्रत्याशियों को लेकर बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ में एक गुट नाराज है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर-चंबल में बगावत के सुरों को साधने की कोशिश की है। दावेदार खामोश हैं। वो मान गए हैं या फिर समय के इंतजार में हैं, इसे लेकर पार्टी आशंकित है। एक महिला नेत्री इतने गुस्से में हैं कि उन्होंने सर्वे पर ही सवाल खड़े कर दिए। बोलीं- ये कैसा सर्वे कि मेरी सीट पर ऐसी महिला को टिकट दे दिया गया, जो पिछले पंचायत चुनाव में मुझसे हार गई थी। भोपाल उत्तर में भाजपा ने इस बार पूर्व महापौर आलोक शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। शर्मा के टिकट को लेकर संघ से जुड़े भाजपा नेता मांगीलाल बाजपेई नाराज हैं। बोले कि-आलोक ने सीएम को पता नहीं कौन सी घुट्टी पिला दी है कि महापौर का चुनाव वही लड़ते हैं और विधानसभा का चुनाव भी वही लड़ते हैं। जबकि पार्टी में निष्ठावान कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है। उन्होंने शर्मा को हराने का दावा किया है। पन्ना के गुन्नौर में भाजपा प्रत्याशी राजेश वर्मा का विरोध भाजपा नेत्री अमिता बागरी कर रही हैं। उन्होंने पार्टी पर वंशवाद का आरोप लगाया है। कहा कि पहले पिता,अब बेटे को टिकट दिया जा रहा है। पार्टी को सिर्फ एक परिवार के प्रत्याशी पर ही भरोसा है। 2018 में मुझे आश्वासन दिया गया था कि अगली बार मौका मिलेगा। बावजूद मुझे टिकट नहीं मिला। अब मैं निर्दलीय चुनाव लड़ूंगी।