रायपुर   कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी गांधी परिवार की पसंद में शामिल हैं। यह चर्चा राज्य में सड़क से सदन तक हो रही है। हालांकि इस मुद्दे पर होने वाले प्रश्नों को बघेल फिलहाल टाल रहे हैं। विधानसभा में बुधवार को भाजपा के अजय चंद्राकर ने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए बस एक ही नाम (बघेल) चल रहा है। बघेल ने इससे इन्कार नहीं किया, केवल इतना कहा कि आपके (चंद्राकर) कहने से कुछ नहीं होगा। इसके बाद से इस चर्चा ने और जोर पकड़ लिया है।

2018 के बाद देश में हुए हर चुनाव में रहे हैं पार्टी के स्टार प्रचारक

 

छत्‍तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के नेता भी मान रहे हैं कि बीते तीन-चार वर्षों में बघेल गांधी परिवार के काफी करीब पहुंच गए हैं। बघेल ओबीसी हैं और उनकी गिनती पार्टी के ऐसे सफल मुख्यमंत्रियों में हो रही है जो पूरी तरह पार्टी लाइन पर चल रहे हैं। यही वजह है कि आलाकमान लगातार उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारियां सौंप रहा है।

2018 के बाद हुए लोकसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें अपना स्टार प्रचारक बनाया। असम के बाद उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी। उत्तर प्रदेश के चुनाव में भले ही पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, लेकिन राहुल गांधी और प्रियांका वाड्रा ही नहीं सोनिया गांधी ने भी बघेल की कार्यशैली की सराहना की है।

राहुल को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के पक्ष में बघेल

राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की वकालत करने वालों में बघेल भी शामिल है। सीएम इस मामले में खुद को राहुल गांधी का वकील भी बताते हुए कई बार कह चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष का दायित्व फिर से संभालना चाहिए।

पीएम के साथ गांधी परिवार के विरोधियों पर भी निशाना

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर कांग्रेस के अंदर गांधी परिवार के विरोधियों पर भी बघेल लगातार निशाना साधते रहे हैं। केंद्र सरकार के फैसलों के खिलाफ भी बघेल खुलकर बोलते हैं। पार्टी के अंदर गांधी परिवार के विरोधी भी उनके निशाने पर रहते हैं। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम को लेकर कपिल सिब्बल के बयान पर भी बघेल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

ढाई-ढाई वर्ष के फार्मूला को किया फेल

प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को रिकार्ड सीटें दिलाकर बघेल ने अपना राजनैतिक कौशल दिखा दिया। इसके बाद तीन नेताओं के बीच चल रही खींचतान के बीच उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की। वहीं, सीएम की कुर्सी को लेकर कथित ढाई-ढाई वर्ष के फार्मूले को भी फेल कर दिया।

छत्‍तीसगढ़ प्रदेश में 15 वर्ष बाद सत्ता में वापसी

प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की लगातार तीसरी हार के बाद 2014 में बघेल को पार्टी की कमान सौंपी गई। तब प्रदेश में कांग्रेस कई गुटो में बंटी हुई थी। संगठन पूरी तरह बिखर चुका था। सबसे बड़ी चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी थे। पार्टी के एक बड़े वर्ग की राय थी कि चुनावों में हार के लिए काफी हद तक जोगी जिम्मेदार हैं, लेकिन जोगी को सीधे आलाकमान का अशीर्वाद प्राप्त है।

ऐसे में उनके खिलाफ कार्यवाही तो दूर कोई बोलने की भी हिम्मत नहीं करता था। ऐसे समय में बघेल ने स्‍व. अजीत जोगी को पार्टी छोड़ने के लिए विवश कर दिया। इसके बाद बूथ स्तर से कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की। तत्कालीन प्रदेश सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन खड़े किए, जेल भी गए। इन सबका असर 2018 के विधानसभा चुनाव में दिखा। पार्टी ने 90 में से 69 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया।