जयपुर। लोकसभा चुनाव में राजस्थान के आदिवासी इलाके की बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर मुकाबला काफी रोचक है। यह सीट पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुइ्र है, क्योंकि यहां कांग्रेस और भारतीय आदिवाासी पार्टी में गठबंधन हो गया है।

कांग्रेस ने इस सीट पर चुनाव लड़ रहे भारतीय आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत को समर्थन दे दिया है, लेकिन फिर भी कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।

दरअसल, गठबंधन को लेकर कांग्रेस और भारतीय आदिवासी पार्टी के बीच नामांकन दाखिल करने को लेकर अंतिम दिन तक खींचतान चलती रही। इस खींचतान के बीच कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ता अरविंद डामोर से नामांकन-पत्र दाखिल करवा दिया। नाम वापसी से एक दिन पहले कांग्रेस और भारतीय आदिवासी पार्टी में गठबंधन हो गया। कांग्रेस नेतृत्व ने डामोर को नाम वापसी के निर्देश दिए। लेकिन डामोर गायब हो गए।

कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत डामोर को तलाशते रहे, लेकिन वे अपना मोबाइल बंद कर के गायब हो गए। दो दिन बाद सामने आए और खुद को कांग्रेस का अधिकारिक प्रत्याशी बताते हुए चुनाव लड़ने की बात कही।

इस सीट के चर्चित होने का दूसरा बड़ा कारण यह है कि गहलोत के विश्वस्त और पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण करने वाली कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य महेंद्र मालवीया अपनी जिला प्रमुख पत्नी रेशम व समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें टिकट भी दे दिया। करीब दो दशक तक आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे मालवीया के अचानक भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस को संभलने का मौका ही नहीं मिला।

दोनों ही पार्टियों में असंतोष

मालवीया को टिकट देने से भाजपा के पुराने नेता नाराज हैं। इन नेताओं का तर्क है कि टिकट मिलने से कुछ दिन पहले तक मालवीया ने भाजपा को भला-बुरा कहा। भाजपा के स्थानीय नेताओं से उनके रिश्ते बेहद खराब रहे हैं। ऐसे में अब वे कैसे मालवीया का सहयोग करें।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा के बाद कार्यकर्ताओं में तो उत्साह नजर आ रहा है, लेकिन नेता अब भी मन से मालवीया के साथ नहीं हैं।

उधर, कांग्रेस के स्थानीय नेता भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन के पक्ष में नहीं है। पूर्व सांसद ताराचंद मीणा और पूर्व मंत्री अर्जुन बामनिया ने पार्टी नेतृत्व के समक्ष नाराजगी भी जताई। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने गठबंधन धर्म का पालन करने के लिए शांत रहने के निर्देश दिए। ऐसे में अब कांग्रेस के नेता भारतीय आदिवासी पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में खुलकर काम नहीं कर पा रहे हैं।

आदिवासियों को लुभा रहा भारतीय आदिवासी पार्टी का मुद्दा

भारतीय आदिवासी पार्टी जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक का मुद्दा उठाकर प्रचार अभियान में जुटी है। यह मुद्दा आदिवासियों को भारतीय आदिवासी पार्टी के पक्ष में लुभा रहा है। करीब चार महीने पहले विधानसभा चुनाव से पहले बनी भारतीय आदिवासी पार्टी के बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र में तीन विधायक हैं। आदिवासी बहुल दो दर्जन विधानसभा सीटों पर भारतीय आदिवासी पार्टी का प्रभाव है। युवा भारतीय आदिवासी पार्टी के साथ लगातार जुड़ रहे हैं।

उधर, भारतीय आदिवासी पार्टी का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का संगठन वनवासी कल्याण परिषद भी सक्रिय है। वनवासी कल्याण परिषद आदिवासियों को भाजपा के पक्ष में करने की कोशिश में जुटी है।

यह है जातिगत गणित

कुल 22 लाख मतदाताओं में आदिवासी (एसटी)15 लाख, ओबीसी तीन लाख 25 हजार, सामान्य एक लाख 80 हजार, अनुसूचित जाति 90 हजार और अन्य एक लाख दस हजार करीब 70 फीसदी वोट आदिवासियों के हैं। भाजपा सामान्य वर्ग और एससी के साथ ही ओबीसी को साधने में जुटी है। यह माना जा रहा है कि आदिवासी वोट में ज्यादा हिस्सा भारतीय आदिवासी पार्टी लेगी, लेकिन मालवीया भी अपनी पुरानी पकड़ के कारण समर्थन जुटा लेंगे।