अगले जन्म में आप धनवान बनेंगे या गरीब, एक्टर बनेंगे या डॉक्टर यह सब आप पर निर्भर है। हो सकता है कि आप इस पर यकीन न करें लेकिन सच यही है। इसका प्रमाण है श्रीमद्भगवत् गीता। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आत्मा अमर है। एक शरीर को छोड़कर आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेती है। अर्जुन को समझाते हुए श्री कृष्ण ने कहा है कि ऐसा कोई समय नहीं है जब तुम और मैं नहीं थे। आने वाला ऐसा कोई समय नहीं है जब हम और तुम नहीं होंगे।  
भगवान प्रत्यक्ष रूप से कहते हैं आत्मा निरंतर एक शरीर से दूसरे शरीर में पहुंचकर अपनी यात्रा जारी रखती है। यानी आप चाहें या न चाहें आपको अगल जन्म लेना है। आपके हाथ में बस इतना है कि आप अगले जन्म में खुद को किस रूप में देखना चाहते हैं यह तय करें। आप कहेंगे कि जब हम खुद ही तय कर सकते हैं कि हमें अगले जन्म में क्या बनना है तो हर व्यक्ति धनवान और सुखी होता है। लेकिन इस दुनियां में गरीब भी हैं और दुखी भी हैं। श्रीमद्भगवत् गीता में इस प्रश्न का भी उत्तर है। गीता के अष्टम में अध्याय में लिखा है, श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है ’’यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्। तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद् भावभावित: इसका अर्थ है, ’’ हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस उसको ही प्राप्त होता है, क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।  
यानी आप अंत समय में जिन-जिन चीजों का ध्यान करेंगे अगले जन्म में उन चीजों को प्राप्त करेंगे। इसी मान्यता के कारण बहुत से लोग अपने बच्चों का नाम भगवान के नाम पर अर्थात राम, विष्णु, कृष्ण, गोविंद आदि रखते हैं। इसका उद्देश्य यह रहता है कि जीवन काल में संतान का नाम लेते हुए भगवान का भी स्मरण बना रहे।  
आमतौर पर मनुष्य का अपनी संतान से बहुत अधिक मोह रहता है, मरते समय वह अपनी संतान का मुख देना चाहता है और उसे ही याद करता है। संतान का नाम ईश्वर के नाम पर होने से मरते समय संतान को याद करते हुए व्यक्ति ईश्वर का भी ध्यान कर लेता है जिससे मुक्ति मिल जाती है। इसलिए हमेशा उस बात का ध्यान करिये जो आप बनना चाहते हैं।