नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से कहा है कि कैदियों की रिहाई के लिए दिए गए स्थानीय जमानतदारों बॉन्ड का वेरिफिकेशन जल्द पूरा हो । हाई कोर्ट ने जमानत के बावजूद आरोपियों, दोषियों या विचाराधीन कैदियों की रिहाई में अवैध देरी पर चिंता जाहिर की। 
जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि अंतरिम जमानत/ जमानत का मूल मकसद ही विफल हो जाता है, यदि आपात स्थितियों पर विचार के बिना जमानतदारों के वेरिफिकेशन के काम में ही समय बर्बाद हो रहा है। हाई कोर्ट ने महानिदेशक (जेल) से जेल सुपरिंटेंडेंट्स को कानून के मुताबिक और गैरजरूरी आपत्तियां उठाए बिना जमानत बॉन्ड पर शीघ्रता से विचार करने के बारे में जागरूक करने के लिए भी कहा। दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें आपराधिक केस के जुड़े जेल में बंद एक व्यक्ति को 14 फरवरी को 25,000 रुपये के जमानत बॉन्ड और इतनी ही राशि की दो जमानती देने पर एक हफ्ते के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी। हालांकि, मार्च के पहले हफ्ते में अंतरिम जमानत आदेश के आधार पर रिहाई की मांग कर एक और याचिका दायर करने तक वह हिरासत में ही था।
पुलिस के वकील ने अदालत में कहा कि देरी इसलिए हुई क्योंकि जमानतदारों के वेरिफिकेशन से जुड़ी रिपोर्ट 26 और 28 फरवरी को ही मिली थी। इसके बाद, 29 फरवरी को जमानतदारों से टेलिफोन पर संपर्क कर आरोपी को 1 मार्च को रिहा कर दिया गया। सुनवाई के दौरान अदालत  ने कहा कि इस तथ्य से अवगत है कि पुलिस अधिकारियों की कमी या ज्यादा काम के कारण जमानत बॉन्ड के फिजिकल वेरिफिकेशन की प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है, लेकिन जमानत बॉन्ड के वेरिफिकेशन में देरी दो हफ्ते तक खिंच जाए, तब इस बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
दिल्ली हाई कोर्ट ने एसओपी तैयार करने को कहा, ताकि जिन कैदियों को जमानत दी गई है उन्हें 48 घंटे के भीतर जेल से रिहा कर दिया जाए।