मास्को । युद्ध में जानवरों का इस्तेमाल बहुत पुरानी बात है। लेकिन समुद्री जानवरों का इस्तेमाल अनोखी बात लग सकती है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि डॉलफिन का भी इंसान कई तरह से, जिसमें सैन्य गतिविधियां भी शामिल हैं, उपयोग कर सकता है। लेकिन डॉलफिन कुछ दिनों से उस रिपोर्ट की वजह से सुर्खियों में हैं जिसके अनुसार रूसी सेना उनका काला सागर में बहुत ज्यादा उपयोग कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक हाल के समय में कालासागर में रूसी नौसैन्य अड्डा सेवस्तोपोल के पास डॉलफिन की संख्या तेजी से बढ़कर दो गुनी हो गई है। लेकिन रूसी सेना उनका उपयोग कैसे कर रही है। 
लेकिन पहले यह जान लेते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है। दरअसल कालासागर के क्रीमिया द्वीप रूस यूक्रेन युद्ध के बाद से ही यूक्रेन के निशाने पर है। क्रीमिया पर साल 2014 में ही रूस ने यूक्रेन से छीन लिया था। तब से रूस के लिए सुरक्षा के लिहाज से यह एक संवेदनशील द्वीप हो गया है।
क्रीमिया की संवेदनशीलता के कारण काला सागर में नेवल बेस क्रीमिया की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और यहीं पर डॉलफिन की संख्या बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट में बताया गया रहै कि जहां उन्हें किसी गोताखोर से लड़ने के लिए नहीं रखा गया है, लेकिन उनकी उपयोग इसतरह के अवांछनीय गोताखोरों की जल्दी से पहचान करने में बहुत अच्छे से हो सकता है। 
डॉल्फिन यह पता लगा सकती हैं कि गोताखोर कहां हैं और उनकी जगह की सूचना अपने पालकों को दे सकती हैं और इस मामले में वे ज्यादा क्षमतावान और कारगर होती है और कोई उनकी इस तरह से पहचान भी नहीं कर सकता है कि वे समुद्र में आखिर कर क्या रही हैं। क्योंकि समुद्री जानवर होने के नाते उनका वहां होना बहुत ही समान्य और अनापत्तिजनक बात है। 
डॉलफिन को गोताखोरी में माहिर विशेषज्ञ भी पछाड़ नहीं सकते। वे इतना तेजी से तैरती हैं कि वे पहचाने जाते हुए गोताखोरों के पास से  उनकी उपस्थिति जानकर निकल सकती है। उनकी तैरने की गति 29 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार तक पहुंच सकती है., जबकि सबसे अच्छे इंसानी तैराक की गति 10 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा पाती है। 
रिपोर्ट के मुताबिक एक बारे में नौसैनिक अड्डे के पास एक बारे में सात डॉलफिन सेवाएं दे सकती हैं। इन्हें खास तरह से नौकाओं द्वारा भी बेस के आसपास तैनात किया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सुरक्षा केवल डॉलफिन के ही भरोसे है. सेवस्तोपोल में सुरक्षा में एंटी टोरपीडो नेट का नेटवर्क, डेप्थ चार्ज सिस्टम और रॉकेट लॉन्चर के बाद फिर डॉलफिन की भूमिका शुरू होती है। 
माना जाता है कि रूसी नौसेना समुद्री जानवर का उपयोग अपने लिए पहली बार नहीं कर रही है। सालों से जासूसी व्हेल की देखा जा चुका है कि जो रूसी उपकरण को एक जगह से दूसरी जगह तक लेते हुए पाई गई हैं। हो सकता है कि उनका उपयोग निगरानी के मकसद से भी किया जाता रहा है। इसी तरह से अमेरिका भी डॉलफिन पर कैमरे लगाने का काम किया है। लेकिन समस्या ये है कि  ना तो कोई देश यह खुलासा करता है कि वह समुद्री जानवरों का उपयोग कैसे करता है और ना ही इस बात का खुलासा करता है कि उसका दुश्मन देश वह काम कैसे करता है।