जयपुर । प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी करीब एक वर्ष दूर है भारतीय जनता पार्टी की दो बार राज्य में सरकार चला चुकी वसुंधरा राजे और भाजपा के उच्च नेतृत्व से मनभेद, मतभेद कई राजनैतिक कार्यक्रमों के अवसरों पर खुलकर सामने आने के कारण राज्य के उच्च नामचीन नेताओं को राजे की राजनीति फुटी आंख नहींं सुहा रही है। प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे डॉ सतीश पूनियां का एक बार का अध्यक्षीय कार्यकाल पूरा हो गया है और वे दिल्ली से कब अध्यक्ष के नाम की घोषणा जारी हो जायें के भ्रम में काम कर रहे है।
भाजपा केन्द्रीय आलाकमान ने अभी पुन: सतीश पूनियां या और का नाम नामांकित नहीं किया है इसी रस्साकसी के चक्कर में प्रदेश भाजपाईयों में गुटबाजी की बयार गायें बगाये बहती रहती है ऐसे कई मौके आये जब भाजपा अध्यक्ष और उनके समर्थक पूर्व मुख्यमंत्री राजे द्वारा की जा रही राजनैतिक के कारण असहज हो जाते है उन्होने इसकी शिकायत मोदी शाह दरबार में लगाई है पर राजे की राजनीति पर केन्द्रीय आलाकमान से चुप्पी के अलावा दूसरा सकेत नहीं मिल रहा। राजस्थान भाजपा में जिन नेताओं के नाम आगे बढ़ाने की दूरगामी सोच को केन्द्रीय भाजपा आकमान लागू करने की स्थिति पैदा करने की कोशिश करती है तब तब राजे ठंडे पानी में कंकण फेंकने का काम राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों के किसी भी हलके में यात्रा पर निकल पड़ती है आलाकमान जिन नेताओं को राजस्थान की जिम्मेदारी देना चाहता है उनमें प्रमुख तौर पर पिछले दिनो जब अशोक गहलोत की सरकार डगमगा रही थी तब गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, ओमप्रकाश माथुर, गुलाबचंद कटारिया, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां भी अपने आप को मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कमजोर नहीं मान रहे थे उक्त नामों से इतर कुछ नाम वे है जो दोनो गुटों के नेताओं की नाराजगी को चुपचाप मौके की तलाश में टकटकी लगाये बैठे रहते है क्या पता बिल के भाग्य का छीका टूट जाये मगर भाजपा आलाकमान से सीधे टकराव राजे का ही है उन्होने तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए पहली राजनैतिक चाल राजस्थान के भरतपुर संभाग से देवदर्शन यात्रा पर निकलकर चल दी है उसी कड़ी में उन्होने बीते दिन राजसमंद में विश्व की सबसे ऊंची विशालकाय शिव प्रतिमा के शुभ अवसर पर शुरू की धार्मिक, सांस्कृतिक, भक्ति में शक्ति को दर्शाने को मुरारी बापू की कथा सुनने पहुंच गई उनके साथ उनके समर्थकों में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, क्षेत्रीय नेताओं की मौजूदगी में यह संदेश देने की कोशिश की है कि राजे जहां खड़ी हो जायेगी आज के राजनैतिक हालातों में भी लाइन वहीं से शुरू होगी। राजे ने इस वक्त बात का अहसास आलाकमान को पिछले चार साल में कई मौको पर करा भी दिया है और तो और प्रदेश कार्यालय में होने वाली कई बैठकों में उनकी अनुपस्ििथति कई मौको पर देखी गई है। ऐसे में राजस्थान में प्रदेश भाजपा नेतृत्व संभाल रहे और उनके समर्थकों को पहली चुनौती तो यही है कि सरदार शहर से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भंवरल लाल शर्मा के निधन से राज्य में घोषित हुए उपचुनाव को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा की जा रही तीरे तिकड़म राजनीति को साथ लेकर उपचुनाव भाजपा की झोली में कैसे डाला जायें।