भोपाल । मध्यप्रदेश में स्थापित सभी ताप विद्युत गृहों में प्रतिदिन भारी पैमाने पर पैदा होने वाली फ्लाइऐश (राख) का निस्तारण अब बड़ी समस्या बन गया है। इसके निस्तारण को लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में मई महीने में उच्च स्तरीय समिति की बैठक आयोजित की गई थी। तय किया गया कि इन ताप विद्युत गृहों में पैदा होने वाली राख से इनके 300 किमी की दूरी में मौजूद खदानों को भरा जाएगा। भरने का खर्च भी ताप विद्युत गृह उठाएंगे। इस संबंध में अब सभी जिलों के कलेक्टर को निर्णय से अवगत कराते हुए इसका पालन करने के निर्देश दिए गए हैं।
प्रमुख सचिव पर्यावरण गुलशन बामरा ने जिलों के कलेक्टरों को मुख्य सचिव की बैठक का हवाला देते हुए भेजे गए कार्यवाही विवरण में बताया है कि ताप विद्युत गृहों के 300 किलोमीटर की परिधि में आने वाली परित्यक्त खदानों (जिनका खनिज निकाल लिया गया हो और वे रिक्त पड़ी हैं) और निचले क्षेत्रों का जिला स्तर पर चिह्नांकन किया जाएगा। इसके बाद इनका आवंटन ताप विद्युत गृहों को करने की प्रक्रिया खनिज विभाग और संबंधित जिले के कलेक्टर करेंगे। ताप विद्युत गृह इन क्षेत्रों में राख के पुनर्भरण की कार्रवाई करेंगे। इसका फायदा यह होगा कि खनन क्षेत्र आसानी से समतल हो सकेंगे और हादसों से बचा जा सकेगा।
यह भी तय किया गया कि सडक़ निर्माण, तटबंध निर्माण, बांध निर्माण एवं अन्य कार्यों में फ्लाइऐश का उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा। निर्माण स्थलों तक फ्लाइऐश के परिवहन का व्यय ताप विद्युत गृह वहन करेंगे। ताप विद्यत गृहों से 300 किमी की दूरी पर होने वाले सभी शासकीय अशासकीय निर्माण कार्यों में फ्लाइऐश आधारित उत्पाद जैसे ईंट, टाइल्स, सिन्टर्ड ऐश का उपयोग करने को प्रोत्साहित किया जाए।
अब खनिज विभाग से ऐसी रिक्त खदानों की जानकारी चाही गई है। जिला खनिज अधिकारी सतना एचके सिंह ने बताया कि इनके पालन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। रिक्त पड़ी खदानों और फिलिंग वाली खदानों की जानकारी संबंधितों से तलब की गई है।
पावर प्रोजेक्टों से उत्सर्जित राख को निस्तारित करने के लिए साढ़े आठ सौ करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इस रकम से बिजली घरों के बांध में जमा 70 लाख टन राख हटाई जाएगी। इस राख का प्रयोग हाइवे निर्माण में होगा। ऊर्जांचल में एनटीपीसी का 4760 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता का देश का सबसे बड़ा थर्मल पावर विंध्याचल, दो हजार मेगावाट का शक्तिनगर (सिंगरौली), तीन हजार मेगावाट क्षमता का रिहंद सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट स्थित है। कोयला आधारित इन पावर प्लांटों में रोजाना एक लाख टन से अधिक कोयला जलता है। इसके चलते उत्सर्जित राख का निस्तारण बड़ी समस्या बन गई है। इससे पैदा प्रदूषण पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की चिंता व दिशानिर्देश व सरकार के रूख पर राख के सुरक्षित निस्तारण की कई योजनाएं बनाई गई। मई में शक्तिनगर, विंध्याचल व रिहंद ने राख निस्तारण के लिए क्रमश: टेंडर निकाला। नौ सौ करोड़ के तीन टेंडरों में ट्रांसपोर्टरों ने रूचि दिखाई। शक्तिनगर व विंध्याचल पावर प्रोजेक्ट का टेंडर खुल गया है। यह एनटीपीसी के इस्टीमेटेड रेट से कम है। रिहंद का टेंडर जल्द खुलने की उम्मीद जताई जा रही है।