जोधपुर । एक मां मजबूरी में अपने बच्चे को पाकिस्तान में किसी रिश्तेदार के पास छोड़ आई। एक साल से उसका चेहरा नहीं देखा था। जब बेटे के वीजा के लिए अप्लाई किया लेकिन नहीं मिला। एक महीने के बेटे को पाकिस्तान में छोड़ कर आना पड़ा। 40 साल का बेटा वहीं रह गया और उसकी बेटी मेरे साथ आ गई। उसकी बेटी यहां मजदूरी कर रही है।
ये कहानियां उन परिवारों की है जो पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गए थे। एक साल से ये परिवार प्रयास कर रहे हैं कि बाकी सदस्य भी भारत आ जाएं लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में मुद्दा भी उठा था। एक वादा किया गया था कि पाकिस्तान से इन परिवार के शेष सदस्यों को भारत लाया जाएगा। चुनाव हो चुके हैं और सरकार बन चुकी है इसी बीच इन विस्थापित परिवारों में उम्मीद जगी है।
नवंबर 2022 में विजय व उसकी पत्नी कविता और छोटा भाई रायमल व उसकी पत्नी पूनम पाकिस्तान से जोधपुर आकर बस गए थे। कविता और पूनम ने बताया कि वहां के हालात देखकर हम चारों ने भारत आने का मन बना लिया था। इसके बाद हमने वीजा के लिए अप्लाई किया। इस दौरान हम दोनों गर्भवती हो गईं तो आने वाले बच्चों के लिए भी वीजा अप्लाई कर दिया। अक्टूबर में दोनों ने बच्चों को जन्म दिया। जब नवंबर में भारत आने का समय हुआ तो बच्चों का वीजा नहीं मिला। उस समय कविता का बेटा 4 दिन का था और पूनम का 15 दिन का। कविता और पूनम ने बताया- ​हमारे बच्चों को ढंग से मां का दूध भी नसीब नहीं हुआ है। क्योंकि भारत आना जरूरी था। सीने पर पत्थर रख हम अपने बच्चों को किसी रिश्तेदार के यहां छोड़ आई थीं। हमारे पास उनकी केवल एक तस्वीर है जब वे पैदा हुए थे। अब वे एक साल के हो गए। हमें ये भी नहीं पता कि वे अपनी मां को पहचान पाएंगे या नहीं। महीने में एक बार रिश्तेदार का फोन आता है तो बच्चों के रोने की आवाज सुन लेते हैं। यहां दिन और रात रो-रो कर निकलती है। मां-बाप होने के बाद भी दोनों बच्चे पाकिस्तान में अनाथ जैसी जिंदगी बिता रहे हैं। हमारा दर्द कोई नहीं समझ सकता है।