भोपाल : समाज को सद्भावना, प्रेम और समता से जोड़ने वाली स्नेह यात्रा का आज पाँचवां दिन है। 16 अगस्त से प्रांरभ हुई यह यात्रा प्रदेश के 52 जिलों में पूज्य संतों के नेतृत्व में 26 अगस्त तक चलेगी। समाज के सभी वर्गों में आत्मीयता के भाव से असमानता के भाव मिट रहे हैं।

सेवा बस्तियों में प्रवास के समय संत सानिध्य से वैसे तो सभी छोटे-बड़े आनन्दित होते हैं पर मातृशक्ति की आस्था देखते ही बनती है। बस्ती में पहुँचने पर संतजनों के पाँव पखारना, करतल ध्वनि और संकीर्तन से स्वागत और पुष्प-वर्षा से सभी का मन आनंदित हो उठता है। मातृशक्ति की आस्था स्नेह यात्रा को और भी गरिमामय बना रही है।

गाँव-गाँव में बह रही है संत, समाज और सावन की त्रिवेणी

भारतीय परम्परा में आस्था और आध्यात्म की दृष्टि से श्रावण मास का विशेष महत्व है। इस माह में पूजा अनुष्ठानों से देव-स्थलों की चहल-पहल देखते ही बनती है। सेवा बस्तियों में संतजन स्वयं प्रवास कर रहे हैं, जिससे स्नेह यात्रा श्रावण मास को और अधिक महत्वपूर्ण बना रही है। संत, समाज और सावन की ये त्रिवेणी गाँव-गाँव में आस्था और उल्लास की झाँकी प्रस्तुत कर रही है। कलश यात्राएँ निकाली जा रही हैं। पुष्प वर्षा से संतों का स्वागत हो रहा है। जिसके पास जो है वह संतों के चरणों में समर्पित करने हेतु तत्पर हैं।

निरन्तर बढ़ रही जन-सहभागिता

स्नेह यात्रा प्रात: और सायंकालीन सत्रों में लगभग 5-5 बस्तियों में प्रवास करती है। दोपहर और शाम को संकीर्तन और सहभोज होता है। बस्तियों में लोगों के आग्रह पर लघु जन-संवाद भी हो रहे हैं, जिनमें लोगों की सहभागिता बढती ही जा रही है। यात्रा की लोकप्रियता के कारण आस-पास के गाँव के लोग भी संतजनों के दर्शन और यात्रा के सहभाग के लिये बड़ी संख्या में आ रहे हैं। पाँच दिनों में यात्रा के दौरान 511 प्रमुख जन-संवाद एवं 2368 पूरक जन-संवाद आयोजित हुए हैं। यात्रा लगभग 3 हजार किमी से अधिक की दूरी पदयात्रा के रूप में पूरी कर चुकी है। स्नेह यात्रा में लगभग 5 लाख से अधिक लोगों की प्रत्यक्ष सहभागिता हो चुकी है।

भारी बारिश में उमड़ रहा आस्था का जन-सैलाब

इन दिनों प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में बारिश का दौर चल रहा है। नदी-नाले ऊफान पर हैं। आवागमन भी बाधित हो रहा हैं, पर लगता है स्नेह यात्रा बारिश के प्रभाव से अछूती हैं। बड़ी संख्या में बस्ती के लोग संतजनों के स्वागत और सत्संग-सहभोज में शामिल हो रहे हैं। जरूरत होने पर बस्ती का विद्यालय या पंचायत भवन सामूहिक मिलन के केन्द्र बन जाते हैं। मौसम की प्रतिकूलता के बाद भी स्नेह यात्रा में उमड़ रहा है आस्था का जन-सैलाब।