फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, बच्चों के लालन-पालन के विषय में आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए 5 सूत्रों पर लेख पढ़ने के बाद एक सज्जन ने मुझसे सम्पर्क किया और कहा, ‘सर लेख में चाणक्य नीति से लिए गए बच्चों के लालन-पालन सम्बन्धी पाँचों सूत्र, पहला - संतान को सदाचारी बनाएँ, दूसरा- सच्चाई का महत्व बताएँ, तीसरा- संतान को अनुशासित जीवन जीना सिखाएँ, चौथा - शिक्षित बनाएँ एवं पाँचवा - परिश्रमी बनाएँ, बहुत ही प्रेरणास्पद और बेहतरीन थे। लेकिन मुझे लगता है आज के परिपेक्ष में यह शायद कारगर नहीं है क्यूँकि मुझे लगता है कि अगर आप अपने बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा देकर बड़ा करेंगे तो वे आज की दुनिया में मिसफ़िट हो जाएँगे अर्थात् वह दूसरों के मुक़ाबले पीछे छूट जाएँगे और मान लो ऐसा ना भी हुआ तो भी आपके बच्चे के अकेला ऐसा होने से दुनिया में क्या फ़र्क़ पड़ेगा।’ मैंने मुस्कुराते हुए उनसे कहा, ‘सर, इस प्रश्न का जवाब भी आचार्य चाणक्य पहले ही दे गए हैं।’  मेरा जवाब सुन वे आश्चर्यचकित थे। मैंने उनकी प्रतिक्रिया को नज़रंदाज़ करते हुए अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘इस बात को मैं आचार्य चाणक्य के जीवन की एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।

आचार्य चाणक्य राजधानी से दूर जंगल में झोपड़ी बनाकर रहा करते थे। जिसे भी उनसे मिलना होता था, परामर्श कर सलाह या ज्ञान लेना होता था, वह उनसे मिलने वहीं आया करता था। उनकी झोपड़ी तक पहुँचने का रास्ता पत्थरों, कँटीली झाड़ियों से भरा हुआ था और उस जमाने में सामान्यतः लोग नंगे पैर ही चला करते थे, इसलिए उन तक पहुँचना बहुत कष्टप्रद रहता था। उनके पास पहुँचते-पहुँचते लोगों के पाँव कँटीली झाड़ियों और नुकीले पत्थरों की वजह से लहूलुहान हो ज़ाया करते थे।

एक दिन उनके राज्य से कुछ लोग उनसे मिलने के लिए बेहद परेशानियों का सामना कर उस रास्ते से उनके पास पहुंचे। आचार्य ने उनका यथायोग्य स्वागत किया और उन्हें लेप आदि देने के बाद विचार-विमर्श शुरू किया। बात पूर्ण होने के बाद आगंतुकों में से एक सज्जन निवेदन करते हुए बोले, ‘आचार्य, आपके पास पहुँचने में हमें कँटीले और ख़राब रास्ते की वजह से बहुत कष्ट हुआ। आप महाराज से कहकर पूरे रास्ते को चमड़े से ढकवा दें। इससे लोगों को आपके पास पहुँचने में तकलीफ़ नहीं होगी।’

उन सज्जन की बात सुन आचार्य मुस्कुराते हुए बोले, ‘महाशय मेरे अनुसार तो एक रास्ते पर चमड़ा बिछाने से समस्या हल नहीं होगी क्यूँकि यह दुनिया ऐसे अनगिनत कँटीले और पथरीले रास्तों से भरी हुई है और उन सभी अनगिनत रास्तों को चमड़े से ढकना सम्भव नहीं होगा। हाँ, अगर आप कँटीले काँटों और पत्थरों से अपने पैरों को बचाने का कोई इंतज़ाम कर लें तो अवश्य ही आप इन काँटों और पत्थरों के प्रकोप से बच पाएँगे। इसलिए मेरा सुझाव है कि चमड़े से अनगिनत रास्तों को ढकने के स्थान पर आप अपने पाँव को चमड़े से सुरक्षित कर लें।’ आचार्य चाणक्य से अपने प्रश्न का विस्तृत उत्तर पा वह व्यक्ति बोला, ‘जी गुरुजी, अब मैं ऐसा ही करूँगा।’

व्यक्ति की जिज्ञासा खत्म होने के पश्चात आचार्य चाणक्य ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘देखो, यह बात यहाँ ख़त्म नहीं होती है। अगर तुम इस पर विचारोगे अर्थात् गहराई से सोचोगे तो तुम्हें इसके पीछे छिपा गहरा अर्थ समझ आएगा। अगर तुम अपना जीवन अच्छे से जीना चाहते हो तो दूसरों को सुधारने के स्थान पर खुद को सुधारो। इससे तुम्हें अपने कार्य में अवश्य ही विजय प्राप्त होगी और साथ ही यह भी ध्यान रखना कि दूसरों को नसीहत देने वाला जीवन में कुछ नहीं कर पाता है। जबकि उस नसीहत को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाला, उसका पालन करने वाला कामयाबी की बुलंदियों को छू पाता है।’

क़िस्सा पूरा होते ही मैंने उन सज्जन की ओर देखा और कहा, ‘सर, जब तक हम खुश, सुखी और त्रुटियों से रहित नहीं होंगे दुनिया को सुधरने की प्रेरणा कैसे दे पाएँगे? जी हाँ साथियों, खुद को बेहतर बनाना ही दुनिया को बेहतर बनाने का एकमात्र रास्ता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com