फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


ट्रेनिंग के अपने कैरियर के दौरान मुझसे एक ही सवाल, अलग-अलग शब्दों में, कई बार पूछा गया है, ‘सर, हम अपनी ओर से पूरा प्रयास करते हैं, आपके बताए हर तरीक़े का पालन करते हैं लेकिन फिर भी मोटिवेटेड या सकारात्मक भावों के साथ नहीं रह पाते हैं।’ मेरे यह पूछने पर कि आप सकारात्मक या मोटिवेटेड रहने के लिए क्या कर रहे हैं? ज़्यादातर लोगों का जवाब रहता है, ‘सर हम सकारात्मक, सेल्फ़ हेल्प वाली किताबें, किस्से आदि पढ़ते हैं, अच्छे मोटिवेशनल विडियो देखते हैं, आप जैसे लोगों को फ़ॉलो करते हैं।’

दोस्तों सकारात्मक, मोटिवेटेड रहने, अपने जीवन को ज़्यादा बेहतर, ज़्यादा उत्पादक बनाने के लिए उपरोक्त कार्य करना बेहद आवश्यक है, लेकिन याद रखिएगा ऐसा करना अपनी सोच बदलने या स्वयं में सकारात्मक चारित्रिक परिवर्तन लाने समान है, जो इतना आसान नहीं है। आगे बढ़ने से पहले आईए एक कहानी से इसे समझने का प्रयास करते हैं-

बात कई साल पुरानी है, लोगों का एक समूह संत तुकाराम जी के पास पहुँचा और उनसे बोला, ‘महाराज हम सभी तीर्थयात्रा पर जाने का निर्णय लेकर अपने घर से निकले हैं। अगर आप भी हमारे साथ चलेंगे तो बड़ी कृपा होगी।’ संत तुकाराम जी ने अपनी असमर्थता बताते हुए लोगों को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा, ‘आप सभी कृपा करके इस कद्दू को भी अपने साथ ले जाइए और जहाँ-जहाँ भी आप पवित्र नदी में स्नान करे या फिर किसी देवस्थान के दर्शन करें, कृपा करके इसे भी स्नान और दर्शन करा लाए। आपकी वापसी पर हम इस पवित्र जल में स्नान करे, देवस्थानों पर गए इस विशेष कद्दू का प्रसाद ग्रहण करेंगे।’

तीर्थयात्रा पर जा रहे लोगों ने बिना दिमाग़ लगाए या इसमें छिपे गूढ़ अर्थों को समझे, इसे संत का साधारण संदेश या आदेश माना और कद्दू को साथ लेकर अपनी तीर्थ यात्रा शुरू कर दी। यात्रा के दौरान वे सभी लोग जिस-जिस स्थान पर स्नान या देव दर्शन के लिए रुकते, वे उस कड़वे कद्दू को भी अपने साथ दर्शन या स्नान के लिए ले जाते थे।

लगभग एक माह में अपनी तीर्थयात्रा पूरी कर पूरा समूह वापस अपने गाँव लौट आया और संत तुकाराम जी के दर्शन करने उनकी कुटिया में पहुँच गया। दर्शन पश्चात समूह ने वह कद्दू वापस संत तुकाराम जी को दे दिया। संत तुकाराम जी ने कद्दू वापस लेकर सभी तीर्थयात्रियों को संध्या भोज के लिए आमंत्रित करा।

शाम को संध्या भोज के दौरान सभी तीर्थयात्रियों को भोजन में विविध तरह के एक से एक पकवान परोसे गए और उन पकवानों में से एक थी उसी कद्दू की बनाई हुई सब्ज़ी। वैसे तो सभी पकवान तीर्थयात्रियों को बहुत पसंद आए लेकिन जैसे ही उन्होंने उस कद्दू की बनी विशेष सब्ज़ी खाई वे थू-थू करने लगे क्यूँकि वह सब्ज़ी कड़वी थी। 

लोगों को सब्ज़ी थूकते हुए देख संत तुकाराम जी आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोले, ‘अरे यह सब्ज़ी तो उसी कद्दू से बनी है जो तुम्हारे साथ विभिन्न तीर्थों के दर्शन करके आया है।’ स्वामी जी की बात सुन एक तीर्थयात्री बोला, ‘महाराज, यह कद्दू तो पहले से ही कड़वा था।’ उस तीर्थयात्री की बात सुन संत तुकाराम जी बोले, ‘यह बात बिल्कुल सही है कि वह कद्दू पहले से ही कड़वा था, मगर महत्वपूर्ण यह है कि तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसमें वही कड़वाहट बची हुई है।’

वैसे तो दोस्तों, इस कहानी से आपको मुख्य प्रश्न, ‘प्रयास करने के बाद भी मोटिवेटेड या सकारात्मक क्यूँ नहीं रह पाते हैं?’ का जवाब मिल गया होगा। लेकिन फिर भी दोस्तों संक्षेप में उसे एक बार और समझ लेते हैं। जिस तरह दोस्तों, तीर्थयात्रा के बाद भी कद्दू कड़वा का कड़वा रहा क्यूँकि उसके अंदर कड़वाहट थी। ठीक उसी तरह मोटिवेशनल विडियो सुनने, सकारात्मक या सेल्फ़ हेल्प वाली किताबें पढ़ने, अच्छे लोगों के साथ रहने के बाद भी हम मोटिवेटेड या सकारात्मक सिर्फ़ इसलिए नहीं रह पाते हैं क्यूँकि हमारे अंदर नकारात्मकता भरी हुई रहती है। जब तक हम उस नकारात्मकता को चेतन रहते हुए अपने अंदर से निकालने का प्रयत्न रोज़ नए सकारात्मक अनुभव बनाकर नहीं करेंगे तब तक वह हमारे अंदर बनी रहेगी। इसके लिए दोस्तों, हमें जागरूक और चेतन रहते हुए अपने स्वभाव, चरित्र और मन को सुधारना होगा।

इसी आस के साथ कि आज से हम सकारात्मक और मोटिवेटेड रह पाएँगे…

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com