फिर भी ज़िंदगी हसीन है


 
आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत भगवान गौतम बुद्ध से जुड़े एक प्रसंग के साथ करते हैं। भगवान बुद्ध का जीवन भिक्षा में प्राप्त संसाधन और अन्न से चलता था। विहार के दौरान एक दिन भगवान बुद्ध ने अपने एक शिष्य के यहाँ भिक्षा माँगने जाने का निर्णय लिया। जैसे ही इसका पता भगवान बुद्ध के शिष्य, जो कि उस जगह के नगर सेठ भी थे, को चला वह बहुत खुश हो गये क्यूँकि आज उसके प्रभु स्वयं भिक्षा के बहाने उसे दर्शन देने आने वाले थे। वह सुबह से ही भगवान बुद्ध के स्वागत के लिए तैयारी करने में जुट गया। सबसे पहले उसने भगवान बुद्ध के विहार के रास्ते की सफ़ाई करवाई और उसे फूलों से सजवाया और इसके साथ ही उसने भगवान बुद्ध को भोग लगाने के लिए मेवों की खीर बनवाई।
 
भगवान बुद्ध तय समय पर भिक्षा लेने के लिए अपने भक्त के घर की ओर चल दिए। रास्ते की सजावट देख जहाँ उनके साथ चल रहे शिष्य प्रभावित हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर भगवान बुद्ध विशेष तौर पर सजाए गए उस रास्ते पर ऐसे चल रहे थे मानो उन्हें इन सब से कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा हो। वैसे भी उन्हें फ़र्क़ पड़ना भी नहीं चाहिए था क्यूँकि वे जानते थे यह सब तात्कालिक है और बहुत हद तक सम्भव है कि उन्हें अगले दिन या फिर जीवन में कभी भी इस तरह का माहौल ना मिले। इसलिए बेहतर तो यही होगा कि जो आपके समक्ष है उसे सामान्य मान या ईश्वर का प्रसाद मान स्वीकार कर लिया जाए और दूसरों से अपेक्षा ना रखी जाए।
 
ख़ैर, कुछ देर चलने के पश्चात भगवान बुद्ध अपने शिष्य के घर पहुँच गए और उसके समक्ष भिक्षा के लिए अपना कमंडल आगे कर दिया। शिष्य भगवान बुद्ध का कमंडल देख चौंक गया क्यूँकि उस कमंडल में गोबर भरा हुआ था। सेठ ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में कहा, ‘प्रभु! मैंने तो भोग के लिए मेवों की खीर बनवाई है। इसे आपको गोबर भरे कमंडल में कैसे दे दूँ?’ भगवान बुद्ध पूरी गम्भीरता के साथ बोले, ‘इसमें क्या हर्ज है वत्स?’ शिष्य बोला, ‘प्रभु! इसमें मेरे अनुसार दो प्रमुख नुक़सान है। पहला, अगर पहले से भरे कमंडल में कुछ भी डालूँगा तो वह छलक कर बाहर गिर जाएगा। दूसरा, अगर मान भी लिया जाए कि उसमें थोड़ी बहुत खीर आ भी गई तो वह गोबर में मिलकर ख़राब हो जाएगी और अगर आपने उसे खा लिया तो आपका स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा और हमारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी।’  शिष्य की बात सुन भगवान बुद्ध और गम्भीर हो गए और बोले, ‘ओहो, यह तो बड़ी भूल हो गई। अब हमें क्या करना चाहिए?’ शिष्य हल्की मुस्कुराहट और शांत भाव के साथ बोला, ‘प्रभु! आप यह कमंडल मुझे दीजिए मैं इसे अच्छे से साफ़ कर लाता हूँ।’ इतना कहते हुए शिष्य ने भगवान बुद्ध से कमंडल लिया और उसे अच्छे से धोकर साफ़ किया और फिर उसमें मेवे की खीर भरकर भगवान बुद्ध को भोग लगाया और साथ ही प्रार्थना करी कि आगे से जब भी भिक्षा लेने जाए गोबर के कमंडल को अच्छे से धोकर, साफ़ करके ले जाए, ताकि भिक्षा देने वाला भी भिक्षा देकर खुश और लाभान्वित हो सके और भिक्षा प्राप्त करने वाला भी उसका पूरा लाभ उठा सके।
 
दोस्तों आपको क्या लगता है, भगवान बुद्ध को क्या इस बात का एहसास नहीं था कि गोबर से भरे कमंडल में खीर नहीं आ सकती या फिर थोड़ी बहुत आ भी गई तो ख़राब हो जाएगी? बिलकुल था, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने गोबर भरे कमंडल को भिक्षा के लिए आगे बढ़ाया क्यूँकि इस घटना के माध्यम से वे हमें अपने जीवन को हसीन बनाने के लिए 2 बहुत ही महत्वपूर्ण सीख देना चाहते थे। आईए, इस घटना में छिपी उन दोनों सीखों को समझने का प्रयास करते हैं-
 
पहली सीख - ‘गोबर भरे कमंडल में और खीर नहीं आएगी’ के माध्यम से असल में भगवान बुद्ध अपने शिष्य को यह बताना चाहते थे कि अगर तुम पहले से ही किसी स्थिति, व्यक्ति या वस्तु के प्रति धारणा बनाकर रखोगे तो उसके बारे में कभी भी सही जानकारी या ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाओगे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, जिस तरह मेवों की खीर लेने के लिए कमंडल का ख़ाली होना ज़रूरी है, ठीक उसी तरह किसी भी स्थिति, व्यक्ति या वस्तु के बारे में सही ज्ञान या जानकारी को प्राप्त करने के लिए हमारा मन या दिमाग़ का पूर्णतः तटस्थ या निष्पक्ष होना आवश्यक है।
 
दूसरी सीख - अक्सर हम पुराने नकारात्मक अनुभवों के कारण अपने वर्तमान को पूर्णता के साथ नहीं जी पाते हैं और इसी वजह से अपना भविष्य ख़राब कर लेते हैं। अगर आप अपना भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो आपको अपने मन को नकारात्मक अनुभवों के प्रभाव से मुक्त करना होगा। ठीक उसी तरह जैसे मेवे की खीर को कमंडल में डालने के पूर्व सेठ ने कमंडल को गोबर से मुक्त करा था।
याद रखिएगा साथियों, नकारात्मक अनुभवों के प्रभाव से मुक्त हुए बिना, अपनी पूरी ऊर्जा से वर्तमान को जीना असम्भव ही है। सीधे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो जीवन को सुंदर बनाने के लिए मन की नकारात्मकता को दूर करें।
 
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com