12 ज्योतिर्लिंगों में से सिर्फ यहीं होती है पंचशूल की पूजा धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के मंदिरों में त्रिशूल का होना बहुत जरूरी है, लेकिन बाबा वैद्यनाथ धाम के शिखर पर त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल स्थापित है। यही विशेषता इस मंदिर को सबसे विशेष बनाती है। वैद्यनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। ऐसी मान्यता है कि रावण पंचशूल से ही लंका की सुरक्षा करता था।

साल में एक बार उतारे जाते हैं पंचशूल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर साल महाशिवरात्रि से पहले सभी मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इन पंचशूलों की महाशिवरात्रि से एक दिन पहले विशेष पूजा की जाती है और दोबारा इन्हें अपने स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है। बैद्यनाथ धाम एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां इस तरह की परंपरा निभाई जाती है।

रावण से जुड़ी है इस मंदिर की कथा
शिवपुराण के अनुसार, रावण भगवान शिव का परमभक्त था। एक बार उसने शिवजी को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर लिया और महादेव को लंका ले जाने की इच्छा प्रकट की। तब महादेव ने उसे एक शिवलिंग दिया और कहा कि "इसे तुम लंका ले जाकर स्थापित करों, ये साक्षात मेरा ही स्वरूप है, लेकिन इसे मार्ग में कहीं रखना मत, नहीं तो यह वहीं स्थिर हो जाएगा।" रावण जब शिवलिंग को लेकर लंका जाने लगा तो मार्ग में लघुशंका के कारण उसने वह शिवलिंग एक ग्वाले को दे दिया और ग्वाले ने उस शिवलिंग को धरती पर रख दिया। तभी से ये शिवलिंग बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है।