भोपाल ।   पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी अपने शीर्ष पर पहुंच चुकी है। लुभावने वादों का पिटारा खुल चुका है। पार्टीयाँ बड़े-बड़े मेनिफेस्टो लेकर मैदान में उतरे हैं। ऐसे में कुछ पार्टीयां जमीनी स्तर पर काम करने का संकल्प लेकर खड़ी है, लेकिन शायद इन बड़ी पार्टियों के चमकीले वादों के तेज रोशनी में कोई उन्हें देख नहीं पा रहा है। जबकि प्रदेश को सचमुच अब नए चेहरे की जरूरत है, नई ऊर्जा की जरूरत है। ऐसे ही नव ऊर्जा से भरी एक पार्टी इस बार पहली बार चुनावी मैदान में उतरी है 'भगवा पार्टी'. भगवा पार्टी के प्रत्याशियों का जोश और विचार बिल्कुल जमीन से जुड़े और व्यावहारिक है।  

हमारे संवाददाता ने भगवा पार्टी के भोपाल मध्य विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 153 के युवा प्रत्याशी श्री नीरव हेतावल से बात की और उनके विचार जाने। उनका कहना है की "बजाए मुफ्त रुपया बांटने के, आज जरूरत है बहनों-युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की। मुफ्त रुपया बांटने के चक्कर में आज प्रदेश लगभग चार लाख करोड रुपए का कर्जदार हो चुका है, जिसका अगर विश्लेषण देखें तो प्रदेश का हर व्यक्ति आज ५५००० रुपए का कर्जदार है, यह ऐसा कर्ज है जो उसने कभी लिया ही नहीं। और यह मुफ्त रुपया किसी भी दिन मिलना बंद हो सकता है, तो मेरा मानना है कि बजाए मुफ्त रुपया बांटने के युवाओं और महिलाओं के नैसर्गिक गुणों को बढ़ावा देकर उन्हें रोजगार दिया जाए और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए। ताकि वह आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन कर सकें".   

नीरव जी का यह भी कहना है की बच्चियों, बहनों के सुरक्षा के लिए उन्हें आत्मरक्षा प्रशिक्षण देंगे और यह कार्य बेहद सहजता से कर सकते हैं हमारे सेवानिवृत्ति सैनिक या सिपाही। साथ ही इन्ही लोगों के साथ मिलकर जिला स्तर पर जन सुरक्षा बोर्ड भी बनाएंगे ताकि शहर को और अधिक सुरक्षा बल मिले। उन्होंने यह भी कहा कि आज हमारे प्रदेश में पेट्रोल डीजल का भाव सबसे ज्यादा है, क्योंकि प्रदेश के सरकार का टैक्स सबसे ज्यादा है। और यह  टैक्स का पैसा जो प्रदेश सरकार काम रही है वह कहां जा रहा है कुछ पता नहीं।

ऑनलाइन बिजनेस के चक्कर में हमारा स्थानीय व्यापारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है, उनकी घटती आमदनी के चलते कई स्थानीय व्यापार ठप हो चुके हैं जो सरासर गलत है। सचमुच समाज के मुद्दे अब कुछ अलग है और सरकार और दूसरी पार्टियों उन पर ध्यान ही नहीं दे रही है। आज जरूरत है फिर से एक बार जमीन से जुड़ने की, लोगों की बात राहत से सुनने की क्योंकि पिछले कई सालों के घिसेपिटे वादे शायद इस बार काम नहीं आएंगे। क्योंकि अब समस्याएं कुछ अलग ही है तो निश्चित है उनका समाधान भी कुछ अलग ही होगा।