नई दिल्ली। रुस और यूक्रेन का युद्ध लंबे समय से चल रहा है। रुसी राष्ट्रपति पुतिन नहीं चाहते थे कि युद्ध लंबा चले। इसलिए वे परमाणु हमले की जिद लिए बैठे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बात की तब पुतिन ने अपनी जिद छोड़ी। कल्पना कीजिए यदि परमाणु हमला होता तो यूक्रेन का नामो निशान मिट जाता और दुनिया के दूसरे देश भी इससे प्रभावित होते।
रिपोर्ट में अधिकारी के हवाले से कहा गया है, हमारा मानना है कि इस बारे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अपनी चिंता दिखाना, विशेष रूप से रूस और ग्लोबल साउथ के प्रति प्रमुख देशों की चिंता सहायक और प्रेरक कारक था। इससे यह समझ पैदा हुई कि इस सबकी कीमत क्या हो सकती है।साल 2022 में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के मौके पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करते हुए पीएम मोदी ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया था और रूसी नेता से कहा कि यह युद्ध का युग नहीं है।पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से कहा था कि लोकतंत्र, कूटनीति और संवाद ने दुनिया को एक साथ रखा है।जवाब में रूसी नेता ने कहा था कि वह भारत की चिंताओं को समझते हैं और उन्होंने पीएम मोदी से वादा किया कि वह संघर्ष को खत्म करने की कोशिश करेंगे, हालांकि उन्होंने इसे लंबा खींचने के लिए यूक्रेन को दोषी ठहराया। वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि जैसे ही 2022 में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध बाद में तेज हो गया, अमेरिका ने कीव के खिलाफ मास्को द्वारा संभावित परमाणु हमले के लिए कठोरता से तैयारी शुरू कर दी। अधिकारियों ने कहा कि जो बाइडेन प्रशासन विशेष रूप से चिंतित था कि रूस युद्धक्षेत्र में परमाणु हथियार का उपयोग कर सकता है और यह 1945 में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए जाने के बाद पहला परमाणु हमला हो सकता है। तभी अमेरिका ने रूस को ऐसे हमले के प्रति हतोत्साहित करने के लिए भारत और चीन से मदद मांगी।  रिपोर्ट में कहा गया है, अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीनी नेता शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आउटरीच और सार्वजनिक बयानों ने संकट को टालने में मदद की।प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हमने जो चीजें कीं उनमें से एक न केवल उन्हें सीधे संदेश देना था, बल्कि दृढ़तापूर्वक आग्रह करना, दबाव डालना, अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना था।