नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर 28 अप्रैल को सुनवाई के लिए सहमति जताई है। प्रावधान में कहा गया कि एक महिला जो कानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है, वह मातृत्व अवकाश की हकदार होगी।
याचिका में कहा गया कि गोद लेने वाली माताओं को कथित 12 हफ्ते का मातृत्व लाभ न सिर्फ केवल जुबानी जमाखर्च है, बल्कि माताओं (जैविक) को प्रदान किए गए 26 सप्ताह के मातृत्व लाभ के साथ तुलना की जाती है, तो यह संविधान के भाग-तीन की बुनियादी कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता है जो संविधान में गैर-मनमानेपन की अवधारणा से जुड़ा है। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने एक वकील की दलीलों पर ध्यान दिया जिन्होंने मामले की तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था।
शीर्ष अदालत ने 1 अक्तूबर, 2021 को विधि एवं न्याय मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को जनहित याचिका पर जवाब मांगते हुए नोटिस जारी किया था। याचिका में कहा गया था कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5 (4) भेदभावपूर्ण और मनमानी है। शीर्ष अदालत कर्नाटक निवासी हंसानंदिनी नंदूरी द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5 (4) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।