चंडीगढ़ । पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में वरिष्ठ नेताओं के लिए किस तरह संकट खड़े किए यह बताने की जरूरत नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके बाद सीएम बने चरणजीत सिंह चन्नी के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। इसी खींचतान में कांग्रेस को पंजाब में सरकार गंवानी पड़ी और अब जबकि कांग्रेस राज्य की सत्ता में नहीं है तो भी सिद्धू की कार्यप्रणाली में बदलाव नहीं आया है। पंजाब में पंजाब में कांग्रेस की की कमान अब अमरिंदर सिंह राजा वडिंग को सौंपी है, लेकिन सिद्धू उनके सामने भी चुनौती बनकर खड़े हो रहे हैं, ऐसा राजनीतिक जानकारों का मानना है। पंजाब कांग्रेस के नए अध्यक्ष अमरिंदर सिंह वड़िंग के सामने प्रदेश में कांग्रेस को एकजुट करने की बड़ी चुनौती है। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी वक्त है, लेकिन इसी साल पंजाब में होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की परीक्षा होनी है। इसके लिए राजा वड़िंग तैयारी में जुट गए हैं। 
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से ही वह राज्य के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। इसी बीच जब वह कांग्रेस की अमृतसर बैठक में पहुंचे तो नवजोत सिंह सिद्धू वहां से नदारद थे। बताया जाता है कि राजा वड़िंग ने जब फोन पर सिद्धू से बात करने का प्रयास किया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। इस तरह के घटनाक्रम संकेत देते हैं कि कांग्रेस में अंदरूनी घमासान अभी खत्म नहीं हुआ है।
सियासी जानकारों की माने तो राजा वड़िंग के अध्यक्ष बनते ही नवजोत सिंह सिद्धू उनके सामने एक चुनौती बनकर खड़े हो गए हैं। सिद्धू ने बीते दिनों महंगाई के खिलाफ हुए प्रदर्शन में कह दिया था कि वह ईमानदार हैं और कांग्रेस में भ्रष्ट नेता हैं। यह कुछ ऐसा ही था जैसे सिद्धू अपनी ही कैप्टन अमरिंदर सिंह और चन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल देते थे। चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू ने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस ही कांग्रेस को हरा सकती है। यह आपसी फूट का बड़ा संकेत था। जिसे अब कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष राजा वड़िंग भी मानते हैं। वह स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस आपसी कलह की वजह से हारी। कांग्रेस के असंतुष्टों के साथ अलग से बैठकें कर रहे सिद्धू अगर पहले की तरह ही आक्रामकता अपनाते हैं और संगठन के नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं तो राजा वड़िंग की मुश्किलें बढ़ना तय है। नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर कांग्रेस हाईकमान की क्या मजबूरी है, ये तो वही जाने लेकिन ये साफ है कि कई बार सिद्धू के अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल देने के बावजूद पार्टी ने चुप्पी साधे रखी।