फिर भी ज़िंदगी हसीन है…!!!

माता-पिता की बातों को नज़रंदाज़ कर अपनी मस्ती में मस्त हो अपने दोस्तों की टोली के साथ चिल्ला-चिल्ला कर, उछलकूद मचाते हुए छुपम-छुपाई, पकड़म-पाटी जैसे खेल खेलना, अपनी बात कहना और खेल के दौरान कोई निर्णय समझ ना आए तो रूठकर खेल छोड़, सबसे अलग हो कहीं मुँह फुलाकर बैठ जाना। फिर अचानक ही थोड़ी देर में बिना किसी के समझाए या मनाए, अपना पसंदीदा खेल आते ही सब के साथ ऐसे घुल मिल जाना जैसे कुछ हुआ ही ना हो। ऐसा लगता है जैसे किसी ने कम्प्यूटर को रीस्टार्ट कर अपनी सारी समस्याओं का समाधान कर लिया है। दोस्तों यही तो बचपन के वह मज़े हैं, जिन्हें याद कर हम कई बार हंस, तो कई बार आँखें नम कर लेते हैं।

लम्बे समय बाद आज एक बार फिर से मुझे अपने बचपन की यादें ताज़ा करने का मौक़ा मिला या यूँ कहूँ फ़्लैशबैक फ़िल्म की भाँति उसे देखने, महसूस करने का मौक़ा मिला। इस बुधवार मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कार्य से थोड़ा जल्दी फ़्री होने पर मैंने अपने बचपन के एक मित्र से मिलने का निर्णय लिया। सरप्राइज़ देने के चक्कर में बिना फ़ोन किए ही मैं उनके घर पहुँच गया। लेकिन वहाँ ताला लगा हुआ था। मैंने सामने गार्डन में ही रुककर मित्र का इंतज़ार करने का निर्णय लिया और फ़ोन कर उन्हें इस बारे में बता दिया।

गार्डन में बच्चों को खेलता देख थोड़ी देर के लिए मैं सब कुछ भूल गया और अपने बचपन को याद करने लगा। लेकिन तभी दो बच्चों के बीच की बातें सुन मेरी तंद्रा टूटी। वे दोनों, एक दूसरे से खुद को श्रेष्ठ और अपने परिवार को बेहतर बताने का प्रयास कर रहे थे। उन दोनों की ही बात पास में बैठे एक बुजुर्ग सुन रहे थे। उन्होंने सभी बच्चों को वहाँ बुलाया और उन्हें एक कहानी सुनाना शुरू की जो इस प्रकार थी-

एक बगीचे में दो पौधे पास-पास लगे थे, जिसमें से एक बाँस का था और दूसरा आम का। दोनों पौधे शुरू में तो आपस में बहुत ही अच्छे दोस्त थे लेकिन जल्द ही बाँस खुद को थोड़ा बेहतर समझने लगा क्यूँकि उसकी लम्बाई आम के पौधे के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी। उसे जब भी मौक़ा मिलता था वह किसी ना किसी तरह आम के पौधे को नीचा दिखाने का प्रयास किया करता था।

देखते ही देखते कई वर्ष गुजर गए, दोनों पौधे अब पेड़ बन गए थे। एक दिन बाँस के पेड़ ने अपनी आदत के अनुसार आम के पेड़ से कहा, ‘देखो, अब तो तुम्हें मान लेना चाहिए कि मैं तुमसे बेहतर और वरिष्ठ हूँ।’ आम के पौधे ने आज भी जवाब देने के स्थान पर चुप रहना मुनासिब समझा। कुछ माह बाद आम के पेड़ पर फल आने की वजह से उसकी डालियाँ और ज़्यादा नीचे झुक गई। जबकि बाँस थोड़ा और बड़ा हो, एकदम तन के खड़ा था। दोनों की आँख मिलते ही वह आम के पेड़ से बोला, ‘तुम ना सिर्फ़ मुझसे छोटे हो बल्कि कमजोर भी हो। देखो, अपने फलों का वजन तक नहीं उठा पा रहे हो। तुम्हें मुझे बेहतर और बड़ा मान लेना चाहिए।’ आम ने इस बार भी उसकी बातों को मुस्कुराकर नज़रंदाज़ कर दिया।

उसी दिन दोपहर को कुछ लोग वहाँ से गुजरे, जिनका भूख और गर्मी की वजह से हाल, बेहाल था। वे थोड़ा सा सुस्ताने और शरीर को गर्मी से बचाने के लिए छायादार स्थान ढूँढ रहे थे। तभी दूर से उनकी नज़र बाँस के पेड़ पर पड़ी और छाया की आस में वे उस दिशा में चल पड़े। लेकिन जैसे ही वे बाँस के बड़े से पेड़ के पास पहुंचे तो वे बहुत निराश हुए क्यूँकि उसके नीचे ना तो छाया थी ना ही कोई साफ़-सुथरी जगह। वहाँ तो बस चारों ओर कँटीली झाड़ियाँ ही थी।

वे सभी बड़े से बाँस से निराश हो अपने आस-पास दूसरा स्थान खोजने लगे तभी उनकी नज़र पास के आम के पेड़ पर पड़ी। पेड़ पर पके आम और उसके नीचे घनी छाया देख सभी बहुत खुश हो गए। उन्होंने आम खाकर अपनी भूख और छाँव के नीचे सुस्ता कर अपनी थकान मिटायी। पेड़ की छाँव में आम खाते वक्त वे सभी बाँस व आम के फ़ायदे और नुक़सान पर चर्चा करने लगे। आम और बाँस दोनों ही उनकी बात ध्यान से सुन रहे थे, आज पहली बार दोनों को एहसास हो रहा था कि सिर्फ़ फलदार होने या बहुत ऊँचा हो जाने से कोई बड़ा नहीं होता बल्कि बड़प्पन तो उपयोगिता के आधार पर तय होता है।

कहानी पूरी होते ही मुझे एहसास हुआ कि बिना रोके, बिना टोके, यहाँ तक कि बिना समस्या वाले विषय पर चर्चा किए उस बुजुर्ग ने बच्चों को सही बात सिखा दी थी। चलिए दोस्तों, अब हम सब भी उस कहानी में छुपे हुए जीवन सूत्रों को संक्षेप में समझ लेते हैं।

दोस्तों, हम सभी में कुछ कमियाँ है तो कुछ खूबियाँ। कमियों और खूबियों का यही कॉम्बिनेशन हमें दूसरों से अलग बनाता है। इसीलिए हम में से कोई भी ना तो पूरी तरह निकृष्ट हो सकता है और ना ही कोई सर्वश्रेष्ठ। बल्कि इन्हीं के आधार पर समयानुसार हमारी उपयोगिता तय होती है और शायद इसी वजह से हमें ईश्वर ने ऐसा बनाया है।

इसलिए आप जैसे हैं स्वयं को वैसा ही स्वीकारिये इसमें ना तो निराश होने की ज़रूरत है और ना ही घमंड करने की। इसलिए दोस्तों, आज से अपना समय आलोचना या तुलना में बर्बाद करने के स्थान पर अपनी कमियों को पहचानने और उसे सुधारने में लगाए और साथ ही अपनी योग्यताओं को और निखारने का प्रयास करें। याद रखिएगा दोस्तों, सिर्फ़ एक ही चीज़ आपके जीवन को बेहतर बना सकती है, अपने आज को कल से बेहतर बनाने की आदत और उसका लाभ समाज को देने का प्रयास। जब समाज आपकी योग्यताओं से लाभान्वित होगा तब वह आपको अपने आप ही श्रेष्ठ मानने लगेगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com