नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के कूनो में चीतों की मौत पर केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया। केंद्र सरकार ने कहा कि इस बात की आशंका पहले से थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या ऐसा होना सही है। इस पर केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा- हमें इस बात की आशंका थी। दूसरी जगह से शिफ्ट किए जाने पर पहले साल में 50 प्रतिशत मौतें होना खतरे की घंटी नहीं है। हमारी रिपोर्ट में सारी डिटेल है।
कूनो में 7 जुलाई को सूरज, जबकि 11 जुलाई को तेजस नाम के चीते की मौत हो गई थी। एक हफ्ते में दो चीतों की मौत को नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने नेचुरल बताया था। यहां पिछले चार महीने में 8 चीतों की मौत हो चुकी है।
जस्टिस बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने पूछा कि सरकार ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों बना लिया है। उन्हें एक जगह रखने के बजाय आप उनके लिए एक से ज्यादा आवास क्यों विकसित नहीं करते, फिर भले ही कोई भी राज्य या किसी भी सरकार हो। एक साल के भीतर 40त्न मौतें हो गईं और इससे अच्छी तस्वीर नहीं बन रही है।  
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से दो बैच में 20 चीतों को लाकर बसाया गया है। सितंबर में नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे और फरवरी 2023 में 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से। भारत में 1952 में चीते विलुप्त हो गए थे और उसके सात दशक बाद यह भारत में बसाने की पहल के तौर पर प्रोजेक्ट चीता ने आकार लिया है। जिन आठ चीतों की मौत हुई हैं, उनमें तीन वयस्क चीते हैं जिन्हें खुले जंगल में छोड़ा गया था। दो चीतों की मौत बाड़े में ही हुई है। वहीं कूनो में चार शावकों का जन्म हुआ था, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। अब कूनो में 16 चीता हैं, जिनमें एक शावक भी शामिल है।
एमके रणजीतसिंह के नेतृत्व वाली कमेटी कोर्ट की मदद कर रही है। कमेटी ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने जो टास्क फोर्स बनाई है, उसमें एक भी चीता एक्सपर्ट नहीं है। पिछले हफ्ते दो चीतों की मौत के बाद कमेटी ने कोर्ट से कहा था कि इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करें। हालांकि, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि यह देश के लिए एक प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट है। इस तरह के प्रोजेक्ट में पहले साल में 50त्न मौतें अपेक्षित स्तर पर थीं। भाटी से कोर्ट ने पूछा कि हम जानना चाहते हैं कि समस्या क्या है। ऐसा लग रहा है कि उन्हें हमारा मौसम और पर्यावरण रास नहीं आ रहा है। उन्हें सांस लेने की दिक्कतें हो रही हैं। एक चीता की मौत किडनी की बीमारी की वजह से हुई है।