राजस्थान में सरकार और राजभवन के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण चार विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति अटक गई है। सर्च कमेटियां हरेक विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए चार-चार प्रोफेसरों के नाम राजभवन को सौंप चुकी है। राज्य सरकार राजस्थान के प्रोफेसरों को कुलपति बनाना चाहती है, लेकिन राजभवन अपने सुझाए नामों पर अड़ा हुआ है। इस कारण अभी तक नामों पर सहमति नहीं बन पाई है, जिसके चलते विश्वविद्यालय में बिना कुलपतियों के काम चल रहा है। राजभवन में हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि कुलपतियों के नाम बाहर चर्चाओं में आ गए हैं। 

तीन साल पहले भी उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए पैनल लीक हो गया था। तब राजभवन ने पैनल निरस्त किए थे। फिर से प्रोफेसरों के पैनल बनाए गए, लेकिन इस बार भी चार विश्वविद्यालय के कुलपतियों के लिए पैनल के नाम चर्चाओं में आ रहे हैं। हालांकि पैनल लीक हुआ या नहीं, यह जांच का विषय है।

सर्च कमेटी सौंप चुकी है संभावित कुलपतियों के नाम

चार विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति का मामला बढ़ते विवादों के बीच अटका हुआ है। उदयपुर का मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, बीकानेर का महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, जयपुर का भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय और बांसवाड़ा का गुरु गोविंद सिंह विश्वविद्यालय, इन सभी विश्वविद्यालयों में अभी तक कुलपतियों की नियुक्ति का फैसला नहीं हुआ है। सर्च कमेटियों ने इन विश्वविद्यालयों के लिए चार-पांच प्रोफेसरों के नाम सौंप दिए है। इसमें राजभवन और सरकार के बीच सहमति-असहमति का पेंच फंसा हुआ है, जिससे कुलपतियों की नियुक्ति का फैसला अटका हुआ है।

दूसरे राज्यों से प्रोफेसर को कुलपति बनाने पर चल रही है खींचतान

राजभवन ने अब तक ज्यादातर कुलपतियों को राज्य के बाहर के प्रोफेसरों को बनाया है। जो स्थानीय प्रोफेसरों में कुलपति बनने का सपने देखने वालों को काफी बुरा लग रहा है। राजस्थान के स्थानीय प्रोफेसरों को विश्वविद्यालयों के कुलपति पद के लिए मौका नहीं मिल रहा है। यह पीड़ा प्रोफेसरों ने सरकार को बताई है। सरकार राजस्थान के प्रोफेसरों को कुलपति बनाना चाहती है। जबकि राजभवन अपने नाम पर अड़ा हुआ है। कुलपतियों की नियुक्तियां नहीं होने से छात्रों को भी परेशानी हो रही है, क्योंकि विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक कार्यों में अस्थायी कुलपतियों के कारण कई मुद्दे खास तौर पर उन्हें प्रभावित कर रहे हैं। कथित तौर पर कुलपतियों के पैनल के नाम बाहर चर्चाओं में आने से शिक्षा क्षेत्र में विश्वसनीयता और न्याय का संकट खड़ा हो गया है। इस संदिग्धता के चलते, छात्र और शिक्षक समुदाय काफी परेशान हैं। सूत्रों के मुताबिक, यह मामला न्यायपालिका में भी जा सकता है क्योंकि नया सत्र शुरू होने के साथ ही कुलपतियों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

दूर के विश्वविद्यालय के कुलपतियों को एडिशनल चार्ज

मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर और गोविंद गुरू यूनिवर्सिटी बांसवाड़ा के कुलपति का कार्यकाल 20 जुलाई को ही पूरा हो चुका है। जबकि बीकानेर की महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी के कुलपति का कार्यकाल 28 जुलाई को पूरा हो गया है। इन तीन यूनिवर्सिटी में कुलपति लगाने के लिए सर्च कमेटी नामों का पैनल सौंप चुकी हैं। लेकिन राजभवन और सरकार के बीच सहमति नहीं बनने के चलते तीनों विश्ववद्यालयों में नई नियुक्ति नहीं हो सकी है। इसलिए नया कुलपति लगाने के जगह तीनों यूनिवर्सिटी में कुलपतियों को एडिशनल चार्ज दे दिया।

नियमों के मुताबिक, किसी भी कुलपति का कार्यकाल पूरा होने तक अगर नए कुलपति की नियुक्ति नहीं होती है, तब तक कार्यवाहक कुलपति लगाया जाता है। लेकिन समान्य तौर पर इसकी जिम्मेदारी नजदीकी यूनिवर्सिटी के कुलपति काे सौंपी जाती है। लेकिन उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर के पास महाराणा प्रताप एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी होने के बावजूद जोधपुर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. केएल श्रीवास्तव को सुखाड़िया यूनिवर्सिटी का चार्ज सौंपा गया। इन दोनों विश्वविद्यालयों बीच 250 किलोमीटर की दूरी है। जबकि बांसवाड़ा विश्वविद्यालय से भी उदयपुर की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पास है। लेकिन करीब 400 किलोमीटर दूर पड़ने वाले जोधपुर के विश्वविद्यालय के कुलपति को इसका चार्ज सौंपा गया है। बीकानेर यूनिवर्सिटी में भी बीकानेर की कई यूनिवर्सिटी में कुलपति नियुक्त होने के बावजूद 220 किलोमीटर दूर सीकर यूनिवर्सिटी के कुलपति को जिम्मेदारी सौंपी गई है।